Pakistan : लाहौर जेल में सरबजीत सिंह की हत्या करने वाले कैदी आमिर तनबा की गोली मारकर हत्या

Last Updated 15 Apr 2024 07:42:57 AM IST

यहां रविवार को अज्ञात बंदूकधारियों ने आमिर तनबा की हत्या कर दी, जो 2013 में लाहौर की कोट लखपत जेल में भारतीय कैदी सरबजीत सिंह की हत्या के लिए जिम्‍मेदार था।


सरबजीत सिंह

आमिर तनबा लाहौर के इस्लामपुरा में अपने घर के बाहर खड़ा था, उसी वक्‍त कम से कम दो अज्ञात मोटरसाइकिल सवार बंदूकधारियों ने गोलीबारी की, जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गया।

सरबजीत सिंह के हत्यारे आमिर तनबा की हत्या को भाड़े के हत्यारों द्वारा की गई ''बदले की हत्या'' के तौर पर देखा जा रहा है।

स्थानीय निवासियों के अनुसार, गोली लगने से आमिर गंभीर रूप से घायल हो गया और अस्पताल ले जाने से पहले ही उसने दम तोड़ दिया।

स्थानीय लोगों ने यह भी दावा किया कि आमिर को पिछले कुछ दिनों से जान से मारने की धमकियां मिल रही थीं।

आमिर पर अपने साथी कैदी मुदासिर मुनीर के साथ अप्रैल 2013 में भारतीय कैदी सरबजीत सिंह पर हमला करने का आरोप लगाया गया था।

बताया गया कि दोनों कैदियों ने लाहौर की कोट लखपत जेल में यातनाएं देकर सरबजीत सिंह को मार डाला।

लेकिन 15 दिसंबर 2013 को हत्या के सभी गवाहों के अपने बयान से मुकर जाने के बाद अदालत ने आमिर और मुनीर दोनों को बरी कर दिया, जिस कारण आरोपियों को रिहा कर दिया गया।

लाहौर की कोट लखपत जेल के कैदियों आमिर और मुनीर ने सरबजीत पर हमला किया और उसे यातनाएं देकर मार डाला।

कुंद वस्तुओं और ईंटों से की गई यातना से सरबजीत के सिर पर गंभीर चोटें आईं।

उन्हें लाहौर के जिन्ना अस्पताल लाया गया और कम से कम पांच दिनों तक गहन चिकित्सा इकाई (आईसीयू) में रखा गया।

बाद में वरिष्ठ न्यूरोसर्जन के मेडिकल बोर्ड ने सरबजीत सिंह को 'मृत' घोषित कर दिया था।

अन्य रिपोर्टों से यह भी संकेत मिलता है कि सरबजीत सिंह की कैदियों द्वारा यातना के पहले दिन ही जेल से अस्पताल ले जाते समय रास्ते में मौत हो गई और वास्तविक घटना पर पर्दा डालने के लिए मामले को और अधिक खींचा गया।

सरबजीत सिंह को 1990 के दशक के दौरान लाहौर और फैसलाबाद में सिलसिलेवार बम विस्फोटों में शामिल होने के लिए पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने आतंकवाद और जासूसी का दोषी ठहराया था।

लाहौर उच्च न्यायालय ने पहले उसे मौत की सजा सुनाई, जबकि शीर्ष अदालत में अपील बाद में खारिज कर दी गई और 1991 में मौत की सजा बरकरार रखी गई।

आईएएनएस
लाहौर


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