मणिपुर में फिलहाल अफस्पा
मणिपुर पिछले पांच महीनों से सामुदायिक हिंसा और राजनीतिक दबाव से गुजर रहा है। लेकिन दो छात्रों की मौत के बाद तो बवाल और बढ़ गया है।
मणिपुर में फिलहाल अफस्पा |
इंफाल में उग्र भीड़ ने उपायुक्त के दफ्तर में तोड़फोड़ की तो मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के खाली पड़े पैतृक आवास पर हमले की कोशिश हुई। हालांकि इस बीच,आतंकवाद-चरमपंथ से निबटने में काबिल माने जाने वाले एसपी राकेश बलवाल को जम्मू-कश्मीर से मणिपुर भेजा गया है। राज्य में जारी जातीय हिंसा को देखते हुए पहाड़ी इलाकों में सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (अफस्पा) को छह महीने के लिए और बढ़ा दिया गया है। इंफाल घाटी के 19 थाने और असम की सीमा से सटे एक इलाके को इसके दायरे से बाहर रखा गया है।
इस अधिनियम के तहत सेना को शक के बिना पर भी किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने, उसके घर की तलाशी लेने और चेतावनी की अनसुनी करने पर गोली भी मारने का अधिकार मिल जाता है। राज्य के प्रबुद्ध जन ऐसे सख्त कानूनों का विरोध करते रहे हैं। इस बार भी यही बात है। लेकिन विचारणीय है कि मणिपुर में स्थिति सामान्य नहीं है।
वहां विद्रोह और युद्ध जैसी विकट स्थिति है। ऐसे में शांति की सैद्धांतिकी कैसे लागू की जा सकती है। चीन, पाकिस्तान और म्यांमार के उग्रवादियों द्वारा प्रायोजित हिंसा को रोकने के लिए अफस्पा को बढ़ाने के अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं था। हालांकि मणिपुर की इस चिंताजनक स्थिति के लिए कोई एक दल जिम्मेदार नहीं है।
यह भारतीय राज्य की विफलता है, जिसमें कोई दल या समूह नहीं, राजनीतिक व्यवस्था शामिल है। भारतीय राज्य के व्यवस्थागत अंग-उपांग हैं, वे हिंसाग्रस्त समूहों के असंतोषों का समुचित हल नहीं निकाल सके। इन समूहों की महत्त्वकांक्षाएं, उनके अभाव, उनकी नैतिक और भौतिक जरूरतें, उनकी अपेक्षाएं और उनके अतिवाद का कोई सुसंगत हल नहीं तलाशा जा सका। राज्य में जो प्रवृत्तियां वर्षो से चली आ रही थीं वे अब अपने उग्रतम रूप में दिखाई दे रही हैं।
इस समय राज्य में हिंसा का जो वातावरण बना हुआ है, उसमें इन समूहों के बीच सुलह-शांति की संभावनाएं नहीं दिख रही हैं और इस हिंसक वातावरण को किसी भी तर्क से अनियंत्रित नहीं छोड़ा जा सकता है। तात्कालिक तौर पर इसका नियंत्रण सैन्य बल के सहारे ही संभव है। दूसरी तरफ, इन सैन्य नियंत्रण के दौरान युद्धरत समूहों के बीच बातचीत से शांति के प्रयास भी जारी रहें।
Tweet |