एकजुटता एकमात्र विकल्प

Last Updated 07 Mar 2023 01:31:03 PM IST

देश के आठ विपक्षी दलों ने अपने प्रति हो रहे अन्याय को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखा है।


एकजुटता एकमात्र विकल्प

इस पत्र में विभिन्न केंद्रीय एजेंसियों को निशाना बनाया गया है। विपक्षी नेताओं का विश्वास है कि उनके विरुद्ध सीबीआई, ईडी का खुल्लमखुल्ला दुरुपयोग हो रहा है।

इस संयुक्त पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में ममता बनर्जी, चंद्रशेखर राव, अरविंद केजरीवाल, भगवंत मान, तेजस्वी यादव, शरद पवार, अखिलेश यादव, उद्धव ठाकरे और फारूक अब्दुल्ला शामिल हैं। पत्र में हाल ही में गिरफ्तार किए गए दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी का जिक्र करते हुए कहा गया है कि हम लोकतंत्र से निरंकुशता की ओर बढ़ रहे हैं। विपक्षी नेताओं के इस संयुक्त पत्र को पढ़कर यह समझना मुश्किल है कि इन नेताओं का वास्तविक इरादा क्या है और वे सरकार से क्या अपेक्षा रखते हैं।

पत्र में प्रत्यक्ष तौर पर जो शिकायत है कि सीबीआई और ईडी की कार्रवाइयां गलत है जबकि इन केंद्रीय एजेंसियों के प्रवक्ताओं का कहना है कि इन नेताओं के विरुद्ध कथित भ्रष्टाचार की शिकायतें हैं और हम अपना काम कर रहे हैं। राजनीति के बारे में एक मशहूर कहावत है कि राजनीति काजल की कोठरी है, चाहे कितना भी बच कर रहिए कालिख लग ही जाती है। देश के लोगों को याद होगा कि प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार कहा था कि ‘न खाऊंगा और न खाने दूंगा’।

अगर प्रधानमंत्री मोदी भ्रष्टाचार के विरुद्ध अभियान चला रहे हैं तो विपक्ष के नेताओं को इसमें सहयोग करना चाहिए। लेकिन स्थिति यह है कि विपक्षी नेताओं को इन जांच एजेंसियों की निष्पक्षता पर ही भरोसा नहीं है। उन्हें लगता है कि ये जांच एजेंसियां सरकार के दबाव में काम कर रही हैं। ऐसी स्थिति में सरकार के दबाव में काम कर रही हैं। ऐसी स्थिति में अब एक ही रास्ता बचता है कि सभी गैर-भाजपा राजनीतिक दल एकजुट हों और अपने प्रति होने वाले अन्याय और ज्यादतियों को प्रमुख मुद्दा बनाए।

अगले वर्ष आम चुनाव होने वाले हैं। आम जनता के सामने इस प्रमुख मांग को रखें कि हमारे साथ एनडीए की केंद्र सरकार अन्याय कर रही है। अगर जनता इनकी बातों को गंभीरता से लेती है और उनके पक्ष में मतदान करती है तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। लेकिन विपक्षी दलों के सुरों और गतिविधियों से ऐसा लगता है कि उन्हें यह भी भय है कि जनता उनकी बात सुनेगी नहीं। यही वजह है कि उन्हें जिस तरह की राजनीतिक एकता प्रदर्शित करनी चाहिए वह भी बनती दिखाई नहीं देती।



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