विचाराधीन कैदियों के हक

Last Updated 02 Oct 2023 01:29:41 PM IST

किसी व्यक्ति को मुकदमे के लंबित रहने की वजह से अनिश्तिकाल के लिए कैद में नहीं रखा जा सकता। यह संविधान में निहित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। बंबई उच्च न्यायालय ने एक आरोपी को जमानत देते हुए यह कहा।


विचाराधीन कैदियों के हक

पुणे की लोनावाला पुलिस ने आकाश चंडालिया को दोहरे हत्याकांड व साजिश के आरोप में सितम्बर, 2015 में गिरफ्तार किया था। अदालत ने यह भी कहा कि आरोपों की गंभीरता और मुकदमे के समापन में लगने वाले लंबे समय के बीच संतुलन बनाना होगा।

एकल पीठ ने कहा अपराध की गंभीरता व जघन्य प्रकृति एक पहलू हो सकती है। जमानत पर आरोपी को रिहा करने के विवेक का प्रयोग करते समय यह विचारणीय है। लेकिन विचाराधीन कैदी के तौर पर लंबे समय तक जेल में रखने के तथ्य को भी उचित महत्त्व दिया जाना चाहिए। अदालत ने इसे संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुरूप नहीं बताया।

देश में विचाराधीन कैदियों की भीड़ जेलों में विस्फोटक कही जाती है जिस पर देश की सबसे बड़ी अदालत समेत देश की प्रथम नागरिक चिंता जता चुकी हैं। 2021 में जेलों में तकरीबन 77% विचाराधीन कैदी यानी अंडरट्रायल थे। विचाराधीन कैदियों में करीब आधे तीस की उम्र के भीतर ही होते हैं।

जाहिर हैं, लंबे चलने वाले मुकदमों के दरम्यान यदि उन्हें तर्कसंगत तौर पर जमानत न दी गई तो उनका पूरा भविष्य दांव पर लग जाता है। नैशनल ज्यूडिशियल डाटा ग्रिड के अनुसार देश भर की जिला व तालुका अदालतों में चार करोड़ से ज्यादा मामले लंबित हैं। बेशक, गंभीर अपराधों के आरोपियों को जमानत देने के पूर्व पड़ताल जरूरी हो जाती है क्योंकि कई बार सामने आता है कि आरोपी ने कैद से छूटते ही और भी भयानक अपराध कर डाला।

विचाराधीन कैदियों के सुधार तथा भविष्य में उनके सामान्य जीवन का ख्याल रखते हुए विशेष योजनाएं अमल में लाई जानी चाहिए। ऐसी व्यवस्था भी की जाए जिससे उनकी आपराधिक प्रवृत्ति पर लगाम लग सके। वे सीमित दायरे या नजर में रहते हुए नियमित काम निपटा सकें या परिवार के संपर्क में रह सकें।

जाहिर है, पीड़ितों की तरह आरोपियों व अपराधियों के भी कुछ अधिकार हैं। गलत को गलत तरीकों से तनिक भी सुधारा नहीं जा सकता। न ही हम अपनी, समाज की या व्यवस्थागत गलतियों को उन पर लाद कर हाथ झाड़ सकते हैं।



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