Year 2019: भाजपा पर भारी पड़े क्षेत्रीय दल, दिखाया कि वे कड़ी टक्कर देने में हैं सक्षम

Last Updated 25 Dec 2019 11:27:01 AM IST

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को 2014 के लोकसभा चुनाव में मिली अभूतपूर्व सफलता तथा उसके बाद राज्यों में एक के बाद एक उसकी जीत से देश में दो दलीय व्यवस्था कायम होने के कयास लगने शुरु हो गये थे लेकिन इस वर्ष हुये चुनावों में क्षेत्रीय दलों ने दिखाया कि उनकी प्रासंगिकता खत्म नहीं हुयी है तथा वे राष्ट्रीय दलों को कड़ी टक्कर देने में सक्षम हैं।


इस वर्ष लोकसभा के अलावा सात राज्य विधानसभाओं के चुनाव हुये जिनमें क्षेत्रीय दलों ने अपनी उपस्थिति प्रमुखता के साथ दर्ज करायी। अप्रैल - मई में हुये लोकसभा चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के बल पर भाजपा पिछले चुनाव से अधिक सीटें जीतने में सफल हुयी। उसकी सीटों की संख्या 300 से ऊपर निकल गयी। मोदी लहर के बावजूद इस चुनाव में बीजू जनता दल, तृणमूल कांग्रेस, द्रविड़ मुने कषगम (द्रमुक), वाईएसआर कांग्रेस पार्टी , तेलंगाना राष्ट्र समिति जैसे क्षेीय दलों ने भाजपा को कड़ी टक्कर दी।

आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में तो भाजपा खाता भी नहीं खोल पायी। तमिलनाडु की 39 लोकसभा सीटों में 38 सीटें द्रमुक के नेतृत्व वाले गठबंधन ने जीती। आंध्र प्रदेश की 25 सीटों में 23 जगनमोहन रेड्डी की वाईएसआरसीपी ने जीतीं जबकि दो सीटें तेलुगुदेशम को मिलीं।

पश्चिम बंगाल, ओडिशा और तेलंगाना में भी भाजपा को क्षेत्रीय दलों के कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ा। पश्चिम बंगाल में पूरी ताकत झोंकने का भाजपा को फायदा तो मिला लेकिन उसे ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस से कड़ा संघर्ष करना पड़ा। तृणमूल कांग्रेस ने  राज्य की 42 में से 22 सीटें जीतीं, भाजपा को 18 सीटें मिली। पश्चिम बंगाल की तरह ओडिशा में अपनी ताकत बढ़ाने में लगी भाजपा सत्तारूढ बीजू जनता दल से  पार पाने में सफल नहीं हो सकी। वह राज्य की 21 सीटों में से आठ सीटें ही जीत सकी। बीजू जनता दल ने 12 सीटों पर जीत हासिल कर अपना दबदबा दिखाया। तेलंगाना में टीआरएस ने 17 में से नौ सीटें जीतीं। भाजपा चार सीटें ही जीत पायी।

लोकसभा के साथ चार राज्यों  आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम की विधानसभा के चुनाव हुये थे। अरुणाचल प्रदेश छोड़कर अन्य राज्यों में क्षेत्रीय दलों का बोलबाला रहा और उनकी सरकारें बनीं। आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव में वाईएसआरसीपी ने 175 में 151 सीटें जीत कर अपना दबदबा कायम किया। तेलुगु देशम को 23 सीटों पर सफलता मिली। ओडिशा में बीजू जनता दल ने 147 में से 113 सीटें जीत कर एक बार फिर सरकार बनायी। भाजपा को 23 सीटें ही मिल पायी। सिक्किम में मुकाबला दो क्षेीय दलों के बीच हुआ जिसमें एसकेएम ने एसडीएफ को मात देकर सरकार बनायी।

अक्टूबर में हुये हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भी क्षेत्रिय दलों का प्रभाव दिखायी दिया। हरियाणा में दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी पहले ही चुनाव में किंगमेकर बन गयी। बहुमत का आंकड़ा छूने में विफल रही भाजपा ने उससे हाथ मिलाकर राज्य में दूसरी बार सरकार बनायी। महाराष्ट्र में शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी उद्धव ठाकरे सरकार की मुख्य धुरी बने। राज्य में भाजपा और शिवसेना ने मिलकर चुनाव लड़ा था तथा उनके गठबंधन को विधानसभा में स्पष्ट बहुमत मिल गया था। दोनों के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर विवाद होने पर शिवसेना ने उससे नाता तोड़ लिया और राकांपा तथा कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनायी।

वर्ष के अंत में झारखंड में हुये चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा का जादू मतदाताओं के सिर चढ़ कर बोला। उसके नेतृत्व वाले कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल गठबंधन ने भाजपा को करारी शिकस्त देकर सत्ता से बाहर कर दिया। गठबंधन को 81 सदस्यीय विधानसभा में 47 सीटें मिली। भाजपा 25 सीटें ही जीत पायी। राज्य के गठन के बाद से सबसे बड़े दल का दर्जा का हासिल करती आयी भाजपा इस बार इसमें भी पिछड़ गयी। इस चुनाव में झामुमो ने सबसे अधिक 30 सीटें जीती।
 

वार्ता
नयी दिल्ली


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