केजरीवाल मॉडल से उड़ी राज्यों के मुख्यमंत्रियों की नींद
देश की राजनीति में अपने काम के नायाब प्रयोग के द्वारा तीसरी बार दिल्ली की सत्ता संभालने वाले अरविंद केजरीवाल ने जहां देश के अन्य राज्यों को जीत का मूल मंत्र दिया है, तो वहीं उनमें जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की खलबली भी मचा दी है।
![]() अरविंद केजरीवाल |
सरकार के काम को मुद्दा बनाकर उन्होंने जिस तरह से दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों को शिकस्त दी, वह अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों के लिए नजीर बन सकती है। ‘आप’ ने केजरीवाल मॉडल से अन्य राज्यों के कांग्रेसी, भाजपाई व अन्य दलों के मुख्यमंत्रियों की न केवल नींद उड़ा दी है, बल्कि इस मॉडल को अपनाने का दवाब भी बना दिया है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दिल्ली के केजरीवाल के इस प्रयोग के बाद अन्य राज्यों की जनता की अपेक्षाएं भी अपनी सरकारों से बढ़ेगी। ऐसे में जनाकांक्षाओं को पूरा करना किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा। सूत्रों की माने तो अपने इस मॉडल के द्वारा केजरीवाल की योजना अन्य राज्यों में भी पैर पसारने की है। उनका यह कदम भी आने वाले दिनों में भाजपा व कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के लिए बड़ी राजनीतिक चुनौती पेश कर सकता है।
दिल्ली में जिस तरह से जनता ने केजरीवाल के स्वास्थ्य, शिक्षा, महिला सुरक्षा, बिजली, पानी और परिवहन में रियायतों के अपने मॉडल से यह साबित कर दिया कि केवल काम के बूते भी चुनाव जीता जा सकता है। इसने उन राजनीतिक आलोचकों का भी मुंह बंद करने का काम किया है, जिसमें यह कहा जाता है कि केवल काम व विकास से चुनाव नहीं जीता जा सकता है।
समस्या यह कि केजरीवाल के इस मॉडल की जटिलताओं का सामना करने का साहस कितने मुख्यमंत्री कर पाएंगे, क्योंकि दिल्ली के मुकाबले अन्य राज्यों में यह काफी जटिल होगा। माना जा रहा है कि अन्य मुख्यमंत्री भी केजरीवाल के इस राजनीतिक प्रयोग का लाभ उठाने की चुनौती स्वीकार करेंगे।
दिल्ली की तर्ज पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 75 यूनिट बिजली फ्री देने का निर्णय लिया है। महाराष्ट्र भी उनके नक्शेकदम पर चलने की तैयारियों में जुट गया है। दिल्ली में आप की जीत के बाद अन्य राज्यों में भी मुफ्त बिजली, पानी, अस्पताल और परिवहन की मांग जोर पकड़ेगी।
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