जैविक खेती करेगी किसानों की आय दोगुनी : आचार्य देवव्रत
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने का जो लक्ष्य रखा है उसे हासिल करने में जैविक खेती की निर्णायक भूमिका होगी।
गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत से सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय की खास बातचीत |
इस तकनीक से खेती करने वाले किसान शून्य लागत पर ज्यादा पैदावार ले रहे हैं। देश की शिक्षा व्यवस्था और खेतीबाड़ी जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत से सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय ने विशेष बातचीत की। पेश है विस्तृत बातचीत-
आप एक शिक्षाविद रहे हैं। जिस गुरुकुल में कभी 10 छात्र पढ़ते थे जब आपने वहां की व्यवस्था को संभाला तो आज वहां 20 हजार छात्र-छात्राएं अध्ययन कर रहे हैं। यह चमत्कार आपने कैसे किया?
कुरुक्षेत्र के गुरुकुल की स्थापना स्वामी श्रद्धानंद द्वारा की गई थी। मुझे इसकी जिम्मेदारी मात्र 21 वर्ष की आयु में मिली थी। हमारी 200 एकड़ जमीन पर लोगों ने कब्जा कर लिया था। इसके अलावा भी कई चुनौतियां थीं। पहले लोगों की सोच थी कि जिन बच्चों को घर में नहीं संभाल पाते हैं सिर्फ उन्हें ही सुधार की दृष्टि से गुरुकुल भेजा जाता था। हमने सुनियोजित तरीके से गुरुकुल के विकास में कड़ी मेहनत की। आज हमारे चार गुरु कुल हैं। जहां 300 बच्चों के प्रवेश के लिए हर साल 8000 बच्चे प्रतियोगी परीक्षा में बैठते हैं। हमारे गुरुकुल का कोई बच्चा द्वितीय श्रेणी में नहीं आता है। सभी बच्चे प्रथम श्रेणी में पास होते हैं। ज्यादातर 90 फीसद से ऊपर अंक लाते हैं या मेरिट में आते हैं। हमारे गुरुकुल के सात बच्चे पिछले साल आईआईटी में गए, 12 बच्चे पीएमटी और एनडीए में गए। वहीं बड़ी तादाद में एनआईटी में बच्चों को एडमिशन मिला। गुरुकुल में आज शिक्षा और संस्कार दोनों मिलते हैं और राष्ट्र के लिए समर्पित युवा हमारे गुरुकुल से निकलते हैं। चार गुरु कुलों में से एक बच्चियों के लिए अंबाला में बनाया गया है जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ की मुहिम को आगे बढ़ाता है।
आज देश में कान्वेंट स्कूलों की तादाद ज्यादा है लेकिन इन स्कूलों में भारतीय संस्कृति को लेकर उदासीनता देखने को मिलती है। भारतीय मूल्यों को लेकर अभिभावकों में इतनी झिझक क्यों है?
जैसा मैंने बताया कि गुरु कुल में उन्हीं बच्चों को भेजा जाता था जिन्हें घर में काबू नहीं कर पाते थे। हमने सर्वांगीण विकास के लिए योजना बनाई। यहां बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ अच्छा स्वास्थ्य भी मिला। 200 एकड़ भूमि और 300 गायों की वजह से बच्चों को शुद्ध भोजन और दूध मिलता है। माता-पिता भी सोचते हैं कि गुरुकुल में बच्चे का स्वास्थ्य भी अच्छा होगा और संस्कार भी मिलेंगे। पढ़ाई में हमने आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ योग प्राणायाम और पुरातन शिक्षा को भी शामिल किया। आज हमारे यहां सीबीएसई और अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई होती है तो साथ ही साथ प्राचीन संस्कारों को भी छात्रों में डाला जाता है। माता-पिता को विश्वास है कि बच्चा गुरु कुल में आया है तो कुछ बनकर ही निकलेगा। जहां तक मेरे संघर्ष की बात है तो 22 साल तक मैं कंधे पर बोरी टांग कर गांव-गांव दान इकट्ठा करता रहा। विरोध भी झेलना पड़ा और बहुत चुनौतियां भी सामने आई। हम बच्चों से बहुत थोड़ा पैसा लेते हैं इसीलिए धन की आवश्यकता के लिए दान लिया। अंत में इसी बात का अहसास हुआ कि यदि आपकी नीयत साफ हो तो ईश्वर भी आपके साथ होता है।
कृषि क्षेत्र में ऑर्गेनिक फार्मिंंग की पहुंच आम आदमी तक भी हो सके इसके लिए आप क्या सुझाव देंगे?
आपने बहुत अच्छा प्रश्न पूछा है। पूरे देश और दुनिया में आज रासायनिक खेती हो रही है। एक समय ऐसा भी था जब हमारे यहां कोई कैंसर, हार्टअटैक और शुगर जैसी बीमारियों के बारे में जानता भी नहीं था। रासायनिक उर्वरकों से आज हमारा भोजन दूषित हो चुका है। यह आहार रोग पैदा कर रहा है। हमारे गुरु कुल की 200 एकड़ भूमि में हमने इसे प्रैक्टिकल तौर पर सामने रखा है कि ऑर्गेनिक यानी जैविक खेती किस तरीके से अच्छे परिणाम ला सकती है। इसके लिए हमने प्रैक्टिकल करके दिखाया। सुभाष पालेकर जी ने यहां किसानों को ट्रेनिंग दी। हमारी पैदावार में कोई कमी नहीं आई जबकी लागत शून्य हो गई। हमारे पास 300 गायें हैं उन्हीं से हमें खाद मिलता है। ऑर्गेनिक खेती करने की वजह से धरती में उर्वरा क्षमता भी बढ़ी है, वहीं पानी की लागत 70 फीसद कम हो गई है। यह खेती किसानों के लिए वरदान है। प्रधानमंत्री मोदी का किसानों की आय 2022 तक दोगुना करने का आह्वान इस तकनीक के जरिए आसानी से संभव है।
कई बड़ी-बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियां हैं जो देश में खाद और पेस्टिसाइड बेच रही हैं। क्या आपकी बात से अंदाजा लगाया जाए कि इनकी जरूरत नहीं है? और किसानों के भीतर यह भरोसा क्यों नहीं आ पा रहा है कि हम इन रासायनिक खादों के बिना भी खेती कर सकते हैं?
हम इसका प्रैक्टिकल देख सकते हैं। हमारी अपनी जमीन में हर तरह की खेती होती है और एक पैसा भी हम यूरिया का रासायनिक खादों पर खर्चा नहीं करते हैं। हमारे उत्पादन में कभी कोई कमी नहीं आती है। मैं चार वर्ष तक हिमाचल प्रदेश में भी रहा। वहां भी किसानों को इसके लिए प्रेरित करने का अभियान चलाया गया। इससे 54,000 किसान ऑर्गेनिक खेती के लिए आगे आए। उनके द्वारा किए गए उत्पादन के परिणाम इतने बढ़िया रहे कि अब ज्यादा किसान इसके लिए प्रेरित हो रहे हैं। अब वहां किसानों ने निर्णय लिया है कि वह बिना रासायनिक खादों की खेती करेंगे। इससे उत्पादन जहर मुक्त होता है और उत्पाद की दोगुनी कीमत भी मिलती है। अब एक लाख किसान इससे और जुड़ेंगे। इसी तरह आंध्र प्रदेश में भी ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा मिल रहा है। हरियाणा के मुख्यमंत्री ने भी हमारे गुरु कुल में जाकर देखा। इसके बाद हरियाणा में भी ऑर्गेनिक खेती को आगे बढ़ाने का काम किया जा रहा है। लोग जब अपने आसपास इस तरह के उपज को देखेंगे तो खुद ब खुद इसके लिए प्रेरित होंगे। साथ ही इससे हमारी धरती प्रदूषण मुक्त होती है और पानी की खपत में भी भारी कमी आती है।
कोरोना संकट में इम्युन सिस्टम को मजबूत रखने के लिए प्राकृतिक खाद्यान्न और आयुर्वेदिक दवाओं पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है। क्या आप इसे कितना कारगर मानते हैं?
कोरोना एक वैश्विक महामारी है और इसका विनाशकारी रूप हम देख रहे हैं। पूरी दुनिया के विशेषज्ञ, डॉक्टर एक बात पर सहमत हैं कि न तो इसकी कोई दवा है और न ही अभी तक वैक्सीन विकसित हो पाई है। इसके खिलाफ सबसे बड़ी लड़ाई किसी चीज से लड़ी जा सकती है तो वह है हमारा इम्यूनिटी सिस्टम या रोग प्रतिरोधक क्षमता। यूरिया और कीटनाशक हमारी इम्यूनिटी को कमजोर करते हैं। दूसरी तरफ गोबर-गोमूत्र से बनने वाली खादों से ऑर्गेनिक खेती के जरिए मिले उत्पादों से हमारा इम्यूनिटी सिस्टम बेहतर होता है। आप स्वयं रासायनिक और जैविक दोनों उत्पादों को साथ में लेकर प्रयोग कर सकते हैं। रासायनिक खादों से उगने वाली सब्जियां दो-तीन दिन में ही सड़ जाएंगी, वहीं ऑर्गेनिक खेती से उगने वाली सब्जियां दो-तीन महीने तक भी अच्छी रहती हैं। बाहर की तरह ही यह सब्जियां भीतर जाकर भी सड़ती हैं। गाय को प्राकृतिक चारा मिलता है तो उसका दूध भी इम्युनिटी सिस्टम को बढ़ाने वाला मिलता है। आज सुरक्षित और जहर मुक्त भोजन की आवश्यकता बहुत ज्यादा प्रासंगिक है।
गुजरात में कृषि विकास दर ऊंची है। हाल के वर्षो में राज्य सरकार किसानों के हित में कदम उठा रही है। क्या इससे प्रदेश में प्राकृतिक कृषि को फायदा होगा?
मैं पिछले वर्ष 22 जुलाई को ही गुजरात में आया हूं। सितम्बर में हमने किसानों के लिए एक बड़ा कार्यक्रम रखा था जिसमें किसानों से जुड़े सभी विभाग और अधिकारी शामिल हुए थे। इस कार्यक्रम के बहुत ही सुंदर परिणाम आए। हमने 22,000 किसानों के लिए फिर सात दिनों का कार्यक्रम आगे चला रखा है। सुभाष पालेकर जी द्वारा इन किसानों को ऑर्गेनिक खेती की ट्रेनिंग दी गई। आज एक लाख किसान खरीफ की खेती प्राकृतिक तरीके से कर रहे हैं। यह खेती देसी गाय पर आधारित है। गायों के लिए 900 रु पए प्रतिमाह भी किसानों को दिया जा रहा है। इन प्रयासों से किसानों की आय दोगुनी हो रही है। प्रधानमंत्री मोदी का किसानों की आय दोगुनी करने का मिशन प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने से पूरा होगा।
गुजरात में कोरोना संक्रमण के खिलाफ प्रदेश सरकार ने जो मजबूती से कार्य किया है खासकर फ्रंट लाइन वारियर्स ने जो हौंसला दिखाया है। इसके बारे में आप क्या कहेंगे?
प्रारंभ में कोरोना महामारी बहुत तेजी से फैली। सरकार ने इससे लड़ने के लिए युद्ध स्तर पर कार्य किया और नई नई नीतियां बनाई। वेंटिलेटर, मास्क, सैनिटाइजर, कोविड-19 अस्पतालों की स्थापना जैसे प्रयास लगातार किए गए। प्रतिदिन कई घंटों तक मीटिंग की गई और नई-नई योजनाओं को सामने रखा गया। इन सारे प्रयासों के परिणाम यह रहे कि आज बहुत तेजी से स्थितियों में सुधार हो रहा है।
प्रधानमंत्री जी ने आत्मनिर्भर भारत अभियान की शुरु आत कर दी है। इस अभियान की सफलता के लिए क्या करना चाहिए?
माननीय प्रधानमंत्री के प्रति जनता में अपार श्रद्धा है। जब से उन्होंने आत्मनिर्भर भारत की बात कही है तभी से लोग उनका साथ दे रहे हैं। विदेशी सामानों का बहिष्कार किया जा रहा है और कुटीर उद्योगों से बनी वस्तुओं को बढ़ावा दिया जा रहा है। उद्योगपतियों को भी आत्मनिर्भर भारत के लिए प्रोत्साहित किया गया है। स्वदेशी उत्पादों के निर्माण को लेकर लोगों में एक नया उत्साह देखने को मिल रहा है। इसी से आत्मनिर्भर देश बनेगा।
कोरोना के बाद अर्थव्यवस्था, शिक्षा व्यवस्था से लेकर जीवन पद्धति में कैसे बदलाव आएगा, क्या करना होगा, क्या छोड़ना होगा?
इस संक्रमण काल की वजह से हमारे जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन आया है। पहले जो लोग स्वच्छंद भ्रमण करते थे अब बिना मास्क, सैनिटाइजर के घर से बाहर नहीं निकलते हैं। दो गज की दूरी का ध्यान रखते हैं। जब तक कोरोना वायरस की वैक्सीन नहीं आ जाती तब तक हमें इसी तरह से लड़ाई लड़नी होगी। अब यह बहुत स्पष्ट है कि जल्दी ही इससे हमें राहत मिलेगी। दिल्ली और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में हालात बहुत खराब दिख रहे थे लेकिन अब कोरोना धीरे-धीरे कमजोर पड़ रहा है। हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता, रहन-सहन का तरीका, हमारी संस्कृति में जीवनचर्या को लेकर जो अच्छी बातें हैं, उनकी वजह से हम कोरोना के खिलाफ ज्यादा बेहतर लड़ाई लड़ रहे हैं। आयुर्वेद का इस्तेमाल, हल्दी अदरक जैसी चीजों का आम जिंदगी में इस्तेमाल, हमें और मजबूत बनाता है। यही वजह है कि दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले हमारे यहां मृत्यु दर बहुत कम है। फिर भी जब तक कोरोना है एहतियात बरतनी होगी।
कोरोना संक्रमण ने हमारी दिशा और दशा दोनों बदल डाली हैं। कोरोना बाद के विश्व की हम कैसी कल्पना कर सकते हैं?
यह एक वैश्विक महामारी है और हर शख्स इस संकट से जूझ रहा है। इससे एक विश्वास तो पैदा होता है कि कोई भी अकेला नहीं है।
‘धृति: क्षमा दमोùस्तेयं शौचं इन्द्रिय निग्रह:। धी: विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्म लक्षणम्।।’ ( मनुस्मृति )
धृति अर्थात धैर्य सुख और दुख का चक्र दिन तथा रात्रि की भांति बदलता रहता है। एक सामान्य व्यक्ति जहां सुख में उन्मत हो जाता है, और दु:ख में अधीर, वहीं धर्म के स्वरूप में स्थित व्यक्ति दोनो स्थितियों में सम रहता है। सारे विश्व को भी आशावादी होना होगा। हमारे यहां कहा जाता है कि मन के हारे हार है मन के जीते जीत। हमें सकारात्मक पहलुओं को भी देखना चाहिए। हमने उस समय पर महामारियों का सामना किया है जब कुछ साधन नहीं हुआ करते थे। आज पहले के मुकाबले हमारे पास बेहतर साधन हैं। करीब 150 कंपनियां कोरोना के खिलाफ वैक्सीन पर काम कर रही हैं। साल के अंत तक हमें इसका निदान भी मिल जाएगा। दो-चार माह में यह महामारी कमजोर पड़ जाएगी। हमें आपदा को अवसर में बदलने पर विचार करना चाहिए। निश्चित तौर पर भारत पहले से मजबूत बनकर उभरेगा।
प्रधानमंत्री ने लोकल के लिए वोकल का नारा दिया है। इसका लाभ गुजरात कैसे और कितना उठा सकता है?
माननीय प्रधानमंत्री जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तभी उन्होंने यहां के विकास में बहुत बड़ा योगदान दिया। गुजरात को उन्होंने देश ही नहीं दुनिया के लिए एक मॉडल की तरह विकसित किया। जब मैं यहां आया तो मैंने भी यही अनुभव किया कि जो कुछ गुजरात में है वह अन्य प्रदेशों में नहीं है। यहां के लोगों में जबरदस्त समर्पण देखने को मिलता है। यहां के उद्योगपतियों ने आत्मनिर्भर भारत के लिए बहुत तेजी से काम करना शुरू भी कर दिया है। निश्चित तौर पर स्थितियां पहले से और बेहतर होंगी।
आप बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ आंदोलन के समर्थक हैं। आप इस आंदोलन का कितना प्रभाव देखते हैं?
मैं तमाम विश्वविद्यालयों के कार्यक्रमों में जाता हूं, ग्रामीण क्षेत्रों में भी मेरा कई कार्यक्रमों के लिए जाना होता है। मैं देखता हूं कि आज बच्चियां बहुत तेजी से आगे बढ़ रही हैं। हमारे वेदों में लिखा है- यत्र नार्यस्तु पूज्यंते तत्र रमंते देवता। साथ ही हमारे वेद यह भी कहते हैं कि ब्रह्मा के बाद, परमात्मा के बाद यदि कोई सृष्टि का संचालन करने वाला है तो वह नारी है। भारतीय नारी का इतिहास भी बहुत समृद्ध रहा है। हमारी संस्कृति को आगे बढ़ाने में महिलाओं ने ही योगदान दिया है। आज जिन कन्वोकेशन में मैं जाता हूं वहां हर क्षेत्र में बेटियों को आगे पाता हूं। उनमें धैर्य और गंभीरता देखने को मिलती है। ऐसी बेटियों की रक्षा होनी चाहिए। इन्हें आगे बढ़ाया जाना चाहिए।
कोरोना संकट में पारंपरिक शैक्षणिक व्यवस्था की जगह ऑनलाइन एजुकेशन का नया दौर शुरू हुआ है। बदले हुए हालात में शिक्षा व्यवस्था और उसके स्वरूप को लेकर आपकी क्या राय है?
मैं 35 वर्षो तक खुद एक शिक्षक रहा हूं। बच्चों के मनोविज्ञान को बहुत अच्छे से जानता हूं। प्राथकि से लेकर 12वीं तक की शिक्षा के लिए ऑनलाइन एजुकेशन कभी भी अच्छा माध्यम नहीं हो सकती है। फिलहाल तो काम चल रहा है लेकिन सर्वागीण विकास के लिए इसका इस्तेमाल नहीं हो सकता है। बच्चों का असली विकास होता है स्कूल में होने वाली मस्ती से, अध्यापकों से सवाल पूछने से, अपने सहपाठी छात्रों के साथ मिलने-जुलने से। बच्चा बच्चे से ज्यादा सीखता है। ऑनलाइन एजुकेशन में बच्चों के भीतर आत्मविश्वास नहीं आता है। उच्च शिक्षा में कुछ हद तक यह पद्धति सफल हो सकती है। फिर भी कमरे में बंद होकर कोई कितने समय तक पढ़ सकता है। निश्चित तौर पर जल्दी ही हम इस संक्रमण काल से बाहर आएंगे और पहले से बेहतर स्थितियां हमारे सामने होंगी। अब हमारी जीवन पद्धति में भी काफी सुधार आ रहा है। हमारी पुरानी परंपराएं लौट रही हैं। जब तक कोरोना से लड़ाई चल रही है तब तक बच्चों को जोड़ने के लिए ऑनलाइन एजुकेशन एक माध्यम हो सकती है लेकिन लंबे समय के लिए उपयोगी नहीं है।
प्राचीन भारत शिक्षा के क्षेत्र में विश्व भर में प्रसिद्ध था। नालंदा और तक्षशिला का वैभव था। आज के जमाने की शिक्षा और प्राचीन शिक्षा पद्धति में क्या फर्क देख रहे है, क्या यह स्वर्णिम युग फिर से नहीं ला सकते?
प्राचीन भारत में गुरु कुल की व्यवस्था हुआ करती थी। गुरु कुल का मतलब भी महत्वपूर्ण होता है। माता पिता के कुल की तरह गुरु का भी कुल होता है। शिष्य को अंतेवासी कहा जाता था यानी गुरु के भीतर निवास करने वाला कहा जाता है। हमारे उपनिषदों में लिखा गया है कि जब शिष्य गुरु के पास आता था तो गुरु कहते थे कि आपके माता-पिता ने विश्वास करके आपको मेरे पास भेजा है मैं गर्भ की तरह आप को सुरक्षित रखूंगा। गुरु और शिष्य की इतनी निकटता होती है। वेदांत, उपनिषद. रामायण आदि का पठन-पाठन गुरु कुल में किया जाता था। भौतिक और आध्यात्मिक दोनों विषयों पर समग्र चिंतन होता था। नालंदा, तक्षशिला जैसे समृद्ध विश्वविद्यालय थे, जहां सारी दुनिया के छात्र आया करते थे। हमारे देश में सारी दुनिया के छात्र आते थे। जैसे आज हमारे छात्र बाहर की तरफ जाते हैं। भारत एकमात्र ऐसा देश रहा जिसने किसी भी अन्य राष्ट्र को लूटने के लिए अपने आक्रांता नहीं भेजे। दुनिया भर के लुटेरे अलबत्ता भारत को लूटने के लिए आते रहे। चोर वहीं पर आते हैं जहां संपन्नता होती है। निश्चित तौर पर हमारे पास कौटिल्य का अर्थशास्त्र, आयुर्वेद की समृद्ध परंपरा और वेदांत की उन्नत व्यवस्था थी और इसीलिए लुटेरे यहां का रु ख करते थे। मैकाले ने हमारी इस पुरानी परंपरा को ध्वस्त करने का काम किया। पहले अनपढ़ आदमी हमारे यहां ढूंढने से नहीं मिलता था।
शिक्षक, लेखक, जनसेवक, किसान और अब गवर्नर, इतनी सारी भूमिकाओं में आपने शानदार कार्य किए हैं। आपने खुद को किस भूमिका में सर्वाधिक सहज पाया। कौनसी ऐसी भूमिका है जो आप हमेशा निभाना चाहते हैं और क्यों?
मैं खुद गुरु कुल में पढ़ा हूं और यहां लंबे समय तक पढ़ाया भी है। प्राचीन साहित्य के साथ जुड़ा रहा हूं। गीता के श्लोक को मैं अपना मूल मंत्र मानता हूं। ‘सुख दुखे समे कृत्वा, लाभा लाभौ जया जयो’ यानी सुख-दुख, लाभ-अलाभ, जय अथवा पराजय को समान भाव से लेना चाहिए। जीवन कर्म प्रधान होना चाहिए और हर तरह की स्थिति में आप में संयम और संतोष होना चाहिए। कोई भी जिम्मेदारी आपको दी जाए उसे समर्पित भाव से करना चाहिए तो आपको अवश्य आनंद मिलता है। प्रधानमंत्री मोदी की मुझे एक बात बहुत अच्छी लगती है। वह कहते हैं परिश्रम की पराकाष्ठा। पूरे मनोयोग से कोई काम किया जाए तो हर जगह आनंद आता है। अपने जीवन में मैंने सीखा है कि नीयत साफ तो मंजिल आसान है।
आर्य समाज का जो प्रसार प्रचार देश में होना चाहिए था वह उतना व्यापक नहीं हो पाया। आप क्या मानते हैं, क्या वैदिक जीवन पद्धति आज प्रासंगिक है?आप तो रोज यज्ञ भी करते हैं।
महर्षि दयानंद ने कुरीतियों के खिलाफ एक आंदोलन चलाया। उस समय पर सती प्रथा, पुनर्विवाह का विरोध, महिला शिक्षा को लेकर उपेक्षा, छुआछूत जैसी कई कुरीतियां थीं। गुलामी का दौर तो चल ही रहा था। इन सब बुराइयों के खिलाफ उन्होंने बड़ा आंदोलन चलाया। यह आंदोलन बहुत ही सफल रहा और आज हम अपने समाज में बहुत बदलाव पाते हैं। सभी ने उनकी बातों को स्वीकार किया। स्वामी जी ने जीवनचर्या, गौ रक्षा, जीव जंतु रक्षा, योग, प्राणायाम आदि पर बहुत काम किया। आज का मनुष्य भौतिकतावादी है और आराम पसंद जीवन देखता है। लेकिन आर्य समाज के सिद्धांत शात हैं। ये आज भी जीवन में उतने ही प्रभावी हैं जितने हमेशा से रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी को तमाम सर्वे में सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री पाया गया है। आपकी नजर में उनके व्यक्तित्व की क्या विशेषताएं हैं जो जनता उनसे इतना जुड़ाव महसूस करती है ?
उनकी सबसे बड़ी शक्ति है सामान्य परिवार से निकलना और कठिनाइयों को व्यावहारिक रूप से समझना। वह गांव के स्कूलों में पढ़े हैं और उन्हें देश के हर व्यक्ति के जीवन स्तर के बारे में जानकारी है। आरएसएस के साथ जुड़कर उन्होंने अध्यात्मिक अध्ययन किया और विद्या प्राप्त की। भारतीय जीवन मूल्यों से उनका व्यक्तित्व ओतप्रोत है। कई महान लोगों का आदर्श उनमें झलकता है। अयं निजं परोवेत्ति गणना लघु चेतसाम्। उदार चरितानामतु वसुधैव कुटुंबकम्। वह इस श्लोक को जीते हैं। इन सभी प्रयासों से उनकी आत्मा का विकास हुआ है और वह इस पूरी दुनिया को अपना परिवार मानते हैं। इसीलिए कोरोना संक्रमण काल के दौरान जब दवाई की जरूरत पड़ी तो उन्होंने पूरी दुनिया के लिए दरवाजे खोल दिए। कश्मीर में बाढ़ आई तो कई बार वहां का दौरा करने के लिए गए। चीन जब आंख दिखा रहा है तो वह लेह लद्दाख पहुंच गए। आज जनता को विश्वास है कि वह सुरक्षित हाथों में है। जब से वह प्रधानमंत्री बने हैं तो हर क्षेत्र में देश की उन्नति साफ देखने को मिलती है और यह देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया देख रही है।
विद्यार्थियों के लिए शिक्षा के साथ-साथ अध्यात्म कितना आवश्यक है?
हमारी शिक्षा पद्धति में अध्यात्म को ही मुख्य रूप से रखा गया था। बचपन से जिन बच्चों में आध्यात्मिक संस्कार पड़ते हैं वह कठिन परिस्थितियों में भी विपरीत नहीं होते हैं। शिक्षा का आधार ही अध्यात्म होता है। दुनिया में सभी वस्तुएं अन्य वस्तुओं के लिए बनी हैं। इसी तरह मानव जीवन के उद्देश्य को भी हमें जानना है। धर्म अर्थ काम करते हुए हमें ईश्वर की प्राप्ति करना है और ईश्वर की प्राप्ति अध्यात्म से ही होती है। अष्टांग योग के यम नियम जिन बच्चों में बचपन से ही पड़ जाते हैं वह विपरीत परिस्थितियों में भी घबराते नहीं हैं। जो सिर्फ भौतिक विकास की तरफ बढ़ते हैं वह धन वैभव तक ही सीमित रहते हैं और ये सब नहीं मिलता है तो लटक जाते हैं। जसका आध्यात्मिक विकास हुआ है वह जानता है कि रात कितनी भी लंबी हो सवेरा होगा ही। जीवन में अध्यात्म की तरफ बढ़ना ही पूर्णता का रास्ता है।
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