लोक आस्था का जगमग महोत्सव

Last Updated 12 Nov 2023 09:53:47 AM IST

टैगोर स्कूल ऑफ आर्ट के मूर्धन्य चित्रकार नंदलाल बोस भारतीय और पाश्चात्य कलादृष्टि को लेकर अपने आसपास के लोगों से अक्सर कुछ ऐसी बातों का जिक्र करते थे, जो कला मर्मज्ञता की प्राच्य परंपरा को रेखांकित करते हैं।


लोक आस्था का जगमग महोत्सव

वे कहते थे कि पश्चिम की कलादृष्टि में बहुत कुछ अनुपम और सीखने लायक है पर उनके पास न तो प्रकृति को रेखांकित करने वाला प्रगाढ़ सांस्कृतिक बोध है, और न दीपक और कलश जैसा बिंबात्मक सौंदर्य उपादन।
आज जब दीपावली पर एक बार फिर भारत की उत्सवधर्मिंता को लेकर बातें हो रही हैं, तो हमारे सामने सोच-विचार के लिए वे सारे कलात्मक और आस्था-बोध से जुड़े पारंपरिक उपादान भी हैं, जो हमारे जीवन में हजारों वर्षो से उजास भरते रहे हैं। दीपावली से हमारी पौराणिकता का अयोध्या सर्ग जुड़ा है। सो, चर्चा सरयू तट पर बसे इस नगर की स्वाभाविक तौर पर होगी ही। इस चर्चा का दिलचस्प पक्ष यह है कि इसमें भारत की बदलती राजनीति के साथ सांस्कृतिक चेतना का स्वर भी उभर रहा है। यह बात इस लिहाज से भी महत्त्वपूर्ण है कि भगवान राम की लोक छवि हमेशा सदय प्रजापालक की रही है।
गौरतलब है कि वनवास के बाद भगवान राम ने पूरे चौदह साल अयोध्या से बाहर बिताए। ये उनके वनवास के दिन थे। इस कथानक के बाद वनवास और चौदह साल एक-दूसरे के पूरक से बन गए और चौदह साल के वनवास का मुहावरा ही चल निकला। संयोग ही है कि नब्बे के दशक में अयोध्या मुद्दे की राजनीतिक गर्माहट के बाद उत्तर प्रदेश में सत्ता पाने वाली भारतीय जनता पार्टी राज्य में सत्ता से जब बेदखल हुई तो उसे भी सत्ता वापसी करने में चौदह साल लगे। भाजपा के राजनीतिक वनवास टूटने के साथ बाजार के दौर में भी अगर भारत में बात सियासी मंचों से आस्था के दीयों की हो रही है, तो इसे देखने का आधार महज तात्कालिक या सतही नहीं हो सकता। यह भारत में राजनीति के दक्षिणायन होने के साथ उसके सांस्कृतिक विहान का भी एक नया और बड़ा साक्ष्य है। इस साक्ष्य का पहला पन्ना अयोध्या है। चाहें तो आप इसकी पूर्वपीठिका राम मंदिर आंदोलन को भी मान सकते हैं। मौजूदा दौर की बात करें तो उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद 2017 में अयोध्या में मने प्रथम दीपोत्सव में एक लाख 71 हजार दीए जलाए गए। यह देश में एक नया सांस्कृतिक आगाज था। इस बार अयोध्या ने 24 लाख से ज्यादा दीए जलाकर अपना पिछला रिकॉर्ड तोड़ा है। इसके लिए तैयारी भी असाधारण रूप से की गई। अयोध्या में दीपोत्सव से ऐन पहले योगी सरकार की अहम कैबिनेट बैठक बुलाई गई। माना यह भी जा रहा है कि 2024 के लोक सभा चुनाव में भाजपा की एक बार फिर केसरिया बाने के साथ उतरने की तैयारी है।
2014 से आगे बढ़ी राजनीति के मस्तूल को आज जो लोग पढ़ पा रहे हैं, वे मानते हैं कि किसी खास धर्म और संप्रदाय को तरजीह के बूते चलने वाली राजनीति और बौद्धिक आतंक के दिन अब लद चुके हैं। भारत आज विकास के साथ अपने संस्कार और अपनी विरासत को गौरव बोध के साथ देख रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शब्दों में कहें तो गुलामी और औपनिवेशिकता की मानसिकता से निकल कर ज्ञान, परंपरा और बोध का भारतीय संस्कार वि में नये सिरे से हमारी पहचान को गढ़ रहा है। भारत आज सांस्कृतिक पुनर्निर्माण के उस शानदार दौर में है, जब हम अपनी सनातन आस्था से जुड़े स्थलों की महत्ता को भव्यता प्रदान कर रहे हैं। आज सनातनी आस्था और चेतना एक प्रखर राष्ट्रप्रेम का स्वीकृत और गौरवशाली पर्याय है। देश में एक तरफ आज जहां अयोध्या में भव्य राममंदिर का निर्माण पूरा होने जा रहा है, वहीं काशी में विनाथ धाम, भारत की सांस्कृतिक राजधानी का गौरव बढ़ा रहा है। सोमनाथ में विकास के कार्य नये कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं। उत्तराखंड में बाबा केदार के आशीर्वाद से केदारनाथ-बद्रीनाथ तीर्थ क्षेत्र में विकास के नये अध्याय लिखे जा रहे हैं। इसी कड़ी में अतिभव्य ‘महाकाल लोक’ भी अतीत के गौरव के साथ भविष्य के स्वागत के लिए तैयार हो चुका है। दिलचस्प यह कि भारत की बड़ी आबादी से जुड़ी आस्था के सवाल और सरोकार को लेकर विचार और राजनीति की तमाम जमातों के बीच आज एक बड़ी सहमति भी दिख रही है। इस सहमति के कई मायने हैं।
बात दीयों से शुरू हुई तो आखिरी तौर पर कहना जरूरी है कि संस्कृति की पौध रातोंरात न तो खड़ी होती है, और न हरी होती है। अयोध्या के जगमग दीयों और ग्लोब पर भारतवर्ष के साथ पूरे इंडियन डायस्पोरा को जो दीया आस्था से जोड़ता है, उसका लोक विस्तार भारत की हजारों वर्ष की सांस्कृतिक चेतना की जगमग यात्रा है। एक ऐसे समय में जब बाजार में दीपावली की खरीद के आंकड़े को लेकर अर्थ पंडित अपने-अपने आकलन रख रहे हैं, योगी सरकार का निर्णय और उससे जुड़ा राजनीतिक-सांस्कृतिक पक्ष भारतीयता से जुड़े विमर्श की धुरी एक बार फिर नये सिरे से तय कर रहा है। यह ऐसी धुरी है, जिसके विरोध का खतरा आज न तो कोई राजनीतिक जमात उठाने को तैयार है, और न ही कोई मंजा हुआ सामाजिक-सांस्कृतिक व्याख्याकार। इसलिए भी कि आज भारत के प्रधानमंत्री की सांसदी जहां एक तरफ देवनगरी वाराणसी से तय हो रही है, वहीं रामायण का अयोध्या पर्व भारतीय राजनीति और संस्कृति के नये प्रस्थान को दिशा दे रहा है।

प्रेम प्रकाश


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment