तालिबान को मान्यता पर चीन-पाक की उत्सुकता को लेकर चेताया
चीन और पाकिस्तान की अफगानिस्तान में तालिबान शासन को वैश्विक मान्यता दिलाने की संयुक्त रणनीति को लेकर विशेषज्ञों ने दोनों देशों को दीर्घकालिक नुकसान की चेतावनी दी है। तालिबान के काबुल पर कब्जा करने के बाद चीन और पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में 20 साल के युद्ध के बाद इस मामले में दूसरे देशों के साथ संपर्क बढ़ाना शुरू कर दिया है। दूसरी ओर तालिबान की वापसी पर चिंता बनी हुई है, जिसके उदय से अलकायदा और आईएस जैसे आतंकी समूह फिर से सिर उठा सकते हैं।
तालिबान को मान्यता पर चीन-पाक की उत्सुकता को लेकर चेताया |
हांगकांग के ‘साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट’ के एक लेख में कुछ पाकिस्तानी विश्लेषकों के हवाले से कहा गया है कि पाकिस्तान अक्सर कहता रहा है कि अफगानिस्तान में उसका कोई पसंदीदा सहयोगी नहीं है। इसके बावजूद पाकिस्तानी सरकार तालिबान की वापसी से स्पष्ट रूप से सहज नजर आ रही है। ब्रिटेन, संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका में पाकिस्तान की पूर्व राजदूत मलीहा लोधी ने कहा, पाकिस्तान को अपने पड़ोसी देश में शांति से सबसे अधिक लाभ और संघर्ष तथा अस्थिरता से सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ता है।
सिंगापुर में एस राजारत्नम स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के एक सहयोगी रिसर्च फेलो अब्दुल बासित ने कहा, पाकिस्तान तालिबान की मदद करके भारत को अफगानिस्तान से बाहर रखना चाहता था, जबकि तालिबान का मकसद पाकिस्तान में मिली पनाह का लाभ उठाकर अमेरिका को अफगानिस्तान से बाहर करना था। दो जुलाई को पाकिस्तान के राजनेताओं की एक गोपनीय संसदीय ब्रीफिंग में आईएसआई के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद ने तालिबान और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) समूह को एक ही सिक्के के पहलू बताया था। विश्लेषकों ने कहा, पाकिस्तान और चीन दोनों को अमेरिका से एक मजबूत झटके का सामना करना पड़ सकता है जो अपने सैनिकों की वापसी के बाद स्वतंत्र रूप से चीन और क्षेत्र पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकता है।
स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के विश्लेषक असफंदयार मीर ने कहा, अमेरिका पाकिस्तान पर आतंकवाद और तालिबान पर लगाम लगाने के लिए दबाव डाल रहा है। ऐसे में दोनों देशों के रिश्ते तनावपूर्ण बने रहेंगे। चीनी विश्लेषकों ने भी चीन के लिए इसी तरह की चेतावनी दी है। साउथ चाइना मॉर्निग पोस्ट के पूर्व प्रधान संपादक वांग जियांगवेई ने अखबार में अपने कॉलम में लिखा है कि चीनी आधिकारिक मीडिया रिपोर्ट और टिप्पणीकार जाहिर तौर पर अफगानिस्तान में अमेरिकी हार का मजाक उड़ाने में मशगूल नजर आ रहे हैं।
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