संकल्प शक्ति
एक आदमी ने तय किया कि आज खाना नहीं खाएंगे। इसका जो मूल्य है, वह खाना नहीं खाने में उतना नहीं है, जितना इसके संकल्प में है, लेकिन उसने अगर मन में भी एक दफा खाना खा लिया, तो बात खतम हो गई, बेकार हो गया सब मामला।
![]() आचार्य रजनीश ओशो |
खाना नहीं खाएंगे, उसका मतलब ही यही है कि खाना नहीं ही खाएंगे, मन में भी नहीं। अगर दिन भर एक आदमी बारह घंटे भी मनपूर्वक बिना खाना खाए रह गया, तो उसने एक बड़ा संकल्प पार किया। इस खाना नहीं खाने का कोई मूल्य नहीं है, यह तो सिर्फ खूंटी है जिस पर उसने संकल्प को टांगा, लेकिन बारह घंटे के बाद इस आदमी की क्वालिटी बदल जाएगी। और जब मैं देखता हूं कि एक आदमी वर्षो से उपवास कर रहा है, उसकी कोई क्वालिटी नहीं बदली, तो मैं जानता हूं कि वह मन में खाता रहा होगा।
क्वालिटी तो बदलनी चाहिए थी। जिंदगी हो गई इसको खाना नहीं खाते, यह उपवास करता है, वह उपवास करता है, लेकिन इसके गुण में कहीं भी कोई अंतर नहीं पड़ा है। यह आदमी वही का वही है। ताला लगाकर जाता है और फिर लौटकर ताला हिला कर देखता है कि बंद है या नहीं। एक आदमी को मैं जानता हूं। मेरे घर के सामने ही वे रहते हैं। वे उपवास करते हैं, पूजापाठ करते हैं, लेकिन संकल्प के ऐसे कमजोर हैं कि मैंने उन्हें कई दफा देखा है कि वे ताला लगाकर गए, दस कदम से वापस लौटे, फिर उन्होंने उसे हिलाया। तो मैंने उनसे पूछा कि आप क्या करते हैं! आप ही ताला लगा कर गए। वे कहते हैं, मुझे कभी-कभी शक हो जाता है कि पता नहीं, मैंने देखा कि नहीं, जरा और देख लें।
एक दफा देखने में हर्जा क्या है। मैंने कहा, और दूसरी दफा खयाल नहीं आता कि पता नहीं मैंने एक दफा लौटकर देखा कि नहीं। उन्होंने कहा, आपको यह कैसे पता चला? आता तो है मुझे, लेकिन मैं संकोचवश लौटता नहीं हूं। अब यह एक आदमी है। यह उपवास कर रहा है, यह सब कर रहा है, लेकिन इसे पता ही नहीं है कि उपवास का मतलब क्या था। उसका मतलब इतना ही था कि एक निर्णायक शक्ति आ जाए। आदमी निर्णय ले सके और लौटे नहीं। और जो आदमी भी ऐसा निर्णय ले सकता है, जो प्वाइंट आफ नो रिटर्न सिद्ध हो, तो उस आदमी की जिंदगी में कुछ भी नहीं बचता जो सोया हुआ रह जाए, सब जाग ही जाता है।
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