Skandamata Ki Vrat Katha : नवरात्रि के पांचवें दिन पढ़ें देवी स्कंदमाता की व्रत कथा
नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा - अर्चना की जाती है। देव स्कन्द कुमार यानि कि कार्तिकेय जी की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता का नाम प्राप्त हुआ है।
Skandamata Ki Vrat Katha |
Skandamata Ki Vrat Katha : भारतवर्ष में प्रत्येक साल विभिन्न प्रकार के त्योहार मनाए जाते हैं। हिन्दू धर्म से जुड़े त्योहारों में एक अलग उत्साह होता है। साथ ही इनमें मान्यताओं तथा रीति रिवाजों का बेहद महत्वपूर्ण स्थान होता है। हर साल देवियों के नौ रूपों की पूजा की जाती है। नौ दिनों में प्रत्येक दिन देवी के भिन्न - भिन्न स्वरूपों का वंदन किया जाता है। भक्त नवरात्रि के नौ दिनों तक व्रत धारण करते हैं। हर दिन देवी के स्वरूप का पूजन विधि विधान से करके, उनका गुणगान करते हैं। इस विधि पूजन में कथा का विशेष महत्व है। कथा के बिना देवी का गुणगान करना संभव नही है। नौ दिनों में नौ देवियों की पूजा के साथ उनकी कथा पढ़ना बेहद जरुरी है इसलिए आज हम आपके लिए नवरात्रि के पांचवें दिन की कथा लेकर आए हैं। नवरात्रि का पंचम दिन स्कंदमाता के गुणगान का है। स्कंदमाता सदैव अपने भक्तों की मनोकामना की पूर्ति करती हैं। श्रृद्धा भक्ति से जो भी स्कंदमाता की कथा को पढ़ता है। देवी स्कंदमाता उनकी हमेशा रक्षा करती हैं। पंचम दिन स्कंदमाता देवी का पूजन होता है और उनकी कथा का पाठ किया जाता है।
स्कंदमाता की व्रत कथा - Skandamata Ki Vrat Katha - Navratri Day 5 Maa Skandamata
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार तारकासुर नामक का एक राक्षस था, जिसकी मृत्यु केवल शिव जी के पुत्र ही कर सकते थे। ऐसे में तब पार्वती माता ने अपने पुत्र भगवान स्कन्द (कार्तिकेय का दूसरा नाम) को युद्ध के लिए प्रशिक्षित करने हेतु स्कन्द माता का रूप लिया। मां स्कंदमाता ने भगवान स्कन्द को युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया था। ऐसा कहा जाता है कि स्कंदमाता से युद्ध प्रशिक्षण लेने के बाद भगवान स्कंद ने तारकासुर का वध किया और तभी से माता का नाम स्कंदमाता पड़ गया।
नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा - अर्चना की जाती है। देव स्कन्द कुमार यानि कि कार्तिकेय जी की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता का नाम प्राप्त हुआ है। स्कंदमाता की गोद में भगवान कार्तिकेय अपने बाल रूप में बैठें हैं। मां स्वरूप स्कंदमाता देवी की चार भुजाएं हैं। दाहिनी ऊपरी भुजा में इन्होंने स्कन्द देव को गोदी ले रखा है, दाहिनी निचली भुजा में कमल का पुष्प धारण किए हुए हैं जो कि ऊपर को उठा हुआ है। स्कंदमाता का वर्ण पूर्ण श्वेत रंग का है।
तथा यह सदैव कमल के पुष्प पर विराजमान रहती हैं। जिस कारण इन्हें देवी पद्मासन कहा जाता है और साथ ही इन्हें विद्यावाहिनी दुर्गा देवी नाम से भी जाना जाता है। देवी स्कंदमाता का वाहन सिंह है। स्कंदमाता सूर्यमंडल में उपस्थित अधिष्ठात्री देवी का स्वरूप है। इनकी वंदन आराधना करने से भक्तों को तेज तथा कांति की प्राप्ति होती है। जो भी मनुष्य एकाग्रता से पूर्ण निष्ठा के साथ देवी स्कंदमाता का ध्यान करता है उसके सभी कष्ट दूर होते हैं। वह भक्त जगत के बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति करता है।
जय माता दी।।
जय स्कंदमाता की।।
मां स्कंदमाता के मंत्र (Mata Skandamata Ki Stuti Karne Ka Mantra)
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया.
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥
| Tweet |