इस मंदिर में भगवान की नही कुत्ते की होती हैं पूजा, श्रद्धालु करते है खुशहाली और सुख-समृद्धि की कामना
छत्तीसगढ़ में एक बेजुबान जानवर को उसकी वफादारी के लिए देवता का दर्जा मिला है...
|
भारतीय समाज में सिर्फ देवताओं की ही पूजा नहीं होती, बल्कि समाज के लिए आदर्श पेश करने वाले बेजुवान जानवरों की भी समाधि और मंदिर बनाकर पूजा होती है। इसका उदाहरण है छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के खपरी में स्थित कुकुरदेव मंदिर।
यहां एक स्वामीभक्त कुत्ते की याद में समाधि और मंदिर बनाया गया है जिसने अंतिम सांस तक अपने मालिक के प्रति वफादारी निभाई। इस मंदिर पर जाकर श्रद्धालु अपनी सुख-समृद्धि और खुशहाली की कामना करते हैं।
छत्तीसगढ़ में एक बेजुबान जानवर को उसकी वफादारी के लिए देवता का दर्जा मिला है और प्रदेश के मुखिया खुद इस गहरी लोक परम्परा के सम्मान में सिर नवाते हैं। इसी की बानगी तब देखने को मिली जब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने बालोद जिले के भेंट मुलाकात कार्यक्रम के दौरान खपरी स्थित कुकुरदेव मन्दिर में पूजा अर्चना की।
यह कुकुरदेव मन्दिर आस्था और आश्चर्य का अद्भुत संगम है, मानव-पशु प्रेम की अनोखी मिसाल पेश करता है। यहां एक स्वामीभक्त कुत्ते की समाधि है जो लोकमान्यता के अनुसार अपने मालिक के प्रति आखिरी सांस तक वफादार रहा। मुख्यमंत्री ने कुकुरदेव मन्दिर में पूजा अर्चना कर प्रदेश की सुख समृद्धि और खुशहाली की कामना की।
जनश्रुति के अनुसार खपरी कभी बंजारों की एक बस्ती थी जहां एक बंजारे के पास स्वामी भक्त कुत्ता था। कालांतर में क्षेत्र में एक भीषण अकाल पड़ा जिस वजह से बंजारे को अपना कुत्ता एक मालगुजार को गिरवी रखनी पड़ी। मालगुजार के घर एक दिन चोरी हुई और स्वामीभक्त कुत्ता चोरों द्वारा छुपाए धन के स्थल को पहचान कर मालगुजार को उसी स्थल तक ले गया। मालगुजार कुत्ते की वफादारी से प्रभावित हुआ और उसने कुत्ते के गले में उसकी वफादारी का वृतांत एक पत्र के रूप में बांधकर कुत्ते को मुक्त कर दिया।
जनश्रुति के मुताबिक गले में पत्र बांधे यह कुत्ता जब अपने पुराने मालिक बंजारे के पास पहुंचा तो उसने यह समझ कर कि कुत्ता मालगुजार को छोड़कर यहां वापस आ गया क्रोधवश कुत्ते पर प्रहार किया। जिससे कुत्ते की मृत्यु हो गई। बाद में बंजारे को पत्र देखकर कुत्ते की स्वामी भक्ति और कर्तव्य परायणता का एहसास हुआ और वफादार कुत्ते की स्मृति में कुकुर देव मंदिर स्थल पर उसकी समाधि बनाई। फणी नागवंशीय राजाओं द्वारा 14वीं शताब्दी में यहां मन्दिर का निर्माण करवाया गया।
इस स्थान पर आम लेाग आकर पूजा अर्चना करते हैं और अपनी सुख-समृद्धि के साथ खुशहाली की कामना करते हैं। कुल मिलाकर देखें तो यह ऐसा स्थान है जहां वफादार कुत्ते की याद में बनी समाधि और मंदिर को देवालय का दर्जा हासिल है।
| Tweet |