मकर संक्रान्ति के पहले गोरखपुर में सजी चूडा,लायी, पट्टी व तिलकुट की दुकानें
उत्तर प्रदेश के धार्मिक एवं सांस्कृतिक शिवावतारी बाबा गोरक्षनाथ की नगरी गोरखपुर में आस पास के जिलों से मकर संक्रान्ति के पहले इन दिनों चूडा, लायी, पट्टी एवं तिलकुट की बहार है और इन्हें खरीदने के लिए दुकानों पर भीड़ लगी है।
|
शहर में ऐसा कोई चौराहा या गली नहीं है जहां इनकी दुकानें न सजी हों। मकर संक्रान्ति का पर्व 14 जनवरी को है। पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार तथा पडोसी देश नेपाल में यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है।
परम्परा के मुताबिक लोग इस त्योहार पर इन सब वस्तुओं की जमकर खरीददारी करते हैं। कुछ लोग इन चीजों की खरीददारी करके उन्हें अपने पास रखते हैं ,तो कुछ रिश्तेदारों विशेषकर बहन और बेटियों की ससुराल भेजते हे।
कोरोना काल में इस बार दुकानदार सावधानी के साथ इनकी आकषर्क ढंग से पैंकिंग भी कर रहे हैं। जिन स्थानों पर पट्टियां बनाने के लिए गुड़ पकाया जाता है वहां से गुजरने पर विशेष खुशबू का अलग ही अनुभव होता है।
आगरा का तिल लडडू, बिहार का तिलकुट, बंगाल का रामदाना, कानपुर की गजक एवं लखनऊ की रेवड़ी इस बार लोगों को खूब भा रही है। परम्परागत वस्तुओं के साथ ही साथ इस समय सजावटी सामानों की भी दुकामनों में भरमार है। इन सामानों की सबसे बडी खसियत यह होती है कि यह गुण, चीनी, मुंगफली, तिल लायी तथा रामदाने से बनाये जाते हैं और महीनों खराब नहीं होते हैं। इन चीजों की खपत केवल जाडों के मौसम में रहती है। इनकी कीमत भी अधिक नहीं होने से गरीब भी आसानी से खरीदते हैं।
गोरखपुर में स्थित गोरखनाथ मंदिर में मकर संक्रन्ति के अवसर पर आगामी 14 जनवरी से एक माह तक चलने वाला खिचडी मेला में पहले से दुकाने सज गयी हैं। इस मेले में पडोसी देश नेपाल के अलावा बिहार से भी हजारों श्रद्धालु गोरखपुर आकर शिवावतारी गोरखनाथ बाबा को खिचड़ी, तेल, चावल, गुड़, नमक और घी आदि चढ़ाते हैं।
मकर संक्रान्ति के अवसर पर बाबा गोरखनाथ के दरबार में खिचडी चढ़ाने की परम्परा वर्षो से ही नहीं बल्कि युगों पुरानी है। भगवान सूर्य के प्रति आस्था से जुडे इस पर्व पर खिचड़ी चढ़ाने का इतिहासोता युग से जुड़ा है, जिसकी आस्था और श्रद्धा का आज भी निर्वाह किया जा रहा है। परम्परा के प्रति लोगों की श्रद्धा का आकलन इस आधार पर किया जा सकता है कि मकर संक्रान्ति के दिन हर वर्ष लाखों लोग खिचड़ी चढ़ाने के लिए यहां गोरखनाथ मंदिर आते हैं। स्थानीय श्रद्धालुओं के अलावा बिहार, हरियाणा, मध्यप्रदेश, दिल्ली और पड़ोसी देश नेपाल से भी बड़ी संख्या श्रद्धालु आते हैं। श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला मकर संक्रान्ति के पहले शुरु होता है और महाशिवराि तक यह सिलसिला चलता रहता है। गोरखनाथ मंदिर में मकर संक्रान्ति की छठा पूरे एक महीने तक देखने को मिलती है।
मकर संक्रान्ति के दिन तड़के गोरक्षपीठाधीर पूरे विधि विधान से श्री नाथ जी का पूजन कर रोट के महाप्रसाद का भोग श्री नाथ को लगाते हैं। बाबा गोरखनाथ की पहली खिचड़ी गोरखनाथ मंदिर की ओर से गोरखपीठाधीर के हाथों से चढ़ायी जाती है। उसके बाद मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिये जाते हैं और फिर शुरू होता है हर-हर महादेव के जयघोष के साथ खिचडी चढ़ाने का सिलसिला।
मान्यता है कि गुरू गोरक्षनाथ को खिचड़ी चढ़ाने वाला श्रद्धालु कभी भूखे पेट नहीं सोता और उसका अन्न का भंडार कभी खाली नहीं होता। बताया जाता है कि इस परंपरा के शुरू होने के बाद से लेकर अबतक पूर्वी उत्तर प्रदेश अकाल और दानव पर विजय प्राप्त करता आया है।
बाबा गोरखनाथ के दरबार में मकर संक्रान्ति पर नेपाल राज परिवार की ओर से भी खिचड़ी चढ़ायी जाती है। इसके पीछे का इतिहास नेपाल के एकीकीण से जुड़ा है। नेपाल के राजा के राजमलि के पास ही गुरू गोरखनाथ की गुफा थी। उस समय के राजा ने अपने बेटे राजकुमार पृथ्वी नारायण शाह से कहा कि यदि वो कभी गुफा में गये तो वहां के योगी जो भी मांगे उन्हें मना मत करना। जिज्ञासावश शाह खेलते हुए वहां पहुंच गये और गुरू ने उनसे दही मांग दी। राजकुमार अपने माता-पिता संग दही लेकर जब गुरू के पास पहुंचे तो उन्होंने दही का आचमन कर युवराज के अंजुलि में उल्टी कर दी और उसे पीने को कहा। युवराज के अंजुलि से दही उनके पैरों पर गिर गये लेकिन बालक को निर्दोष मानकर गुरु ने नेपाल के एकीकरण का वरदान दे दिया। बाद में इसी राजकुमार ने नेपाल का एकीकरण किया। तभी से नेपाल नरेश व वहां के लोगों के लिए बाबा गोरखनाथ अराध्य देव हैं।
इसके अलावा एक अन्य मान्यता है कि प्रचंड अकाल से नेपाल को गुरू मत्सयेंद्रनाथ और गुरू गोरखनाथ ने उबारा था। द्रुभिक्ष संकट में अन्नाभाव से जूझ रहे नेपाल को मेघालयों से वर्षा कराकर गुरू मत्सयेंन्द्र नाथ ने नेपाल पर कृपा की थी और गुरू गोरखनाथ ने मत्सयेंन्द्र जाति के लोगों को राजा के कुशासन से मुक्त कराया था। राजपरिवार से खिचड़ी चढ़ाने की परम्परा तभी से शुरू हुयी और आज तक चली आ रही है।
गोरखनाथ मंदिर प्रबंधन ने इस परम्परा में एक कडी और जोडा है। शाही परिवार से खिचड़ी आने के बाद पर्व के अगले दिन मंदिर की ओर से राज परिवार को विशेष रूप् से तैयार किया गया महारोट का प्रसाद भेजा जाता है। देशी घी और आटे से बनाये जाने वाले इस प्रसाद को नाथपंथ के योगी ही तैयार करते हैं।
| Tweet |