देश की संसद और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए सीट आरक्षित करने का मुद्दा पिछले कई दशकों से राजनीति को गर्माता रहा है।
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मसला चूंकि देश की लगभग आधी आबादी से जुड़ा हुआ है जो पंचायत से लेकर पार्लियामेंट तक नेताओं को कुर्सी पर बैठाती हैं और चुनाव हराकर सत्ता से बाहर भी कर देती हैं।
सरकार द्वारा अमृत काल को लेकर बुलाए गए संसद के विशेष सत्र ने एक बार फिर से महिला आरक्षण के समर्थकों की उम्मीदें बढ़ा दी है।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के बयान से भी इन अटकलों को बल मिला है कि सरकार 18 सिंतबर से शुरू होने जा रहे संसद के विशेष सत्र में देश की आधी आबादी से जुड़े महत्वपूर्ण महिला आरक्षण विधेयक को संसद में पेश कर सकती है।
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने अपने बयान में कहा था कि वह दिन दूर नहीं हैं, जब महिलाओं को संविधान में संशोधन के माध्यम से संसद और विधानसभाओं में उनका उचित प्रतिनिधित्व मिलेगा। उपराष्ट्रपति ने तो यहां तक कह दिया कि अगर यह आरक्षण जल्द मिल जाएगा तो भारत 2047 से पहले विश्व शक्ति बन जाएगा।
आपको याद दिला दें कि देश की संसद और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण की दशकों पुरानी मांग को स्वीकार करते हुए 1996 में कांग्रेस समर्थित एचडी देवेगौड़ा सरकार ने विधेयक को पेश किया। लेकिन, बाद में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी द्वारा समर्थन वापस लेने के बाद उनकी सरकार ही गिर गई थी।
भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के कार्यकाल में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 1998, 1999, 2002 और 2003 में महिला आरक्षण से जुड़े बिल को सदन में पेश किया। लेकिन, सरकार इस पर राजनीतिक सहमति बनाकर बिल को पारित करवाने में कामयाब नहीं हो पाई।
वर्ष 2004 में कांग्रेस के नेतृत्व वाला यूपीए गठबंधन सत्ता में आया और मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री बने। मनमोहन सरकार के कार्यकाल में वर्ष 2008 में महिला आरक्षण से जुड़े विधेयक को उच्च सदन राज्यसभा में पेश किया गया।
वर्ष 2010 में यूपीए सरकार ने भाजपा, लेफ्ट और अन्य दलों के समर्थन से भारी बहुमत के साथ राज्यसभा से इस बिल को पारित करवा लिया। लेकिन, यह लोकसभा से पारित नहीं होने के कारण कानून की शक्ल नहीं ले सका।
ऐसे में यह माना जा रहा है कि अगर मोदी सरकार महिलाओं को आरक्षण देने का फैसला कर लेती है तो वह नए सिरे से इस बिल को फिर से संसद के दोनों सदनों में लाकर उसे पारित करवाने का प्रयास करेगी।
हालांकि, 18 से 22 सितंबर के दौरान आयोजित होने वाले संसद के विशेष सत्र के एजेंडे को लेकर सरकार की तरफ से आधिकारिक तौर पर फिलहाल कोई जानकारी नहीं दी गई है। लेकिन, सूत्रों की मानें तो अमृत काल को लेकर बुलाए गए इसी सत्र में गणेश चतुर्थी के अवसर पर दूसरे दिन यानी 19 सितंबर से संसद की कार्यवाही नए भवन में शुरू होगी इसलिए सरकार इस सत्र को ऐतिहासिक और यादगार बनाने के लिए कोई बड़ा कदम उठा सकती है।
ऐसे में क्या सरकार वाकई संसद के विशेष सत्र में महिला आरक्षण विधेयक लाने की तैयारी कर रही है, इस सवाल का जवाब देते हुए सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री ने कहा कि भाजपा शुरू से ही महिला आरक्षण की पक्षधर रही है।
वर्ष 2010 में भी भाजपा के समर्थन से ही भारी बहुमत के साथ राज्यसभा में यह बिल पास हुआ था और महिला आरक्षण को लेकर भाजपा की प्रतिबद्धिता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अटल सरकार के दौरान भी भाजपा ने कई बार इस बिल को सदन से पारित करवाने का प्रयास किया और वर्ष 2008 से ही भाजपा अपने संगठन में भी महिलाओं को आरक्षण दे रही है।
हालांकि, बिल को संसद के इसी विशेष सत्र में लाने के सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि सरकार नियम और प्रक्रिया के मुताबिक उचित समय पर संसद के विशेष सत्र के एजेंडे के बारे में जानकारी भी देगी।
हालांकि, इसके साथ ही विपक्षी दलों पर निशाना साधते हुए उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा का स्टैंड पूछने वाले दलों को अपने आरजेडी और सपा जैसे साथी दलों से यह पूछना चाहिए कि महिला आरक्षण पर अब उनका स्टैंड क्या है? अगर सरकार संसद में महिला आरक्षण का बिल लेकर आती है तो क्या विपक्षी 'घमंडिया' गठबंधन में शामिल दल लोकसभा और राज्यसभा, दोनो सदनों में बिल का समर्थन करेंगे?
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