एकल दस्तावेज आधारित वार्ता से ही बचेगा आईजीएन
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में स्थायी सदस्यता की मांग कर रहे भारत और जी-4 समूह के अन्य तीन सदस्यों ने जोर देकर कहा है कि यूएनएससी में सुधार के लिए अंतर-सरकार वार्ता (आईजीएन) के मौजूदा प्रारूप को तभी बचाया जा सकता है जब ‘एकल दस्तावेज आधारित वार्ता’ हो और प्रक्रिया में संयुक्त राष्ट्र महासभा के नियमों का अनुपालन किया जाए।
संयुक्त राष्ट्र में जर्मनी के स्थायी प्रतिनिधि क्रिस्टोफ ह्यूसजेन |
महासभा के 75वें सत्र में सुरक्षा परिषद में सुधार से जुड़ी आईजीएन की पहली बैठक सोमवार को हुई, जिसमें भारत, ब्राजील, जर्मनी एवं जापान ने रेखांकित किया कि उक्त दोनों मापदंडों के बिना यह वह मंच नहीं रह पाएगा, जहां काफी समय से लंबित बदलाव ‘वास्तव में मूर्त रूप’ ले सकेंगे। बैठक के दौरान जी-4 के सदस्य देशों ने कहा कि केवल दो चीजें आईजीएन प्रारूप को बचा सकती हैं- पहली एकल दस्तावेज (एक मसौदा) पर आधारित वार्ता, जिसमें सदस्य देशों द्वारा पिछले 12 साल में अपनाए गए रुख प्रति¨बबित हों और दूसरी-संयुक्त राष्ट्र महासभा की प्रक्रिया नियमावाली।
संयुक्त राष्ट्र में जर्मनी के स्थायी प्रतिनिधि क्रिस्टोफ ह्यूसजेन ने जी-4 सदस्य देशों की ओर से कहा, अगर इन मानदंडों को इस साल प्राप्त नहीं किया जाता तो हमारे लिए आईजीएन अपना उद्देश्य खो देगा। समूह ने रेखांकित किया अगर इस साल आईजीएन की चौथी बैठक से पहले एकल मसौदे पर चर्चा नहीं होती और महासभा की प्रक्रिया नियमावली लागू नहीं होती तो औपचारिक प्रक्रिया के तहत बहस दोबारा महासभा में स्थानांतरित हो जाएगी जो कि संयुक्त राष्ट्र के कई सदस्य चाहते भी हैं।
ह्यूसजेन ने कहा, हमारा पूरी तरह से मानना है कि बहस में ‘नई जान फूंकने’ के लिए हमें सही वार्ता शुरू करनी होगी और वार्ता एकल दस्तावेज (सिंगल टेक्स्ट) एवं महासभा की प्रकिया नियमावाली पर आधारित होनी चाहिए। जी-4 के तौर पर हम आपके साथ खुलकर, पारदर्शी तरीके से और परिणाम केंद्रित तरीके से काम करने को तैयार हैं।
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