जंगे आजादी में उर्दू की रही महत्वपूर्ण भूमिका : उपेन्द्र राय

Last Updated 28 Mar 2022 03:20:18 AM IST

सहारा इंडिया मीडिया नेटवर्क के कार्यकारी निदेशक, सीईओ एवं एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय का कहना है कि भाषाएं वही जिंदा रहती हैं जिनमें प्रयोगधर्मिंता की जगह होती है।


उर्दू मीडिया की 200वीं वषर्गांठ पर मौलवी मो. बकर का पोट्रेट जारी करते सहारा इंडिया मीडिया के कार्यकारी निदेशक, सीईओ एंड एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय।

उन्होंने कहा कि उर्दू का जन्म हिंदुस्तान में हुआ है और यह हिंदुस्तान की भाषा है। उन्होंने कहा कि उर्दू प्रोग्रेसिव भाषा है, जंगे आजादी में उर्दू ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

श्री राय रविवार को प्रेस क्लब ऑफ इंडिया द्वारा उर्दू पत्रकारिता के 200 वर्ष पूरे होने पर आयोजित समारोह को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे। अपने संबोधन में उन्होंने जहां उर्दू भाषा से अपने परिचय को लेकर अपने संस्मरण सुनाए तो वहीं उर्दू भाषा को यथोचित सम्मान न मिलने पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि सातवीं शताब्दी के दौरान जब अन्य देशों के लोग भारत में व्यापार के लिए आने लगे तो उस दौरान भारत में एक नई भाषा ने आकार लिया, शुरू में इस भाषा को यूर्दू कहा गया और फिर यह उर्दू हो गई। उन्होंने कहा कि उर्दू की जमीन हिंदुस्तान है जहां उर्दू का जन्म हुआ है।

उन्होंने कहा कि उर्दू प्रोग्रेसिव भाषा है, जंगे आजादी में उर्दू ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह जबान आजादी के सभी तरानों में दिखाई देती है तथा आजादी की लड़ाई लड़ने वाले सभी लोग इसी जबान का इस्तेमाल करते थे। उन्होंने कहा कि उर्दू को सरपरस्ती नहीं मिली है, उन्होंने कहा कि भाषा वही जिंदा रहती है, ज्यादा दूर तक असर करती है जिसमें प्रयोगधर्मिंता की जगह होती है। उर्दू में सबसे ज्यादा प्रयोगधर्मिंता की जगह थी। यह भाषा हिंदी, फारसी, तुर्की आदि को मिलकर बनी। इसमें सभी भाषाओं के शब्द हैं।

उन्होंने नाना सहिब पेशवा के सचिव अजीमुल्ला खान के गीत ‘हम हैं इसके मालिक हिंदुस्तान हमारा’ का जिक्र करते हुए कहा कि पहले धारा एक थी, जबान एक थी, भावना एक थी लेकिन जितना नुकसान तमाम आक्रांताओं ने मिलकर नहीं किया उससे कहीं अधिक नुकसान बंटवारे ने किया है। उन्होंने कहा कि आजादी से पहले देश में कुल 415 अखबार थे जिनमें से 70 अखबारों ने पाकिस्तान जाना स्वीकार किया। उन्होंने कहा कि आज अंग्रेजी भाषा इतनी प्रभावी इसलिए है क्योंकि दुनिया में अंग्रेजी व्यापार व रोजगार की भाषा बनी जबकि उर्दू भाषा क्यों पिछड़ी क्योंकि उर्दू न तो व्यापार की भाषा बनी, न इस भाषा में किताबें लिखी गई, न ही रक्षा के जर्नल लिखे गए, यही स्थिति हिंदी की भी रही।

उन्होंने कहा कि अब जो दुनिया बन रही है उस पर ध्यान देने तथा इतिहास से सीखने की आवश्यकता है। फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि जो लोग आगे की सोचते हैं वही क्रांति करते हैं। हिंदी व उर्दू में सोचने वाले अब क्रांति नहीं कर पा रहे हैं। उन्होंने कहा कि उर्दू भाषा अभी भी दैनिक व्यवहार में बोलचाल की भाषा तो है लेकिन इस जबान का मुस्तकबिल नहीं बन पा रहा है। उन्होंने कहा कि नई चीजें बनाने के लिए लंबी छलांग लगानी होगी। समय आगे निकल रहा है और हम पीछे छूट रहे हैं। हमें इतिहास से सीखना होगा और लंबी छलांग लगानी होगी।

रोजनामा राष्ट्रीय सहारा उर्दू के ग्रुप एडिटर अब्दुल माजिद निजामी ने कहा कि मौजूदा वक्त में उर्दू पत्रकारिता फलफूल रही है और नई नस्ल भी इसके साथ जुड़ रही है। हमें उर्दू पत्रकारिता को रोजगार से जोड़ना चाहिए। वरिष्ठ पत्रकार कुर्बान अली व रोहिणी सिंह ने कहा कि उर्दू की बदकिस्मती यह है कि उर्दू केवल मुसलमानों की भाषा बना दी गई। उन्होंने कहा कि उर्दू को पिछली सरकारों ने उचित सम्मान नहीं दिया। समारोह को प्रेस क्लब के अध्यक्ष उमाकांत लखेड़ा, सचिव विनय कुमार, वरिष्ठ पत्रकार शाहिद सिद्दकी, राजेश सिंह बादल, लवलीन, अहमद जावेद, खालिद मुल्ला, हिदायतुल्ला, डॉ. इरफान, शेख मंजूर जहूर ने भी संबोधित किया। समारोह का संचालन डॉ. एयू आसिफ ने किया।

सहारा न्यूज ब्यूरो
नई दिल्ली


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