चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के नए कानून पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू

Last Updated 09 Jan 2025 07:45:26 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्तियों के नए कानून को चुनौती देने वाली याचिकाएं देश की शीषर्स्थ अदालत की राय और विधायी शक्ति के बीच कानूनी लड़ाई है।


चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के नए कानून पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू

संविधान के तहत सुप्रीम कोर्ट की राय सर्वोच्च है या कानून बनाने की विधायी शक्ति, इस पर सुनवाई की जाएगी।

गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने जस्टिस सूर्यकांत, दीपांकर दत्ता और उज्जल भुइयां की बेंच को बताया कि मौजूदा मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार 18 फरवरी को सेवानिवृत्त होने वाले हैं और अगर अदालत ने हस्तक्षेप नहीं किया, तो 2023 के नए कानून के तहत एक नया सीईसी नियुक्त किया जाएगा।

भूषण ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने दो मार्च 2023 के अपने फैसले में सीईसी और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और सीजेआई को शामिल करते हुए एक पैनल का गठन किया था। उन्होंने कहा कि हालांकि, नए कानून के तहत चयन समिति में प्रधानमंत्री, एक केन्द्रीय कैबिनेट मंत्री, नेता प्रतिपक्ष या लोकसभा में सबसे बड़े विरोधी दल के नेता शामिल होंगे। उन्होंने सीजेआई को चयन समिति से हटा दिया है।

अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए चार फरवरी की तारीख तय करते हुए कहा कि वह देखेगी कि किसकी राय सर्वोच्च है। यह अनुच्छेद-141 के तहत अदालत की राय बनाम कानून बनाने की विधायी शक्ति होगा। याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि सरकार ने दो मार्च 2023 के फैसले का आधार नहीं बदला है और एक नया कानून बनाया है।

भूषण ने कहा कि सरकार चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को नियंत्रित नहीं कर सकती, क्योंकि यह लोकतंत्र के लिए खतरा होगा। उन्होंने कहा कि हमारा विचार है कि सरकार देश के चीफ जस्टिस को उस चयन समिति से नहीं हटा सकती, जिसके गठन का निर्देश सुप्रीम कोर्ट ने दो मार्च 2023 को दिया था। शंकरनारायणन ने कहा कि केन्द्र के पास फैसले से बचने का एकमात्र तरीका संविधान में संशोधन करना और कानून पर अमल नहीं करना था।

अदालत ने भूषण और शंकरनारायणन से कहा कि वे तीन फरवरी को न्यायाधीशों को याद दिलाएं कि मामले की सुनवाई अगले दिन की जानी है।  सुप्रीम कोर्ट ने 15 मार्च 2024 को 2023 के उस कानून के तहत नए चुनाव आयुक्तों की नियुक्तियों पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था, जिसके तहत सीजेआई को चयन समिति से बाहर कर दिया था।

अदालत ने नियुक्तियों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई टालते हुए याचिकाकर्ताओं से कहा था कि दो मार्च 2023 के फैसले में प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और सीजेआई सहित तीन सदस्यीय पैनल को संसद की ओर से कानून बनाए जाने तक काम करने का निर्देश दिया गया था। याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स(एडीआर) की तरफ से पेश भूषण ने सीजेआई को बाहर किए जाने के कदम को चुनौती दी। उन्होंने दलील दी कि लोकतंत्र को मजबूत बनाए रखने के लिए निर्वाचन आयोग को राजनीतिक और कार्यकारी हस्तक्षेप से दूर रखा जाना चाहिए।

एडीआर की याचिका में आरोप लगाया गया है कि केन्द्र  सरकार ने फैसले का आधार बदले बिना इसे पलट दिया और नए कानून के तहत गठित चयन समिति की संरचना नियुक्तियों में कार्यपालिका के अत्यधिक हस्तक्षेप के समान थी और निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता के लिए हानिकारक थी।

नए कानून के तहत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता वाली चयन समिति ने 2024 में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के पूर्व अधिकारी ज्ञानेश कुमार और सुखबीर संधू को चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की थी। एनजीओ ने फैसले की वैधता को चुनौती देते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य चुनाव आयुक्त अधिनियम-2023 की धारा-7 के कार्यान्वयन पर रोक लगाने का अनुरोध किया है, जिसके तहत सीजेआई को समिति से बाहर रखा गया है।

यह था पुराना नियम
सुप्रीम कोर्ट ने 2 मार्च 2023 के अपने फैसले में सीईसी और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और सीजेआई को शामिल करते हुए एक चयन समिति का गठन किया था।

समयलाइव डेस्क
नई दिल्ली


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