विजय दिवस: पीएम मोदी ने प्रज्‍ज्वलित की 'स्‍वर्णिम विजय मशाल', शहीदों को किया नमन

Last Updated 16 Dec 2020 10:26:39 AM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1971 की लड़ाई में पाकिस्तान पर निर्णायक और ऐतिहासिक जीत के 50 वर्ष पूरे होने के मौके पर आज यहां राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर स्वर्णिम विजय मशाल प्रज्वलित की।


विजय दिवस: मोदी ने नेशनल वॉर मेमोरियल पर शहीदों को किया नमन

देश में इस जीत के उपलक्ष में आज से स्वर्णिम विजय वर्ष मनाया जा रहा है। इस दौरान समूचे देश में साल भर तक विभिन्न जगहों पर विजय समारोह का आयोजन किया जाएगा।

मोदी ने बुधवार को युद्ध स्मारक जाकर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की और युद्ध स्मारक की अमर जवान ज्योति से चार स्वर्णिम विजय मशाल प्रज्वलित की।



इन मशालों को सेना के विशेष वाहनों में देश के विभिन्न हिस्सों विशेष रुप से महावीर चक्र तथा परमवीर चक्र से सम्मानित सेना के रणबांकुरों के गांव तथा उन जगहों पर ले जाया जाएगा जहां पाकिस्तानी सेना के साथ लड़ाई हुई थी।

युद्ध स्थलों तथा शहीदों के और शौर्य चक्र विजेताओं के गांव की मिट्टी भी राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर लायी जाएगी।

युद्ध स्मारक पर इस आयोजन के मौके पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, रक्षा राज्य मंत्री श्रीपद येसो नायक, चीफ ऑफ डिफेंस स्टॉफ जनरल बिपिन रावत, तीनों सेनाओं के प्रमुख और कई अन्य गणमान्य व्यक्ति भी मौजूद थे।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 1971 की लड़ाई में पाकिस्तान पर ऐतिहासिक जीत की याद में मनाए जाने वाले विजय दिवस पर सेना के शौर्य को नमन किया है।

सिंह ने बुधवार को अपने संदेश में कहा, “आज विजय दिवस के अवसर मैं भारतीय सेना के शौर्य एवं पराक्रम की परम्परा को नमन करता हूँ। मैं स्मरण करता हूँ उन जांबाज सैनिकों की बहादुरी को जिन्होंने 1971 के युद्ध में एक नयी शौर्यगाथा लिखी। उनका त्याग और बलिदान सभी भारतीयों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। यह देश उन्हें हमेशा याद रखेगा।”



शाह ने कहा, “1971 में आज ही के दिन भारतीय सेना ने अपने अदम्य साहस और पराक्रम से मानवीय स्वतंत्रता के सार्वभौमिक मूल्यों की रक्षा करते हुए विश्व मानचित्र पर एक ऐतिहासिक बदलाव किया।इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से अंकित यह शौर्यगाथा हर भारतीय को गौरवान्वित करती रहेगी। विजय दिवस की शुभकामनाएं।”



उल्लेखनीय है कि 1971 की लड़ाई में भारतीय सेना ने पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी थी और पाकिस्तान के 90000 से भी अधिक सैनिकों को समर्पण करना पड़ा था।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यह किसी सेना का सबसे बड़ा आत्मसमर्पण था। इस जीत के बाद ही बंगलादेश एक नए राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया था।

 

 

वार्ता
नई दिल्ली


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