MP Assembly Election 2023: : मैदान में उतरे 3 केंद्रीय मंत्री और 4 सांसद क्या BJP को पुन: सत्ता में पहुंचाएंगे?

Last Updated 26 Oct 2023 01:50:09 PM IST

मध्य प्रदेश में 17 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी द्वारा तीन केंद्रीय मंत्रियों समेत सात लोकसभा सांसदों को मैदान में उतारा गया है।


भारतीय जनता पार्टी द्वारा तीन केंद्रीय मंत्रियों समेत सात लोकसभा सांसदों को मैदान में उतारने के बाद यह सवाल उठ रहे हैं कि क्या केंद्र की राजनीति के चेहरे राज्य की सियासत में भी असर डालेंगे और सत्ता विरोधी भावनाओं को नियंत्रित कर भाजपा को दो दशकों में पांचवी बार प्रदेश की सत्ता में पहुंचायेंगे?

विधानसभा चुनाव के लिए तीन केंद्रीय मंत्रियों समेत सात लोकसभा सांसदों को मैदान में उतारने के भाजपा के फैसले को प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में अपेक्षाकृत ज्यादा असर वाले चेहरों पर भरोसा कर खुद को मजबूत करने के प्रयास की तरह देखा जा रहा है।

विधानसभा चुनाव लड़ रहे तीन केंद्रीय मंत्री- नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्लाद सिंह पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते मुख्यमंत्री पद के संभावित दावेदारों के रूप में भी देखे जा रहे हैं।

सत्तारूढ़ दल ने मौजूदा कांग्रेस विधायक संजय शुक्ला के खिलाफ इंदौर-1 विधानसभा सीट से भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को मैदान में उतारा है और इन्हें भी मुख्यमंत्री पद का संभावित चेहरा माना जा रहा है।

वरिष्ठ पत्रकार और लेखक रशीद किदवई कहते हैं कि 230 सदस्यीय विधानसभा के लिए चुनाव में तीन केंद्रीय मंत्रियों के साथ चार लोकसभा सांसदों को मैदान में उतारना कागज पर भले ही भव्य लगे, लेकिन यह सत्तारूढ़ दल की चिंता और घबराहट दर्शाता है।

किदवई के अनुसार, साफ लगता है कि भाजपा की जिला इकाइयों ने तोमर, विजयवर्गीय, पटेल और सांसदों के नामों की सिफारिश टिकटों के लिए नहीं की थी।

उन्होंने कहा कि इन नेताओं को राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में पार्टी को मजबूती देने के लिए भाजपा संसदीय बोर्ड द्वारा चुना गया है।

किदवई ने कहा ‘‘सवाल यह है कि क्या कोई मतदाता सिर्फ इसलिए अपनी प्राथमिकता बदल देगा क्योंकि मौजूदा विधायक या स्थानीय दावेदार को नजरअंदाज कर उसकी जगह लोकसभा सदस्य को टिकट दिया गया है? इस रणनीति में ‘संदेश अधिक लेकिन सार कम’ नजर आता है।’’

पूर्व राज्य भाजपा अध्यक्ष और केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर मुरैना से मौजूदा लोकसभा सांसद है। वह दिमनी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। इस सीट पर कांग्रेस ने एक बार फिर मौजूदा विधायक रविंद्र सिंह तोमर को टिकट दिया है।

सन 1980 के बाद से दिमनी विधानसभा सीट पर हुए 10 चुनावों में से छह में भाजपा जीती। हालांकि, पार्टी मुरैना जिले की सीट पर एक उपचुनाव सहित पिछले सभी तीन चुनाव हार गई।

मुरैना लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले आठ विधानसभा क्षेत्रों में, 2018 के चुनावों में कांग्रेस ने सात और भाजपा ने सिर्फ एक सीट जीती थी। बाद में भाजपा ने उपचुनाव में विपक्षी दल से एक सीट छीन ली।



ग्वालियर स्थित जीवाजी विश्वविद्यालय में पत्रकारिता विभाग के प्रोफेसर भुवनेश सिंह तोमर ने कहा कि पिछले चुनावों में ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में भाजपा के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर थी और इस बार भी स्थिति लगभग वैसी ही है। उन्होंने कहा ‘‘यह फीडबैक भाजपा को मिल गया होगा इसलिए उसने दोहरी रणनीति अपनाई। एक तो, कुछ उम्मीदवारों को बदल दिया गया और दूसरा, इस क्षेत्र से नरेंद्र सिंह तोमर जैसे दिग्गज को मैदान में उतारा गया।’’

भुवनेश तोमर ने कहा कि ऐसा करके भाजपा अपने चुनावी लाभ को अधिकतम करने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा ‘‘माना जाता है कि मतदाताओं के बीच यह धारणा बनाने के लिए एक केंद्रीय मंत्री को मैदान में उतारा गया है कि वह मुख्यमंत्री बन सकते हैं। हालांकि, अंतिम परिणाम भाजपा की, प्रमुख महिला कल्याण योजना ‘लाडली बहना’ से उत्पन्न सद्भावना को वोटों में परिवर्तित करने की क्षमता पर भी निर्भर करेगा।’’

महाकौशल क्षेत्र से केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल और फग्गन कुलस्ते सहित चार मौजूदा सांसदों को टिकट दिया गया है। भाजपा ने जबलपुर से वर्तमान सांसद राकेश सिंह को जबलपुर-पश्चिम विधानसभा सीट से और होशंगाबाद से वर्तमान सांसद उदय प्रताप सिंह को गाडरवारा विधानसभा सीट से मैदान में उतारा है।

केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल को छोड़कर, चुनाव मैदान में उतरे सभी मौजूदा भाजपा सांसदों को उनकी संबंधित लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाले विधानसभा क्षेत्रों में से एक से टिकट दिया गया है। दमोह से मौजूदा लोकसभा सांसद प्रह्लाद पटेल नरसिंहपुर से मैदान में हैं, जो होशंगाबाद संसदीय सीट के अंतर्गत आता है।

नरसिंहपुर विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व वर्तमान में प्रह्लाद पटेल के छोटे भाई जालम सिंह पटेल करते हैं। कांग्रेस ने केंद्रीय मंत्री के खिलाफ लाखन सिंह पटेल को मैदान में उतारा है, जिन्हें 2018 में जालम सिंह पटेल ने हराया था।

मंडला (एसटी) संसदीय सीट से मौजूदा लोकसभा सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते निवास विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं जो उनके संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आती है। केंद्रीय मंत्री ने 1990 में कांग्रेस से निवास सीट छीन ली, लेकिन 1993 में अगले विधानसभा चुनाव में वह हार गए।

सन 2003 के बाद से फग्गन कुलस्ते के भाई राम प्यारे कुलस्ते ने तीन बार यह सीट जीती, लेकिन 2018 में वह हार गए। अब, केंद्रीय मंत्री का मुकाबला कांग्रेस के उम्मीदवार चैन सिंह वरखेड़े से है।

आदिवासी बहुल मंडला लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाले आठ विधानसभा क्षेत्रों में से छह कांग्रेस के पास हैं, जबकि दो पर भाजपा का कब्जा है।

प्रदेश भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और मौजूदा सांसद राकेश सिंह अपना पहला विधानसभा चुनाव जबलपुर (पश्चिम) से लड़ रहे हैं, जो 1990 तक कांग्रेस का गढ़ था। राकेश सिंह का मुकाबला दो बार के कांग्रेस विधायक तरुण भनोट से है, जो कमल नाथ सरकार में (दिसंबर 2018-मार्च 2020) वित्त मंत्री थे।

भगवा पार्टी पहली बार जबलपुर (पश्चिम) से जीती जब 1990 में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा की सास जयश्री बनर्जी ने कांग्रेस से यह सीट छीन ली। यह सीट 2013 तक भाजपा के पास रही। 2013 में इस सीट से कांग्रेस के तरुण भनोट जीते थे।

जबलपुर लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाले आठ विधानसभा क्षेत्रों में से चार पर भाजपा और चार पर कांग्रेस का कब्जा है।

भाजपा ने होशंगाबाद (हाल ही में इसका नाम बदलकर नर्मदापुरम किया गया है) से मौजूदा लोकसभा सांसद उदय प्रताप सिंह को गाडरवारा विधानसभा सीट से मैदान में उतारा है, जो उनके प्रतिनिधित्व वाले संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले विधानसभा क्षेत्रों में से एक है।

सन 2009 में कांग्रेस के टिकट पर चुने गए तीन बार के सांसद उदय प्रताप सिंह 2014 के संसदीय चुनावों से ठीक पहले भाजपा में शामिल हो गए और भगवा पार्टी के लिए होशंगाबाद सीट जीती। उन्होंने 2019 में यह लोकसभा सीट बरकरार रखी। कांग्रेस ने गाडरवारा विधानसभा सीट से मौजूदा विधायक सुनीता पटेल को मैदान में उतारा है।

होशंगाबाद लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली आठ विधानसभा सीटों में से पांच पर भाजपा और तीन पर कांग्रेस का कब्जा है।

जबलपुर के वरिष्ठ पत्रकार रवींद्र दुबे कहते हैं कि भाजपा, महाकौशल पर विशेष ध्यान दे रही है क्योंकि राज्य कांग्रेस प्रमुख कमलनाथ उसी क्षेत्र (छिंदवाड़ा जिले) से आते हैं।

भाजपा ने महाकौशल से चार सांसदों को मैदान में उतारा है और उनमें से दो - पटेल और कुलस्ते - को उनके समर्थक मुख्यमंत्री के संभावित चेहरे के रूप में देख रहे हैं। उनके अनुसार, भाजपा का मानना है कि ये उम्मीदवार क्षेत्र में लहर पैदा कर सकते हैं।

महाकौशल की 38 सीटों में से 2018 में कांग्रेस ने 24, भाजपा ने 13 सीटें जीती थीं, जबकि एक सीट निर्दलीय उम्मीदवार के खाते में गई थी।

दुबे ने कहा कि महाकौशल को कांग्रेस द्वारा सरकार में उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया (जब उसने राज्य में 15 महीने तक शासन किया) और भाजपा द्वारा भी कैबिनेट में उसकी उपेक्षा की गई है।

उन्होंने कहा कि चूंकि कमल नाथ महाकौशल से आते हैं, इसलिए भाजपा इस क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित कर रही है। उन्होंने कहा कि सत्ता विरोधी लहर की चर्चा हो रही है, लेकिन भाजपा अपने प्रदर्शन में सुधार की अपेक्षा कर रही है।

सत्तारूढ़ पार्टी विंध्य क्षेत्र में भी खुद को मजबूत करने की कोशिश कर रही है, जहां उसने दो लोकसभा सांसदों - सतना से चार बार के सांसद गणेश सिंह और सीधी से दो बार की सांसद रीति पाठक, को मैदान में उतारा है।

2004 में अपना पहला लोकसभा चुनाव लड़ने वाले गणेश सिंह सतना विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, जिसे भाजपा 2018 में हार गई थी।

रीति पाठक अपना पहला विधानसभा चुनाव लड़ रही हैं। उनको सीधी विधानसभा सीट पर एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि यहां के मौजूदा भाजपा विधायक केदारनाथ शुक्ला ने घोषणा की है कि वह एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ेंगे।

सीधी लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाले आठ विधानसभा क्षेत्रों में से 2018 में भाजपा ने सात और कांग्रेस ने एक सीट जीती थी।

सतना में पत्रकार संजय गौतम ने कहा कि सीधी में उम्मीदवार बदलने का प्रमुख कारण आदिवासी पेशाब कांड था, जिसमें वर्तमान भाजपा विधायक शुक्ला का एक कथित समर्थक शामिल था।

गौतम ने कहा कि भाजपा के पास (विधानसभा चुनाव के लिए) कोई मजबूत उम्मीदवार नहीं था इसलिए उन्होंने रीति पाठक को सीधी सीट से मैदान में उतारा। एक अन्य लोकसभा सांसद गणेश सिंह को सतना से मैदान में उतारा गया है, जिसका जिले की अन्य सीटों पर प्रभाव पड़ने की संभावना है।

2018 में विंध्य की 30 सीटों में से भाजपा को 24 और कांग्रेस को 6 सीटें मिली थीं।

 

भाषा
भोपाल


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