Pradosh Vrat Katha : शिव भगवान को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो प्रदोष व्रत के दिन जरुर पढ़ें व्रत कथा
Pradosh Vrat Katha : भगवान शंकर को खुश करने के लिए भक्त प्रदोष व्रत रखते हैं। इस दिन विधि - विधान से पूजा करके व्रत कथा का पाठ किया जाता है। ऐसा करने से शंकर जी प्रसन्न होते हैं और खुशहाली का आशीर्वाद देते हैं।
Pradosh Vrat Katha |
Budh Pradosh Vrat Katha : पंचांग के अनुसार 11 अक्टूबर 2023, बुधवार को आश्विन माह का प्रदोष व्रत पड़ रहा है। बुधवार के दिन प्रदोष व्रत पड़ने पर इसे बुध प्रदोष व्रत का नाम दिया गया है। हिंदू धर्म के सबसे शुभ व महत्वपूर्ण व्रतों में से एक प्रदोष व्रत होता है जिसमें शंकर भगवान और मां पार्वती की पूजा - अर्चना की जाती है। माह की त्रयोदशी तिथि में सायं काल को प्रदोष काल कहा जाता है। अपनी मनोकामना पूरी करने करने के लिए कोई भी स्त्री इस व्रत को कर सकती है। यह भगवान शिव के सबसे फलदायक व्रतों में से एक है। प्रदोष व्रत को करने से हर प्रकार का दोष मिट जाता है। अगर आप भी बुध प्रदोष व्रत (Budh Pradosh Vrat Katha) रख रहे हैं तो ध्यान रखें कि पूजा के साथ व्रत कथा जरूर पढ़ें।
बुध प्रदोष व्रत कथा - Budh Pradosh Vrat Katha
प्राचीन समय में एक ब्राम्हणी रहती थी, जो पति की मृत्यु के बाद अपना पालन-पोषण भिक्षा मांगकर करती थी। एक दिन जब वह भिक्षा मांग कर घर आ रही थी तो रास्ते में उसे दो बालक दिखे, जिन्हें वह अपने घर पर ले आई। (Pradosh Vrat Katha) जब वे दोनों बालक बड़े हो गए तो ब्राह्मणी दोनों बालक को लेकर ऋषि शांडिल्य के आश्रम चली गई। जहां ऋषि शांडिल्य ने अपनी शक्तियों से उन बच्चों के बारे में पता लिया (Pradosh Vrat Katha) और ब्राह्मणी को बताया कि हे देवी, ये दोनों बालक विदर्भ राज के राजकुमार हैं। गंदर्भ नरेश के आक्रमण से इनके पिता का राज-पाठ छिन गया है।
इसके बाद ब्राह्मणी और राजकुमारों ने विधि-विधान से प्रदोष व्रत किया (Pradosh Vrat Katha) फिर एक दिन बड़े राजकुमार की मुलाकात अंशुमती से हुई और दोनों एक-दूसरे को पसंद करने लगे। तब अंशुमती के पिता ने राजकुमार की सहमति से दोनों का विवाह कर दिया। फिर दोनों राजकुमार ने एक दिन गंदर्भ पर हमला कर दिया और उनकी विजय हुई। बता दें कि इस युद्ध में अंशुमती के पिता ने राजकुमारों की काफी मद्द की थी। दोनों राजकुमारों को अपना सिंहासन फिर से वापस मिल गया (Pradosh Vrat Katha) और गरीब ब्राम्हणी को भी महल में एक खास स्थान दिया गया, जिससे उनके सारे दुख खत्म हो गए। राज-पाठ वापस मिलने का कारण प्रदोष व्रत था, जिससे उन्हें संपत्ति मिली और जीवन में खुशहाली आई। बस तभी से इस व्रत को किया जाने लगा।
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