हिंसा कभी कश्मीरियत का हिस्सा नहीं थी, आज की हकीकत बन गई है: रामनाथ कोविंद
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंगलवार को कहा कि लोकतंत्र में मतभेदों को दूर करने तथा नागरिकों की सर्वोत्तम क्षमता को सामने लाने की ताकत है और कश्मीर इस दृष्टिकोण को ‘खुशी’ से साकार कर रहा है।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद |
यहां कश्मीर विश्वविद्यालय में दीक्षांत समारोह को संबोधित कर रहे राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘ मेरा अटूट विश्वास है कि लोकतंत्र में मतभेदों को दूर करने, नागरिकों की सर्वोत्तम क्षमता को सामने लाने की ताकत है। और कश्मीर खुशी खुशी इस दृष्टिकोण को साकार कर रहा है।’’
जम्मू-कश्मीर के चार दिवसीय दौरे पर आए कोविंद ने कहा कि हिंसा कभी भी ‘कश्मीरियत’ का हिस्सा नहीं थी लेकिन यह रोजमर्रा की हकीकत बन गई। उन्होंने कहा, ‘‘यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण था कि शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की यह उत्कृष्ट परंपरा टूट गई और हिंसा, जो कि कभी कश्मीरियत का हिस्सा नहीं थी, वह रोजमर्रा की वास्तविकता बन गई।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ हिंसा कश्मीरी संस्कृति से कोसों दूर थी और इसे केवल विचलन करार दिया जा सकता है जो कि अस्थायी है, बहुत हद तक एक वायरस की तरह जो कि शरीर पर हमला करता है और जिसे फिर मुक्त करने की जरूरत होती है। अब इस जमीन का खोया हुआ गौरव पुनः प्राप्त करने के लिए नई शुरुआत और दृढ़ प्रयास किए जा रहे हैं।’’
उन्होंने कहा कि कश्मीर विभिन्न संस्कृतियों का मिलन बिंदु रहा है।
कश्मीर की कवयित्रियों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, ‘‘ मध्य युग में, वह लाल देड़ थीं, जिन्होंने विभिन्न आध्यात्मिक संस्कृतियों को साथ लाने का रास्ता दिखाया था। लल्लेश्वरी के कार्यों में आप देख सकते हैं कि कैसे कश्मीर सांप्रदायिक सद्भाव और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का रूप प्रदान करता है।’’
कोविंद ने कहा कि कश्मीर आए लगभग सभी धर्मों के लोगों ने यहां की अनूठी संस्कृति ‘कश्मीरियत’ को अपनाया और रुढ़िवाद त्यागकर अपने समुदाय के लोगों के बीच सहिष्णुता और आपसी मेलजोल को बढ़ावा दिया।
उन्होंने कहा, ‘‘ मैं इस अवसर पर कश्मीर के युवा वर्ग से अपील करता हूँ कि वे इसकी समृद्ध विरासत से सीख लें। उनके पास यह जानने की पूरी वजह है कि कश्मीर भारत के बाकी हिस्सों के लिए हमेशा ही आशा का पुंज रहा है। यहां के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक प्रभाव की छाप पूरे भारत पर है।’’
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