राजनीति और इंसानियत के संबंध को रुपहले पर्दे पर उतारने में काबिल हैं कबीर खान
फिल्म निर्माता कबीर खान के लिए फिल्म निर्माण काफी व्यक्तिगत है। उनके मुताबिक फिल्म निर्माता वही फिल्में बनाते हैं जो वो खुद देखना चाहता हैं।
- 15:01 : kabir khan
फिल्म निर्माता कबीर खान |
एक अच्छे और मंझे हुए फिल्म निर्माता के रूप में कबीर खान बेहद खूबसूरती से राजनीति और इंसानियत के बीच के संबंध को रुपहले पर्दे पर दिखाते हैं।
फिल्म निर्माता का कहना है कि जब उन्होंने डॉक्यूमेंट्री से मेन स्ट्रीम सिनेमा में क़दम रखा तो दोनों को मिक्स करने की कोशिश की। उस वक्त, मुख्यधारा की फिल्मों में राजनीति के बारे में बात करने पर पाबंदी थी। लेकिन जिन तीन फिल्मों से इसकी शुरुआत हुई, उनमें निर्माताओं ने उन्हें जटिल राजनीतिक स्थितियों का पता लगाने का मौका दिया। न्यूयॉर्क (2009), एक था टाइगर (2012), बजरंगी भाईजान (2015), तीनों फिल्में राजनीतिक पर आधारित थीं, साथ ही उनकी कहानी भी एक खास दर्शक वर्ग से जुड़ी हुई थी।
कबीर खान के लिए फिल्म निर्माण काफी व्यक्तिगत है। उन्होंने बताया कि उन्हें लगता है कि फिल्म निर्माता वही फिल्में बनाते हैं जो वो खुद देखना चाहते हैं।
बात करें बजरंगी भाईजान (2015) की तो यह फिल्म राजनीतिक विषयों को सरलता से लोगों तक पहुंचाने की क्षमता की कामयाब मिसाल पेश करती है। बजरंगी भाईजान एक राजनीतिक फिल्म थी, लेकिन लोगों ने इसके अंदर इंसानियत का रिश्ता देखा जो कि एक जीत थी।
कबीर खान की खासियत में एक ये भी चीज शुमार है कि वो हमेशा वास्तविक दुनिया से ऐसे तत्व लाते हैं जो उनका ध्यान खींचते हैं और वो हमेशा मददगार भी साबित होते हैं। सही इतिहास और उसकी सटीकता की जटिलताओं से निपटना भी एक बड़ी चुनौती का हिस्सा है जिसे कबीर हमेशा स्वीकार करते हैं।
उनका ये मानना है कि डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माण से दूर चले गए हैं क्योंकि वो ज़िंदगी से भी बड़ी कहानी कहने की तलाश में हैं। अपने रचनात्मक सफर पर विचार करते हुए कबीर खान पूरी तैयारी और सामाजिक-राजनीतिक संदर्भों की गहरी समझ की ज़रूरतों के बारे में रोशनी डालते हुए कहते हैं, "मैंने कभी कोई फिल्म नहीं बनाई और बाद में सोचा कि मुझे इसे अलग तरीके से बनाना चाहिए था। मुझे इस बारे में आश्वस्त होना होगा कि मैं क्या बना रहा हूं, मुझे खुद को आश्वस्त करना होगा। मुझे बैठना होगा और उस सामाजिक-राजनीतिक संदर्भ को समझना होगा जिस पर मैं अपनी फिल्म बना रहा हूं।"
उनकी एक और खास बात है कि वो नई कहानियों की खोज करना और सिनेमाई मानदंडों को चुनौतियों को फिल्म दर फिल्म जारी रखते हैं। उनकी फिल्में विचार को उकसाने, भावनाओं को जगाने और दर्शकों पर स्थायी प्रभाव छोड़ने में सक्षम हैं।
कबीर ने ऐसी कई फिल्में दी हैं समाज को जो उसकी असली तस्वीर पेश करती हैं इसके अलावा उनकी फिल्मों ने हमें राजनीति और समाज की असली हकीकत से भी रूबरू कराया जो हमसे छुपी हुईं थीं। इसके साथ ही उनकी कुछ फिल्में जैसे '83' और चंदू चैंपियन प्रेरणादायक रही हैं। इसके अलावा 2006 में आई 'काबुल एक्प्रेस' जो कि एडवेंचर थ्रिलर फिल्म थी।
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