Darsh Amavasya Katha In Hindi : पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए दर्श अमावस्या पर जरुर पढ़ें ये कथा
Darsh Amavasya Katha In Hindi : पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए दर्श अमावस्या पर जरुर पढ़ें ये कथा
Darsh Amavasya Katha |
Darsh Amavasya 2023 : दर्श अमावस्या को सबसे महत्वपूर्ण अमावस्या माना जाता है। वासे तो अमावस्या हर माह के शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि को पड़ती है, लेकिन दर्श अमावस्या हर साल शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। जिस कारण से ही इसे दर्श अमावस्या के नाम से जाना जाता है। इस साल 14 अक्टूबर 2023,को दर्श अमावस्या है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो व्यक्ति दर्श अमावस्या के दिन अपने पितरों को पूजते हैं। उनकी कुंडली से पितृ दोष हमेशा के लिए समाप्त हो जाता है। दर्श अमावस्या के दिन पितृ दोष को समाप्त करने के लिए इस कथा (Darsh Amavasya Katha In Hindi ) को जरुर पढ़ें। तो चलिए यहां पढ़ें दर्श अमावस्या की कथा।
दर्श अमावस्या की कथा - Darsh Amavasya Katha In Hindi
पुराने समय की बात है कि समस्त बारहसिंह आत्माएं जोकि सोमरोस पर रहा करती थीं। उनमें से एक आत्मा ने गर्भ धारण करने के बाद एक खूबसूरत सी कन्या को जन्म दिया। जिसका नाम अछोदा रखा गया। अछोदा बचपन से ही अपनी माता की देख रेख में पली बढ़ी। ऐसे में उसे शुरू से ही अपने पिता की कमी महसूस होती थी। जिस कारण एक बार उसे सारी आत्माओं ने मिलकर धरती लोक पर राजा अमावसु की पुत्री के रूप में जन्म लेने को कहा।
राजा अमावसु एक प्रसिद्ध और महान् राजा थे। जिन्होंने अपनी पुत्री अछोदा का लालन पोषण बहुत अच्छे से किया। ऐसे में पिता का प्यार पाकर अछोदा काफी प्रसन्न रहने लगी और आगे चलकर उसने पितरों को इतनी अच्छी जिंदगी प्रदान करने के लिए धन्यवाद करने की सोची। जिसके लिए उसने राजमहल में पितृ पूजन की व्यवस्था कराई।
तभी से श्राद्ध अमावस्या के दिन पितरों को प्रसन्न करने के लिए दान पुण्य इत्यादि किया जाता है। हिंदू धर्म में मान्यता है कि पितरों का श्राद्ध करते समय चंद्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिए, इसलिए दर्श अमावस्या के दिन चांद की अनुपस्थिति में व्रत और दान पुण्य आदि विधि विधान से किया जाता है।
दर्श अमावस्या पर चंद्रमा की कृपा पाने के लिए जरुर पढ़ें चंद्रमा स्तोत्र का पाठ - Darsh Amavasya Katha In Hindi
ॐ श्वेताम्बर:श्वेतवपु:। किरीटी श्वेतधुतिर्दणडधरोद्विबाहु:।
चन्द्रोऽम्रतात्मा वरद: शशाऽक: श्रेयांसि महं प्रददातु देव: ।।1।।
दधिशऽकतुषाराभं क्षीरोदार्नवसम्भवम्।
नमामि शशिनंसोमंशम्भोर्मुकुटभूषणम् ।।2।।
क्षीरसिन्धुसमुत्पन्नो रोहिणीसहित: प्रभुः।
हरस्य मुकटावास बालचन्द्र नमोस्तु ते ।।3।।
सुधामया यत्किरणा: पोषयन्त्योषधीवनम्।
सर्वान्नरसहेतुंतं नमामि सिन्धुनन्दनम् ।।4।।
राकेशं तारकेशं च रोहिणी प्रियसुन्दरम्।
ध्यायतां सर्वदोषघ्नं नमामीन्दुं मुहुर्मुह: ।।5।
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