यूपी में कांग्रेस नेताओं का मुख्यमंत्री पद के लिए ब्राह्मण उम्मीदवार पर जोर
उत्तर प्रदेश में राम बनाम परशुराम की लड़ाई के चलते अब कांग्रेस के दिग्गज नेताओं ने मांग की है कि उत्तर प्रदेश में साल 2022 के विधानसभा चुनावों के लिए किसी ब्राह्मण नेता को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश किया जाना चाहिए।
CM पद के लिए ब्राह्मण उम्मीदवार पर जोर (प्रतीकात्मक फोटो) |
समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) लखनऊ में परशुराम की एक से बढ़कर एक प्रतिमाओं की स्थापना किए जाने की घोषणा कर एक-दूसरे को पछाड़ने की कोशिश में लगे हुए हैं। ऐसे में कांग्रेस को लगता है कि ब्राह्मण को मुख्यमंत्री पद के लिए उम्मीदवार घोषित करने से पार्टी उस समुदाय के समर्थन से जीत हासिल कर सकती है जो वर्तमान में भाजपा से असंतुष्ट है।
यूपीसीसी के एक पूर्व अध्यक्ष ने कहा, "ब्राह्मण समाजवादी पार्टी की ओर जाने के लिए उत्सुक नहीं हैं, जो एक ओबीसी समर्थक पार्टी है और साल 2007 में बसपा के साथ उनका अनुभव सही नहीं रहा है। भाजपा द्वारा ब्राह्मणों के साथ उचित व्यवहार नहीं किया गया है और उनका ओबीसी के साथ बढ़ती नजदीकियां भी उन्हें असहज बना रही हैं। अगर कांग्रेस ब्राह्मणों के समर्थक होने की छवि का प्रदर्शन करती है तो यह हमारे लिए एक पासापलट साबित हो सकता है।"
उन्होंने आगे कहा कि अगर ब्राह्मण कांग्रेस के साथ गठबंधन करते हैं, तो मुस्लिम भी पार्टी में प्रवेश करेंगे और दलितों की एक बड़ी आबादी भी इसका पालन करेगी।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि 1991 तक उत्तर प्रदेश में कांग्रेस में ब्राह्मणों का साथ रहा है।
उन्होंने कहा, "1991 में नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्री बनने के बाद नारायण दत्त तिवारी जैसे शीर्ष ब्राह्मण नेताओं को किनारे कर दिया गया। लगभग उसी समय के दौरान अयोध्या आंदोलन की गति तेज हुई और ब्राह्मणों सहित सभी हिंदू भाजपा के खेमे में चले गए।"
यह कांग्रेस ही थी, जिसने गोविंद वल्लभ पंत, सुचेता कृपलानी, कमलापति त्रिपाठी, हेमवती नंदन बहुगुणा, एनडी तिवारी और श्रीपति मिश्रा सहित उत्तर प्रदेश को पहले के छह ब्राह्मण मुख्यमंत्री दिए।
साल 1989 में पार्टी की हाथों से सत्ता गंवाने के बाद उत्तर प्रदेश कांग्रेस में ब्राह्मणों का नेतृत्व लगभग फीका पड़ गया और पार्टी ने उसके बाद से ब्राह्मण नेताओं को राज्य की कमान नहीं सौंपी है।
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