पुरुषों को भी मासिक धर्म से गुजरना पड़े तो उन्हें इसकी दुश्वारियों का पता चले : सुप्रीम कोर्ट

Last Updated 05 Dec 2024 07:28:32 AM IST

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने प्रदर्शन के आधार पर ट्रायल कोर्ट की एक महिला न्यायाधीश को बर्खास्त करने और गर्भ गिरने के कारण उसे हुई पीड़ा पर विचार न करने के लिए मध्य प्रदेश हाई कोर्ट से नाराजगी जताते हुए कहा कि अगर पुरुषों को भी मासिक धर्म से गुजरना पड़े तो क्या हो।




पुरुषों को भी मासिक धर्म से गुजरना पड़े तो उन्हें इसकी दुारियों का पता चले

जस्टिस बीवी नागरत्ना और एन कोटिर सिंह ने ट्रायल कोर्ट के न्यायाधीशों की बर्खास्तगी के आधार के बारे में हाई कोर्ट से स्पष्टीकरण मांगा। जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि मुझे उम्मीद है कि पुरुष न्यायधीशों पर भी ऐसे मानदंड लागू किए जाएंगे। मुझे यह कहने में कोई झिझक महसूस नहीं हो रही।

महिला गर्भवती हुई और उसका गर्भ गिर गया। गर्भ गिरने के दौरान महिला को मानसिक और शारीरिक आघात झेलना पड़ता है। काश पुरुषों को भी मासिक धर्म होता, तो उन्हें इससे संबंधित दुारियों का पता चलता। उन्होंने न्यायिक अधिकारी के आकलन पर सवाल उठाते हुए यह टिप्पणी की, जिसने सिविल जज को गर्भ गिरने के कारण पहुंचे मानसिक व शारीरिक आघात को नजरअंदाज कर दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने कथित असंतोषजनक प्रदर्शन के कारण राज्य सरकार द्वारा छह महिला दीवानी न्यायाधीशों की बर्खास्तगी पर 11 नवम्बर, 2023 को स्वत: संज्ञान लिया था। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की पूर्ण पीठ ने हालांकि एक अगस्त को पुनर्विचार करते हुए चार न्यायिक अधिकारियों- ज्योति वरकड़े, सोनाक्षी जोशी, प्रिया शर्मा और रचना अतुलकर जोशी को कुछ शतरे के साथ बहाल करने का फैसला किया तथा अन्य दो अदिति कुमार शर्मा और सरिता चौधरी को राहत नहीं दी।

अधिवक्ता चारू माथुर के माध्यम से दायर एक न्यायाधीश की याचिका में दलील दी गई कि चार साल के बेदाग सेवा रिकॉर्ड और एक भी प्रतिकूल टिप्पणी न मिलने के बावजूद, उन्हें कानून की किसी भी उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना बर्खास्त कर दिया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि सेवा से उनकी बर्खास्तगी संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता का अधिकार) और 21 (जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के तहत उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

याचिका में कहा गया है कि यदि कार्य मूल्यांकन में उनके मातृत्व और शिशु देखभाल अवकाश की अवधि को शामिल किया गया तो यह उनके साथ घोर अन्याय होगा। यह स्थापित कानून है कि मातृत्व और शिशु देखभाल अवकाश एक महिला और शिशु का मौलिक अधिकार है, इसलिए, मातृत्व व शिशु देखभाल के लिए ली गई छुट्टियों के आधार पर प्रदर्शन का मूल्यांकन याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकारों का घोर उल्लंघन है।

हाई कोर्ट ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि महिला जज का 2019-20 में बहुत अच्छा था। लेकिन बाद के वर्षो यह बिगड़ गया। उनके पास 1500 मामले पेंडिंग थे और उन्होंने 200 से भी कम केस निपटाए। जज का कहना था कि 2021 में गर्भ गिर गया और फिर उनके भाई को कैंसर हो गया।

समय डिजिटल डेस्क
नई दिल्ली


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