नवसृजन की चेतना
नवसृजन की चेतना, श्रीराम शर्मा आचार्य, धर्म, धार्मिक लेख
![]() श्रीराम शर्मा आचार्य |
छोटी सामाजिक, स्थानीय एवं व्यक्तिगत समस्याओं के उपाय-उपचार छोटे रूप में भी सोचे और खोजे जा सकते हैं, पर जब समस्या बड़ी हों, तो उनसे निपटने के लिए बड़े पैमाने पर तैयारियां करनी होती हैं। नल का पानी कुछ लोगों की आवश्यकता पूरी कर सकता है, किंतु सूखाग्रस्त क्षेत्रों का स्थाई समाधान बड़े उपायों से ही बन पड़ता है। भगीरथ ने यही किया था। वे हिमालय से जलराशि को गंगा के रूप में विशाल क्षेत्र में दौड़ने के लिए कटिबद्ध हो गया। फलस्वरूप उसके प्रभाव में आने वाले क्षेत्र समुचित जल व्यवस्था बन जाने से सुरम्य और समृद्धिशाली बन गए।
तथाकथित बुद्धिमान और शक्तिशाली इन दिनों की समस्याओं और आवश्यकताओं को तो समझते हैं, पर उपाय खोजते समय यह मान बैठते हैं कि यह संसार मात्र पदाथरे से सजी पंसारी की दुकान भर है। इसकी कुछ चीजें इधर की उधर कर देने और उपयुक्त को उस स्थान पर जमा देने भर से काम चल जाएगा। समूचे प्रयास इन दिनों इसी दृष्टि से बन और चल रहे है। वायु प्रदूषण दूर करने के लिए कोई ऐसी नई गैस खोजने का प्रयत्न हो रहा है, जो हवा के भरते जा रहे विष को चूस लिया करे।
खाद्यान्न की पूर्ति के लिए खादों के ऐसे भीमकाय कारखाने खुल रहे हैं, जो एक के दस पौधे उगा दिया करें। पर मूल कारण की ओर ध्यान न जाने से अभाव, असंतोष एवं विग्रह किस प्रकार निरस्त होगा, इसे सोचने की न जाने क्यों किसी को फुरसत नहीं है? चोट की मरहम पट्टी तो की जा सकती है, पर समस्त रक्त में फैले हुए रक्त कैंसर को मरहम पट्टी से कैसे ठीक किया जाए? एक दिन तो कोई किसी को मुफ्त में भी रोटी खिला सकता है, पर आए दिन की आवश्यकताएं तो हर किसी को अपने बलबूते ही हल करनी पड़ेगी।
व्यक्ति के सामने विभिन्न स्तर की असंख्य समस्याएं मुंह खोले खड़ी हैं। उन सबसे निपटने के लिए अपनी ही सूझबूझ को इस स्तर तक विकसित करना चाहिए, जिससे आंगन का कूड़ा रोज साफ करते रहने की तरह आवश्यक समाधानों को भी सोचा और अपनाया जा सके। वस्तुत: मनुष्य का चिंतन, चरित्र और व्यवहार बुरी तरह गड़बड़ा गया है। पगलाए हुए व्यक्ति द्वारा की गई तोड़-फोड़ की मरम्मत तो होनी चाहिए, पर साथ ही उस उन्माद की रोकथाम भी होनी चाहिए, जिसने भविष्य में भी वैसी ही उद्दंडता करते रहने की आदत अपनाई है।
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