न्यायपालिका-विधायिका में संतुलन जरुरी

Last Updated 16 Mar 2011 10:48:46 PM IST

उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने कहा कि देश में विधायिका और न्यायपालिका के बीच 'उचित संतुलन' बनाये रखने की जरूरत है.


राज्यसभा के सभापति अंसारी ने कहा, 'हमारी व्यवस्था शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत पर काम करती है. इस सिद्धांत में बारीक भेद है और इस बारीक भेद को समझने की जरूरत है. सार्वजनिक घोषणाओं के दौरान विवेक और नीतियों को लागू करते समय सतर्कता बरतने की जरूरत है ताकि हर समय उचित संतुलन बनाये रखना सुनिश्चित किया जा सके.'
     
उन्होंने कहा कि सभी व्यवस्थायें 'दबाव और तनाव' से गुजरती हैं लेकिन लोकतांत्रिक प्रणाली इसका जवाब चर्चा और विचार विमर्श आयोजित करके देती है.
     
उप राष्ट्रपति ने कहा, 'मैं समझता हूं कि चर्चा और विचार विमर्श तथा इसके लिये पर्याप्त समय दिये जाने की जरूरत है. आज के समय में विभिन्न कारणों से यह और भी ज्यादा जरूरी हो जाता है जब हम इसमें से कुछ चीजों को कम करने की कोशिश कर रहे हैं.' अंसारी ने अपने विचार यहां पर एक किताब का विमोचन करते समय रखे.

इस अवसर पर राज्यसभा के उप सभापति के रहमान खान ने कहा कि जहां संसद कानून बनाने का सर्वोच्च निकाय है वहीं न्यायपालिका, संविधान और विधायिका संस्थानों द्वारा पारित किये गये कानून की व्याख्या करने की अंतिम शक्ति है.

उन्होंने कहा कि हालांकि विधायिका और न्यायपालिका दोनों ही को अपने कार्य के लिये पूर्ण स्वायत्तता और स्वतंत्रता है फिर कुछ ऐसे अवसर आते हैं जब 'संसद और न्यायपालिका के बीच उचित संतुलन उनकी स्वायत्तता और स्वतंत्रता पर मतभेद के कारण तनाव ग्रस्त हो जाता है.



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