कड़ा दंड मिले
अफवाह किस कदर वैमनस्यता और हिंसक माहौल तैयार करती है, यह तमिलनाडु में उत्तर भारतीयों खासकर बिहार-झारखंड के मजदूरों के साथ घटित वाकये से समझा जा सकता है।
कड़ा दंड मिले |
अच्छी बात यह हुई कि बिहार और तमिलनाडु सरकार ने इस मामले में त्वरित सक्रियता दिखाई और कथित भय का जो वातावरण बना था, वह समाप्त हुआ। दरअसल, उत्तर भारत के प्रवासी मजदूरों के साथ हिंसा और बिहार के 12 मजदूरों की फंदा लगाकर हत्या किए जाने की झूठी खबर और मारपीट के वीडियो वायरल किए जाने के बाद देश भर में यह समाचार तेजी से फैला कि तमिलनाडु में हिंदी बोलने लोगों के साथ बेहद बुरा बर्ताव हो रहा है, और प्रवासी मजदूरों की बड़ी संख्या अपने गृह राज्य लौटने को विवश है।
पूरे प्रकरण में बिहार के विपक्षी दलों की भूमिका भी नकारात्मक दिखी और बिना पड़ताल किए सभी लोग इस खबर को सच मान बैठे। यहां तक कि जिन नेताओं के सोशल मीडिया मंच पर लाखों प्रशंसक थे, उन्होंने भी अफवाह को विस्तार दिया। जबकि इसके उलट तमिलनाडु भाजपा के अध्यक्ष ने इस तरह की खबरों को बकवास बताया और मारपीट का खंडन किया। प्रशंसा तमिलनाडु और बिहार सरकार की भी करनी चाहिए, जिन्होंने तुरंत इस खबर का खंडन किया।
बिहार सरकार ने अधिकारियों की एक टीम तमिलनाडु भेजी वहीं तमिलनाडु सरकार ने भी प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा का वादा किया। बहरहाल, अब जो बात सामने आ रही है, उसके मुताबिक तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन के जन्मदिन-जिसमें बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने भी शिरकत की-के अगले ही दिन बिहारी प्रवासी मजदूरों के साथ मारपीट और हत्या किए जाने की झूठी खबर फैलाई गई। इस मामले में अब तक भाजपा के एक नेता और दो पत्रकारों के खिलाफ देश भर में ‘जहर’ फैलाने का केस दर्ज किया जा चुका है। देश की अमन-शांति के साथ इस तरह का बिगाड़ करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई जरूरी है। ऐसा करने के पीछे किन लोगों का दिमाग था, इसका खुलासा जरूरी है।
चूंकि तमिलनाडु के तिरुपुर में देश का 40 फीसद से ज्यादा सूती कपड़ों का कारोबार होता है, जिसे प्रवासी मजदूर ही संभालते हैं। अन्य छोटे और मध्यम उद्योगों, होटल, भारी उद्योग और कंस्ट्रक्शन कंपनियों में अधिकांश मजदूर बिहार के हैं, और ऐसी खबरों से व्यवसाय चौपट हो सकता है। चुनांचे, सरकार को ऐसे तत्वों की पहचान कर ऐसी कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए जो नजीर बन सके।
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