मोदी सरकार के संकट मोचक थे जेटली
अरुण जेटली का नाम आते ही स्वाभाविक तौर पर एक ऐसा चेहरा मन मस्तिष्क पर उभर आता है, जो सौम्य था, यारों का यार था, प्रखर वक्ता था, रणनीतिकार था, राजनेता था, प्रशासक था और ट्रबलशूटर यानी संकट मोचक था।
अरुण जेटली (फाइल फोटो) |
इतनी सारी खूबियों वाला इंसान अब हमारे बीच से हमेशा के लिए चला गया। जेटली की कमी देश को, न्याय जगत, उद्योगजगत, क्रि केट, राजनेताओं, भाजपा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मीडिया जगत को हमेशा खलेगी। जेटली ने मित्र ज्यादा बनाए, उनके शत्रुओं की संख्या कम होगी। जेटली विरोधियों के बीच भी लोकप्रिय थे। उनकी वाकपटुता, कुशाग्र बुद्धि, ज्ञान, तर्कशक्ति का लोहा सभी मानते थे। संसद में वह अपने तकरे से विरोधियों को निरुत्तर कर देते थे। वह भाजपा और विपक्षी नेताओं के बीच पुल का काम करते थे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के वह संकट मोचक थे। गुजरात दंगों को लेकर जब दोनों नेताओं पर मुकदमे ठोके जा रहे थे, केंद्रीय एजेंसियां उनके पीछे पड़ी थीं, तब जेटली ही सीना तानकर उनके कवच बने थे। मोदी के पहले कार्यकाल में सरकार चलाने में जेटली की अहम भूमिका थी। मोदी उन पर पूरा भरोसा करते थे। मोदी सरकार के अधिकतर मंत्री उनके ही बनाए थे।
लालकृ ष्ण आडवाणी के चार रणनीतिकारों में जेटली आखिरी नेता थे। इससे पहले अनंत कुमार, सुषमा स्वराज का देहांत इसी साल हुआ है। अब केवल एम वेंकैया नायडू बचे हैं, लेकिन उपराष्ट्रपति बनने के कारण वह सक्रिय राजनीति से अलग हो गए हैं।
सरकार में अनेक मंत्रालय संभालने के दौरान उन्होंने अनेक उपलब्धियां हासिल की। वाजपेयी सरकार में वह वाणिज्य मंत्री बनाए गए थे। तब विश्व व्यापार संगठन में कृषि को लेकर बहस चल रही थी तब जेटली ने अपने तकरे से भारत के पक्ष को जीत दिलाई थी।
’मोदी है तो मुमकिन है‘ के नारे पर अड़ गए थे जेटली : बीमारी के कारण जेटली चुनाव प्रचार के लिए बाहर नहीं जा सकते थे, इसलिए उनके पास हेडक्र्वाटर और मीडिया को संभालने की जिम्मेदारी थी। वह रोजाना भाजपा के प्रवक्ताओं के पैनल को बैठाकर उन्हें मीडिया और न्यूज चैनलों में पार्टी का पक्ष रखने और विपक्ष की कैसे काट करनी है, यह समझाते थे। प्रचार सामग्री भी वह तय करते थे। मोदी है तो मुमकिन है, नारे को लेकर पार्टी के नेता राजी नहीं हुए तो नाराज हो गए, उनकी जिद पर ही यह नारा चला जो आज भी हिट है।
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