जस्टिस संजीव खन्ना ने ली भारत के 51वें प्रधान न्यायाधीश पद की शपथ

Last Updated 11 Nov 2024 10:14:34 AM IST

भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आज पूर्वाह्न 10 बजे राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में सुप्रीम के जस्टिस को भारत के 51वें प्रधान न्यायाधीश पद की शपथ दिलायी।


जस्टिस संजीव खन्ना राष्ट्रपति भवन में 51वें प्रधान न्यायाधीश पद की शपथ लेते हुए।


बता दें कि जस्टिस संजीव खन्ना चुनावी बॉण्ड योजना को खत्म करने और अनुच्छेद 370 को निरस्त करने जैसे उच्चतम न्यायालय के कई ऐतिहासिक फैसलों का हिस्सा रहे हैं।

न्यायमूर्ति खन्ना ने न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ का स्थान लिया है, जो कि रविवार को सेवानिवृत्त हो गये थे।

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना का कार्यकाल 13 मई 2025 तक ही रहेगा।

इससे पहले, केंद्र ने 16 अक्टूबर को प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ की सिफारिश के बाद 24 अक्टूबर को न्यायमूर्ति खन्ना की नियुक्ति को आधिकारिक रूप से अधिसूचित किया।

शुक्रवार को सीजेआई के रूप में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ का आखिरी कार्य दिवस था और उन्हें शीर्ष अदालत के न्यायाधीशों, वकीलों और कर्मचारियों द्वारा जोरदार विदाई दी गई थी।

जस्टिस संजीव खन्ना का इतिहास

न्यायमूर्ति खन्ना ने जनवरी 2019 से सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में कार्यरत रहे। खन्ना कई ऐतिहासिक निर्णयों का हिस्सा रहे हैं जैसे कि EVM की पवित्रता को बरकरार रखना, चुनावी बांड योजना को खत्म करना, अनुच्छेद 370 को निरस्त करना और पूर्व दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत देना जैसे निर्णय शामिल रहे।

बता दें कि न्यायमूर्ति खन्ना दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति देव राज खन्ना के बेटे और टॉप अदालत के प्रमुख पूर्व न्यायाधीश एच आर खन्ना के भतीजे हैं।

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, 18 जनवरी, 2019 को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में प्रमोट हुए थे, हाईकोर्ट के जज के रूप में नियुक्त होने से पहले वे तीसरी पीढ़ी के वकील थे। वह लंबित मामलों को कम करने और न्याय बांटने में तेजी लाने के उत्साह से प्रेरित हैं।

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना के चाचा पूर्व न्यायाधीश एच आर खन्ना 1976 में आपातकाल के दौरान कुख्यात एडीएम जबलपुर मामले में असहमतिपूर्ण फैसला लिखने के बाद इस्तीफा देकर सुर्खियों में आये थे।

आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों के हनन को बरकरार रखने वाले संविधान पीठ के बहुमत के फैसले को न्यायपालिका पर "काला धब्बा" माना गया।      

समय डिजिटल डेस्क
नई दिल्ली


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