दागी ‘माननीयों’ पर सुप्रीम सख्ती
वर्तमान तथा पूर्व सांसदों के खिलाफ फौजदारी मुकदमों को वापस लेने की प्रवृत्ति पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त आपत्ति जताई है। कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक तथा असंगत कारणों से पूर्व एवं वर्तमान विधायकों व सांसदों के खिलाफ फौजदारी के मुकदमे वापस नहीं लिए जाने चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट |
चीफ जस्टिस एनवी रमण, जस्टिस विनीत सरन और सूर्यकांत की बेंच ने निर्देश दिया कि नेताओं के खिलाफ दर्ज मुकदमे संबंधित हाई कोर्ट की अनुमति के बिना वापस नहीं लिए जा सकेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने यह कदम उस समय उठाया, जब न्याय मित्र विजय हंसारिया ने अदालत को संगीन मुकदमे वापस लेने की सूची सौंपी। इनमें उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर में 2013 में हुए सांप्रदायिक दंगों के अभियुक्तों के खिलाफ आपराधिक मुकदमे वापस लेने का भी जिक्र था। राज्य विधान सभा के सदस्यों के खिलाफ मुकदमे वापस लेने की अर्जी राज्य सरकार ने दायर की है। इसके अलावा कर्नाटक में भी राजनीतिक नेताओं के खिलाफ दर्ज मुकदमे वापस लेने का जिक्र हंसारिया ने किया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 321 के तहत राज्य सरकार को मुकदमे वापस लेने का अधिकार है, लेकिन इसका उपयोग जनहित में ही किया जा सकता है। राजनीतिक तथा अन्य बाहरी कारणों से केस वापस नहीं लिए जा सकते।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले माह केरल बनाम अजीत एवं अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला दिया और कहा कि इस केस में शीर्ष अदालत ने मुकदमे वापस लेने के लिए दिशा निर्देश जारी किए हैं। हर सरकार को इन गाइडलाइंस का पालन करना पड़ेगा।
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