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- संगम की रेती पर संयम, श्रद्धा और कायाशोधन का ‘कल्पवास’
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गोस्वामी तुलसीदास ने ‘रामचरितमानस’ के ‘बालकाण्ड’ में माघ मेला की महत्ता इस प्रकार बतायी है। ‘माघ मकर गति रवि जब होई, तीरथ पतिहिं आव सब कोई, देव दनुज किन्नर नर श्रेनी, सादर मज्जहिं सकल त्रिवेनी’। आदिकाल से चली आ रही इस परंपरा के महत्व की चर्चा वेदों से लेकर महाभारत और रामचरितमानस में अलग-अलग नामों से मिलती है। बदलते समय के अनुरूप कल्पवास करने वालों के तौर-तरीके में कुछ बदलाव जरूर आए हैं लेकिन कल्पवास करने वालों की संख्या में कमी नहीं आई है। आज भी श्रद्धालु कड़ाके की सर्दी में कम से कम संसाधनों में कल्पवास करते हैं।
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