Gupt Navratri 2024 : आषाढ़ गुप्त नवरात्रि पर करें मां दुर्गा चालीसा का पाठ, खुशहाली से भर जाएगा घर -संसार

Last Updated 06 Jul 2024 11:02:12 AM IST

Gupt Navratri 2024 : आषाढ़ गुप्त नवरात्रि में भक्त लोग देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा करते हैं। इसके साथ ही तंत्र-मंत्र की सिद्धि के लिए दस महाविद्याओं की विशेष रूप से उपासना करते हैं।


Gupt Navratri 2024

Gupt Navratri 2024 - Durga Chalisa Hindi Lyrics : गुप्त नवरात्रि पर दुर्गा मां की पूजा-अर्चना की जाती है। गुप्त नवरात्रि के दौरान दुर्गा माता के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है साथ ही उनकी दस महाविद्याओं की भी अराधना की जाती है। यह एक त्यौहार है जिसमें दुर्गा माता, महाकाली मां, माता महालक्ष्मी और सरस्वती माता की आराधना होती है। ऐसा करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है। इन नौ दिनों तक दुर्गा माता की आरती, दुर्गा चालीसा और भजनों का पाठ ज़रुर करना चाहिए। अगर आपके जीवन में कुछ परेशानियां हैं या किसी चीज़ को लेकर भय है तो आप इन नौ दिनों में दुर्गा चालीसा (Durga Chalisa Hindi Lyrics) का जाप कर सकते हैं, ऐसा करने से आपके जीवन से सभी बाधाएं दूर होंगी। तो चलिए यहां पढ़िए दुर्गा चालीसा का पाठ


Gupt Navratri 2024 -Durga Chalisa Hindi Lyrics

।।दुर्गा चालीसा।। Durga Chalisa Hindi Lyrics

नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो अंबे दुःख हरनी॥

निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूं लोक फैली उजियारी॥

शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥

रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥

अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥

प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

धरयो रूप नरसिंह को अम्बा। परगट भई फाड़कर खम्बा॥

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी॥

मातंगी अरु धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥

श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥

कर में खप्पर खड्ग विराजै। जाको देख काल डर भाजै॥

सोहै अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला॥

नगरकोट में तुम्हीं विराजत। तिहुँलोक में डंका बाजत॥

महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी॥

रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा॥

परी गाढ़ सन्तन पर जब जब। भई सहाय मातु तुम तब तब॥

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥

प्रेम भक्ति से जो यश गावें। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥

शंकर अचरज तप कीनो। काम क्रोध जीति सब लीनो॥

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥

शक्ति रूप का मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो॥

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥

मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥

आशा तृष्णा निपट सतावें। रिपु मुरख मोही डरपावे॥

करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।

जब लगि जियऊं दया फल पाऊं। तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥

श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै। सब सुख भोग परमपद पावै॥

॥ इति श्रीदुर्गा चालीसा सम्पूर्ण ॥

प्रेरणा शुक्ला
नई दिल्ली


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