चीन को मात देने के लिए भारत को साइबर स्पेस में आक्रमण करने की क्षमता हासिल करनी होगी

Last Updated 05 Jul 2021 03:42:20 PM IST

चीन और पाकिस्तान से दोहरी सैन्य चुनौती के मुकाबले की रणनीति पर काम कर रहे भारत को सामरिक विशेषज्ञों ने सलाह दी है कि चीन को सामरिक रूप से मात देने के लिए भारत को साइबर स्पेस में आक्रमण करने की क्षमता जल्द से जल्द हासिल करनी होगी।


‘चीन को हराने के लिए भारत को साइबर आक्रमण की क्षमता हासिल करनी होगी’

जाने माने रणनीतिक चिंतक हर्ष वी. पंत ने पंद्रह देशों में रणनीतिक विषयों पर काम करने वाले संगठन इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडी के एक अध्ययन का हवाला देते हुए एक लेख में कहा है कि भारत की सारी साइबर ताक़त पाकिस्तान के ख़्ालिाफ़ लग रही है। जबकि बगल में मौजूद चीन साइबर डोमेन में घातक हमले कर रहा है।

उन्होंने कहा कि हमारी सामरिक रणनीति का केन्द्र बहुत पहले से पाकिस्तान पर रहा है जिससे हमारे संस्थान भी पाकिस्तान केंद्रित हैं। लेकिन बदलते वक्त में पाकिस्तान और चीन को अलग-अलग देखना ग़लत है। भारत के लिए टू फ्रंट वॉर वाली स्थिति है। कई चीजें चीन खुद नहीं करेगा, लेकिन उसकी ओर से पाकिस्तान करेगा।

इसलिये भारत के लिए पाकिस्तान को चीन के प्रॉक्सी के रूप में देखना जरूरी हो गया है। हालांकि पिछले साल गलवान की घटना के बाद से माइंडसेट बदल रहा है और हमने देखा है कि कैसे हर क्षेत्र में अब फोकस चीन पर है।

श्री पंत ने अध्ययन में भारत की साइबर युद्ध की तैयारियों की समीक्षा करते हुए कहा कि भारत के पास साइबर वॉर के मामले में तैयारी कम और कमियां ज्यादा है। उन्होंने कहा कि सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि चीन और पाकिस्तान, दोनों देश सामान्य देश नहीं हैं।

एक तरफ है पाकिस्तान, जहां सेना बेहद ताकतवर है और एक तरह से वही स्टेट है। पाकिस्तान की विदेश नीति में सेना की प्राथमिकताएं हावी हैं। दूसरी तरफ है चीन, जो पारदर्शी नहीं है और हक़ीक़त छिपाने में माहिर है। अमेरिका जैसे देश तक को पता नहीं चल पाता कि वहां क्या चलता है। चीन में भी पिछले कुछ बरसों से सेना का वर्चस्व बढ़ा है।

उन्होंने कहा, ‘‘जब आपके दोनों तरफ दो ऐसे मुल्क हों, जिनमें सेना गैर परंपरागत तौर-तरीके यानी ‘ग्रे जोन ऑपरेशन’ इस्तेमाल कर रही है. इसे ऐसे समझें कि पाकिस्तानी सेना सीधे भारतीय सेना के सामने नहीं आ सकती इसलिए वह आतंकवाद को प्रायोजित करती है. यही ग्रे जोन ऑपरेशन है।

इसी तरह से चीन की सारी कोशिश यही रहती है कि उसकी क्षमताएं छिपी रहीं और गैर परंपरागत तरीके से अपने विरोधी को झुकाए। इसलिए वह हैकर्स का इस्तेमाल करता है, उन्हें पैसे देता है। अगर हैकर्स ने काम कर दिया, तो वह कह देगा कि इसमें उसका कोई हाथ नहीं। लेकिन भारत के पास भी क्षमता किसी से कम नहीं है। चीन वुहान जैविक प्रयोगशाला में जो साजिश हुई, उसका खुलासा भारतीयों ने यहां से बैठे-बैठे कर दिया था।’’

श्री पंत ने कहा कि इसके बावजूद भारत की सैन्य नीति में साइबर युद्ध के बारे में पर्याप्त बातें नहीं हैं। भारत की साइबर क्षमता का कैसे इस्तेमाल करना है, इसकी कोई चर्चा नहीं है। सेना भी उतनी प्रशिक्षित नहीं है। जबकि चीन ने इस मामले में बहुत बढ़त हासिल कर ली है। चीन के द्वारा भारत सहित पश्चिमी देशों पर होने वाले साइबर हमलों को हमने देखा है। उससे तुलना करने पर यह मानना पड़ेगा कि हमारी आक्रमण क्षमता बेहद कम है।

उन्होंने कहा, ‘‘अगर यह मान रहे हैं कि चीन के साथ सीमा पर जो लड़ाई चल रही है, वही लड़ाई है तो जान लीजिए कि चीन ऐसे कभी नहीं लड़ता। वह दूसरे देश की कमजोरी पर हमला करता है। हमने जब दिखा दिया कि हम भी सीमा पर खड़े हो सकते हैं, तो वह वहां पर क्यों लड़ाई करेगा? वह हमारी कमजोरी को ढूंढेगा और वहां हमला करेगा। और हम एक मामले में कमजोर हैं भी। हमारी सरकारी वेबसाइटें हैक हो जाती हैं, डेटा सेक्टर्स हैक हो जाते हैं। इन्हें सुरक्षित करने के साथ भारत को हमला करने लायक भी बनना होगा। आपको यह भी दिखाना पड़ेगा दूसरे देश को कि अगर आप पर साइबर हमला हुआ तो आप भी जवाब में आक्रमण करने लायक हैं।’’

श्री पंत ने जोर देकर कहा कि भारत को साइबर हमले के लिए भी अपनी क्षमता बनानी होगी और हमले की क्षमता बनाना बहुत मुश्किल काम नहीं है। अगर हमें हैकर्स चाहिए तो आज भारत में ढेरों मिल जाएंगे। नौजवान तो इस काम में माहिर हैं। उन्होंने ब्रिटेन का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां ऐसे ही लोगों को रखा गया है। लेकिन भारत में अभी इस तरह का कोई प्रावधान ही नहीं है। अभी इस बारे में सोचा ही जा रहा है। वैसे नीति बनाने वालों को अच्छे से पता है कि उनके पास अब कोई दूसरा चारा नहीं है।

उन्होंने कहा कि परमाणु युद्ध के मामले में जो तर्क इस्तेमाल होता है, वही तर्क साइबर हमले के मामले में भी है। दूसरा देश तभी साइबर युद्ध से हिचकिचाएगा, जब उसे लगेगा कि आप भी हमला कर सकते हैं। और यह कोई पारंपरिक शस्त्र खरीद का मामला नहीं है कि बंदूक अमेरिका और राफेल फ्रांस से खरीद लाए। इसमें क्षमता विकसित करनी पड़ेगी। यह साइबर सुरक्षा समन्वय का मामला है। एक सामरिक नीति बनानी पड़ेगी।

उन्होंने कहा कि भारत को इस बारे में रूस से अपेक्षित मदद मिलने में मुश्किल पेश आ सकती है क्योंकि रूस एवं चीन के बीच संबंधों का गणित इसके पक्ष में नहीं है। इसलिए भारत को पश्चिमी देशों खासकर इजरायल से मदद मिलने की उम्मीद है। इजरायल से सीखने वाली बात यह है कि वह साइबर युद्ध को आक्रमण के रूप में भी इस्तेमाल करता है। ईरान में हाल ही में कुछ संस्थाओं पर बड़े साइबर हमलों के पीछे इजरायल का ही हाथ माना जाता है। इसका मतलब हुआ कि वह रक्षा करना जानता है और हमला करना भी। पश्चिमी देशों में हमें अमेरिका से सीखना होगा कि किस तरह से अपने मुक्त समाज की सुरक्षा की जाती है।

उन्होंने कहा कि गत वर्ष पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर गलवान घाटी में भारत एवं चीन की सेनाओं के टकराव की घटना के बाद होने वाले साइबर हमलों को देखें तो यह मानकर चलना होगा कि हमारी जितनी संस्थाएं हैं, वे हैकिंग का शिकार बन सकती हैं। भारत को इसे समझ कर अपनी सामरिक साइबर नीति बनानी पड़ेगी। हम एक खुला समाज हैं, यहां लोकतंत्र है। चीन की तरह हम खुद को बंद नहीं कर सकते इसलिए अपने महत्वपूर्ण अवसंरचनात्मक ढांचे को सुरक्षित करना होगा। इन महत्वपूर्ण क्षेत्रों में फार्मा उद्योग और विद्युत ग्रिड आते हैं जिन पर पिछले दिनों साइबर हमले हुए थे।

वार्ता
नयी दिल्ली


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