गुलामी की मानसिकता को संस्कृत से बैर : पीएम मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने कहा है कि गुलामी के एक हज़ार साल के कालखंड में भारत को तरह-तरह से जड़ों से उखाड़ने का प्रयास हुआ, इन्हीं में से एक था संस्कृत भाषा का पूरा विनाश। हम आजाद हुए लेकिन जिन लोगों में गुलामी की मानसिकता नहीं गई, वह संस्कृत के प्रति बैर पाले रहे।
मध्यप्रदेश के सतना में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनता को संबोधित करते हुए। |
राम की नगरी के तौर पर पहचानी जाने वाले चित्रकूट में तुलसी पीठ के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चित्रकूट की परम पावन भूमि को प्रणाम करते हुए कहा मेरा सौभाग्य है, आज पूरे दिन मुझे अलग-अलग मंदिरों में प्रभु श्रीराम के दर्शन का अवसर मिला, और संतों का आशीर्वाद भी मिला है।
विशेषकर जगद्गुरु रामभद्राचार्य का जो स्नेह मुझे मिलता है, वो अभिभूत कर देता है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि अष्टाध्यायी भारत के भाषा विज्ञान का भारत की बौद्धिकता का और हमारी शोध संस्कृति का हजारों साल पुराना ग्रंथ है। कैसे एक-एक सूत्र में व्यापक व्याकरण को समेटा जा सकता है, कैसे भाषा को ‘संस्कृत विज्ञान’ में बदला जा सकता है, महर्षि पाणिनि की ये हजारों वर्ष पुरानी रचना इसका प्रमाण है।
नई भाषाओं ने पुरानी भाषाओं की जगह ली
आप देखेंगे दुनिया में इन हजारों वर्षों में कितनी ही भाषाएं आईं और चली गईं। नई भाषाओं ने पुरानी भाषाओं की जगह ले ली। लेकिन, हमारी संस्कृत आज भी उतनी ही अक्षुण्ण, उतनी ही अटल है। संस्कृत समय के साथ परिष्कृत तो हुई, लेकिन प्रदूषित नहीं हुई।
इसका कारण संस्कृत का परिपक्व व्याकरण विज्ञान है। केवल 14 माहेश्वर सूत्रों पर टिकी ये भाषा हजारों वर्षों से शस्त्र और शास्त्र, दोनों ही विधाओं की जननी रही है। संस्कृत भाषा में ही ऋषियों के द्वारा वेद की ऋचाएं प्रकट हुई हैं। इसी भाषा में पतंजलि के द्वारा योग का विज्ञान प्रकट हुआ है। इसी भाषा में धन्वंतरि और चरक जैसे मनीषियों ने आयुर्वेद का सार लिखा है।
इसी भाषा में कृषि पाराशर जैसे ग्रन्थों ने कृषि को श्रम के साथ-साथ शोध से जोड़ने का काम किया। इसी भाषा में हमें भरतमुनि के द्वारा नाट्यशास्त्र और संगीत शास्त्र का उपहार मिला है। इसी भाषा में कालिदास जैसे विद्वानों ने साहित्य के सामर्थ्य से विश्व को हैरान किया। इसी भाषा में अंतरिक्ष विज्ञान, धनुर्वेद और युद्ध-कला के ग्रंथ भी लिखे गए हैं और ये तो मैंने केवल कुछ ही उदाहरण दिए हैं। ये लिस्ट इतनी लंबी है कि आप एक राष्ट्र के तौर पर भारत के विकास का जो भी पक्ष देखेंगे, उसमें आपको संस्कृत के योगदान के दर्शन होंगे।
संस्कृत भाषा की हुई उपेक्षा
आज भी दुनिया की बड़ी-बड़ी यूनिवर्सिटीज़ में संस्कृत पर रिसर्च होती है। अभी हमने ये भी देखा है कि कैसे भारत को जानने के लिए लिथुआनिया देश की राजदूत ने भी संस्कृत भाषा सीखी है। यानि संस्कृत का प्रसार पूरी दुनिया में बढ़ रहा है। संस्कृत भाषा की हुई उपेक्षा का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा गुलामी के एक हजार साल के कालखंड में भारत को तरह-तरह से जड़ों से उखाड़ने का प्रयास हुआ। इन्हीं में से एक था- संस्कृत भाषा का पूरा विनाश। हम आजाद हुए लेकिन जिन लोगों में गुलामी की मानसिकता नहीं गई, वो संस्कृत के प्रति बैर पालते रहे।
कहीं कोई लुप्त भाषा का कोई शिलालेख मिलने पर ऐसे लोग उसका महिमा-मंडन करते हैं लेकिन हजारों वर्षों से मौजूद संस्कृत का सम्मान नहीं करते। दूसरे देश के लोग मातृभाषा जानें तो ये लोग प्रशंसा करेंगे, लेकिन संस्कृत भाषा जानने को ये पिछड़ेपन की निशानी मानते हैं। इस मानसिकता के लोग पिछले एक हजार साल से हारते आ रहे हैं और आगे भी कामयाब नहीं होंगे।
संस्कृत केवल परम्पराओं की भाषा नहीं है, ये हमारी प्रगति और पहचान की भाषा भी है। प्रधानमंत्री मोदी ने बीते 9 साल में किए गए प्रयासों का जिक्र करते हुए कहा बीते 9 वर्षों में हमने संस्कृत के प्रसार के लिए व्यापक प्रयास किए हैं। आधुनिक संदर्भ में अष्टाध्यायी भाष्य जैसे ग्रंथ इन प्रयासों को सफल बनाने में बड़ी भूमिका निभाएंगे।
रामभद्राचार्य को किया याद
रामभद्राचार्य जी हमारे देश के ऐसे संत है, जिनके अकेले ज्ञान पर दुनिया की कई यूनिवर्सिटीज़ स्टडी कर सकती हैं। बचपन से ही भौतिक नेत्र न होने के बावजूद आपके प्रज्ञा चक्षु इतने विकसित हैं, कि आपको पूरे वेद-वेदांग कंठस्थ हैं। आप सैकड़ों ग्रन्थों की रचना कर चुके है। भारतीय ज्ञान और दर्शन में ‘प्रस्थानत्रयी’ को बड़े-बड़े विद्वानों के लिए भी कठिन माना जाता है। जगद्गुरू जी उनका भी भाष्य आधुनिक भाषा में लिख चुके है। इस स्तर का ज्ञान, ऐसी मेधा व्यक्तिगत नहीं होती, ये मेधा पूरे राष्ट्र की धरोहर होती है और इसीलिए, हमारी सरकार ने 2015 में स्वामी जी को पद्मविभूषण से सम्मानित किया थास्वामी जी जितना धर्म और आध्यात्म के क्षेत्र में सक्रिय रहते है, उतना ही समाज और राष्ट्र के लिए भी मुखर रहते है। मैंने जब स्वच्छ भारत अभियान के 9 रत्नों में आपको नामित किया था, तो वो ज़िम्मेदारी भी आपने उतनी ही निष्ठा से उठाई थी। मुझे खुशी है कि स्वामी जी ने देश के गौरव के लिए जो संकल्प किए थे, वो अब पूरे हो रहे हैं। हमारा भारत अब स्वच्छ भी बन रहा है, और स्वस्थ भी बन रहा है। माँ गंगा की धारा भी निर्मल हो रही है। हर देशवासी का एक और सपना पूरा करने में जगद्गुरू रामभद्राचार्य जी की बहुत बड़ी भूमिका रही है अदालत से लेकर अदालत के बाहर तक जिस राम-मंदिर के लिए आपने इतना योगदान दिया, वो भी बनकर तैयार होने जा रहा है। प्रधानमंत्री ने बुंदेलखंड का जिक्र करते हुए कहा चित्रकूट तो वो स्थान है जहां आध्यात्मिक आभा भी है और प्राकृतिक सौन्दर्य भी है।
पीएम नरेंद्र मोदी ने आगे कहा कि 45 हजार करोड़ रुपये की केन बेतवा लिंक परियोजना हो, बुंदेलखंड एक्स्प्रेसवे हो, डिफेंस कॉरिडॉर हो, ऐसे प्रयास इस क्षेत्र में नई संभावनाएं बनाएंगे। प्रधानमंत्री ने चित्रकूट में सद्गुरु सेवा संघ ट्रस्ट के विभिन्न कार्यक्रमों में हिस्सा लिया, यहां उन्होंने रणछोड़ दास महाराज की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की और उसके बाद श्रीराम संस्कृत महाविद्यालय भी गए। उन्होंने यहां स्वर्गीय अरविंद भाई मफतलाल की समाधि पर पुष्प चढ़ा कर श्रद्धांजलि अर्पित की।
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