पावागढ़ के महाकाली मंदिर जुडी हैं कई कहानियां
गुजरात के पंचमहल जिले में स्थित पावागढ़ महाकाली मंदिर एक शक्ति पीठ है. यह धार्मिक ही नहीं पौराणिक, ऐतिहासिक और पर्यटन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण स्थल है.
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महाकाली मंदिर गुजरात के पंचमहल जिले में स्थित पावागढ़ महाकाली का मंदिर पौराणिक, ऐतिहासिक, धार्मिक तथा पर्यटन की दृष्टि से प्रदेश के सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थलों में से एक है.
कालीमाता का यह मंदिर माता के शक्तिपीठों में में शामिल है. शक्तिपीठ उन पूजा स्थलों को कहा जाता है, जहां सती के अंग गिरे थे.
पुराणों के अनुसार, पिता दक्ष के यज्ञ के दौरान अपमानित हुई सती ने योग बल से अपने प्राण त्याग दिए थे. सती की मृत्यु से व्यथित भगवान शिव उनके मृत शरीर को लेकर तांडव करते हुए ब्रह्मांड में भटकते रहे. माता के अंग जहां-जहां गिरे, वहीं शक्तिपीठ बन गये.
ऐतिहासिक महत्व
पावागढ़ का महाकाली मंदिर, उन्हीं शक्तिपीठों में से एक है. इतिहास के पन्नों में पावागढ़ का नाम महान संगीतज्ञ तानसेन के समकालीन संगीतकार बैजू बावरा के संदर्भ में आया है.
बैजू बावरा का जन्म इसी पवित्र भूमि पर हुआ था. पहाड़ियों पर बसा यह महाकाली मंदिर लगभग 550 मीटर की ऊंचाई पर पावागढ़ की पहाड़ियों के बीच स्थित है. मंदिर पहुंचने के लिए अब रोपवे की भी सुविधा है.
पावागढ़ की कहानी
पावागढ़ के नाम के पीछे भी कहानी है. कहते हैं एक जमाने में दुर्गम पर्वत पर चढ़ाई लगभग असंभव थी. चारों तरफ खाइयों से घिरे होने के कारण यहां हवा का वेग भी हर तरफ एक-सा रहता है. इसलिए इसे पावागढ़, अर्थात वैसी जगह जहां पवन का वास हो, कहा जाता है.
पावागढ़ पहाड़ियों की तलहटी में चंपानेरी नगरी है, जिसे महाराज वनराज चावड़ा ने अपने बुद्धिमान मंत्री के नाम पर बसाया था. पावागढ़ पहाड़ी की शुरुआत चंपानेर से होती है.
1471 फुट की ऊंचाई पर माची हवेली स्थित है. मंदिर तक जाने के लिए माची हवेली से रोपवे की सुविधा है. यहां से पैदल मंदिर तक पहुंचने लिए लगभग 250 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं.
पौराणिक महत्व
पावागढ़ का पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व है. बताया जाता है कि यह मंदिर अयोध्या के राजा भगवान श्री रामचंद्रजी के समय का है. इस मंदिर को एक जमाने में शत्रुंजय मंदिर कहा जाता था. माघ महीने के शुक्ल पक्ष में यहां मेला लगता है.
मान्यता है कि भगवान राम, उनके बेटे लव और कुश के अलावा बहुत से बौद्ध भिक्षुओं ने यहां मोक्ष प्राप्त किया था.
पावागढ़ माना जाता है कि सती के दाहिने पैर का अंगूठा गिरने के कारण इस जगह का नाम पावागढ़ हुआ. इसीलिए यह स्थल बेहद पूजनीय और पवित्र मानी जाती है.
यहां की खास बात यह है कि यहां दक्षिणमुखी काली मां की मूर्ति है, जिसकी तांत्रिक पूजा की जाती है. इस पहाड़ी को गुरु विश्वामित्र से भी जोड़ा जाता है. कहते हैं कि गुरु विामित्र ने यहां मां काली की तपस्या की थी.
विश्वामित्र ने स्थापित की थी मां काली की मूर्ति
यह भी माना जाता है कि मां काली की मूर्ति को विश्वामित्र ने ही स्थापित किया था. यहां बहने वाली नदी का नामकरण भी उन्हीं के नाम पर विश्वामित्री रखा गया है.
सांप्रदायिक सौहार्द्र का प्रतीक मंदिर की छत पर मुस्लिमों का पवित्र स्थल है जहां अदानशाह पीर की दरगाह है. यहां बड़ी संख्या में मुस्लिम श्रद्धालु भी दर्शन करने के लिए आते हैं.
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