पारिवारिक पेंशन पति की बजाय उसके पात्र बच्चों को दी जाएगी

Last Updated 04 Jan 2024 12:20:04 PM IST

महिला कर्मचारी अब वैवाहिक विवाद के मामले में पति की बजाय अपने बच्चों को पारिवारिक पेंशन के लिए नामित कर सकेंगी।


पारिवारिक पेंशन पति की बजाय उसके पात्र बच्चों को दी जाएगी

केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 2021 का नियम 50 सरकारी कर्मचारी या सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी की मौत के बाद पारिवारिक पेंशन देने की अनुमति देता है। नियमानुसार मृत सरकारी नौकर या पेंशनभोगी की जीवित पति/पत्नी है तो पारिवारिक पेंशन उसे ही दी जाती है परंतु मृत सरकारी नौकर या पेंशनभोगी के जीवनसाथी के अयोग्य होने या उसकी पहले ही मौत हो जाने पर परिवार के सदस्य पेंशन के पात्र बनते हैं।

पेंशन व पेंशनभोगी कल्याण विभाग के अनुसार अब जिन मामलों में तलाक या घरेलू हिंसा के तहत याचिका दायर की जा चुकी है या भारतीय दंड संहिता के तहत दर्ज मामले शामिल हैं संशोधन के बाद महिला सरकारी कर्मचारी को पारिवारिक पेंशन पति की बजाय उसके पात्र बच्चों को दी जाएगी।

सरकारी नौकरियों में महिलाओं की बढ़ती संख्या के मद्देनजर यह व्यवस्था बेहतर व महिला केंद्रित प्रतीत हो रही है मगर इसे लैंगिक विभाजन के बगैर जारी करने की जरूरत है। सरकार को जेंडर न्यूट्रल यानी लैंगिक तटस्थता वाले कानून/नियम बनाने का प्रयास करना चाहिए।

सरकारी कर्मचारी को लिंग के आधार पर विभाजित करने की जरूरत नहीं है। बेहतर हो कि स्पष्ट किया जाए कि पेंशनभोगी के जीवनसाथी के साथ चल रहे वैवाहिक विवाद या संबंध विच्छेद के उपरांत उसके जीवन साथी/पूर्व जीवन साथी को पेंशन या ऐसी किसी सुविधा का लाभ नहीं दिया जाएगा बल्कि बच्चों की पात्रता के अनुरूप इसे विभाजित किया जाएगा।

यह भी स्पष्ट करने की जरूरत है कि वयस्क बच्चे बेहतर तौर पर जीवनयापन कर रहे हैं तो परिवार पेंशन जबरदस्ती देने का रिवाज न चालू किया जाए। इस तरह के नियमों को स्पष्ट तौर पर परिभाषित करना चाहिए न कि लाभार्थियों को त्वरित राहत देने के लिहाज से लागू करने की जल्दबाजी हो।

कई मामलों में अपने यहां कानूनन, लिखित या दस्तावेजी तौर पर दांपत्य संबंध समाप्त नहीं होते, उन्हें स्वीकृत करने में दिक्कत आना लाजिमी है। यह पेचीदा मामला नहीं है। मगर स्पष्टता के अभाव में लागू करने में अड़चनें आने की गुंजाइश छोड़ी जा रही है। मौत से पूर्व धन-संपत्ति संबंधी पक्की लिखत-पढ़त न करने वाले भी ढेरों मामले अदालतों में लंबित हैं। इसे स्पष्ट करना भी जरूरी है।



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