प्रधानमंत्री मोदी ने लता मंगेशकर को उनके 92वें जन्मदिन पर दी बधाई
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुर सम्राज्ञी लता मंगेशकर को मंगलवार को उनके जन्मदिन पर बधाई दी। अधिकारियों ने बताया कि गायकों की कई पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत लता मंगेश्कर के 92वें जन्मदिन पर मोदी ने उन्हें शुभकामनाएं देने के लिए सुबह फोन किया था।
सुर सम्राज्ञी लता मंगेशकर (फाइल फोटो) |
ट्विटर पर मोदी ने अपने बधाई संदेश में कहा, “आदरणीय लता दीदी को जन्मदिन की बधाई। उनकी सुरीली आवाज पूरी दुनिया में गूंजती है। भारतीय संस्कृति के प्रति उनकी विनम्रता और जुनून के लिए उनका सम्मान किया जाता है। व्यक्तिगत रूप से, उनका आशीर्वाद महान शक्ति का स्रोत है। मैं लता दीदी के लंबे और स्वस्थ जीवन की कामना करता हूं।”
Birthday greetings to respected Lata Didi. Her melodious voice reverberates across the world. She is respected for her humility & passion towards Indian culture. Personally, her blessings are a source of great strength. I pray for Lata Didi’s long & healthy life. @mangeshkarlata
— Narendra Modi (@narendramodi) September 28, 2021
लगभग छह दशको से अपनी जादुई आवाज के जरिये बीस से अधिक भाषाओं मे पचास हजार से भी ज्यादा गीत गाकर .गिनीज बुक ऑफ र्वल्ड रिकार्ड. में नाम दर्ज करा चुकी संगीत की देवी लता मंगेश्कर आज भी श्रोताओ के दिल पर राज कर रही हैं।
मध्य प्रदेश के इंदौर में 28 सिंतबर 1929 को जन्मीं लता मूल नाम हेमा हरिदकर के पिता दीनानाथ मंगेश्कर मराठी रंगमंच से जुडे हुये थे। पांच वर्ष की उम्र में लता ने अपने पिता के साथ नाटकों मे अभिनय करना शुरू कर दिया। इसके साथ ही लता संगीत की शिक्षा अपने पिता से लेने लगी।
लता ने वर्ष 1942 में ‘किटी हसाल’ के लिये अपना पहला गाना गाया लेकिन उनके पिता दीनानाथ मंगेश्कर को लता का फिल्मों के लिये गाना पसंद नही आया और उन्होंने उस फिल्म से लता के गाये गीत को हटवा दिया।
वर्ष 1942 मे तेरह वर्ष की छोटी उम्र में ही लता के सिर से पिता का साया मे उठ गया और परिवार की जिम्मेदारी लता मंगेशकर के उपर आ गयी। इसके बाद उनका पूरा परिवार पुणे से मुंबई आ गया। हालांकि लता को फिल्मो में अभिनय करना जरा भी पसंद नही था बावजूद इसके परिवार की आर्थिक जिम्मेदारी को उठाते हुये लता ने फिल्मो मे अभिनय करना शुरू कर दिया।
वर्ष 1942 मे लता को ‘पहली मंगलगौर’ में अभिनय करने का मौका मिला। वर्ष 1945 मे लता की मुलाकात संगीतकार गुलाम हैदर से हुयी। गुलाम हैदर लता के गाने के अंदाज से काफी प्रभावित हुये। गुलाम हैदर ने फिल्म निर्माता एस मुखर्जी से यह गुजारिश की कि वह लता को अपनी फिल्म शहीद मे गाने का मौका दें।
एस मुखर्जी को लता की आवाज पसंद नही आई और उन्होने लता को अपनी फिल्म मे लेने से मना कर दिया। इस बात को लेकर गुलाम हैदर काफी गुस्सा हुये और उन्होने कहा यह लड़की आगे इतना अधिक नाम करेगी कि बड़े-बड़े निर्माता -निर्देशक उसे अपनी फिल्मो मे गाने के लिये गुजारिश करेगें ।
वर्ष 1949 मे फिल्म महल के गाने "आयेगा आने वाला" गाने के बाद लता बालीवुड मे अपनी पहचान बनाने मे सफल हो गयी। इसके बाद राजकपूर की ‘बरसात’ के गाने "जिया बेकरार है" "हवा मे उड़ता जाये" जैसे गीत गाने के बाद लता मंगेशकर बालीवुड मे एक सफल पाश्र्वगायिका के रूप मे स्थापित हो गयीं।
सी रामचंद्र के संगीत निर्देशन मे लता ने प्रदीप के लिखे गीत पर एक कार्यक्रम के दौरान एक गैर फिल्मी गीत "ए मेरे वतन के लोगो" गाया। इस गीत को सुनकर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू इतने प्रभावित हुये कि उनकी आंखो मे आंसू आ गये। लता के गाये इस गीत से आज भी लोगो की आंखे नम हो उठती हैं।
लता की आवाज से नौशाद का संगीत सज उठता था। संगीतकार नौशाद लता के आवाज के इस कदर दीवाने थे कि उन्होंने अपनी हर फिल्म के लिये लता को हीं लिया करते थे। वर्ष 1960 मे प्रदर्शित फिल्म मुगले आजम के गीत "मोहे पनघट पे" गीत की रिकाडिंग के दौरान नौशाद ने लता से कहा था ‘‘मैंने यह गीत केवल तुम्हारे लिये ही बनाया है इस गीत को कोई और नही गा सकता है।’’
हिन्दी सिनेमा के शो मैन कहे जाने वाले राजकपूर को सदा अपनी फिल्मो के लिये लता मंगेशकर की आवाज की जरूरत रहा करती थी। राजकपूर लता के आवाज के इस कदर प्रभावित थे कि उन्होने लता मंगेशकर को ‘सरस्वती’ का दर्जा तक दे रखा था। साठ के दशक मे लता मंगेशकर पाश्र्वगायिकाओं की महारानी कही जाने लगी।
वर्ष 1969 मे लक्ष्मीकांत प्यारे लाल के संगीत निर्देशन ने लता मंगेश्कर ने फिल्म इंतकाम का गाना "आ जानें जा"गाकर यह साबित कर दिया कि वह आशा भोंसले की तरह पाश्चात्य धुन पर भी गा सकती हैं। नब्बे के दशक तक आते आते लता कुछ चुनिंदा फिल्मो के लिये हीं गाने लगीं। वर्ष 1990 मे अपने बैनर की फिल्म लेकिन के लिये लता ने "यारा सिली सिली" गाना गाया। हांलाकि यह फिल्म चली नहीं लेकिन आज भी यह गाना लता के बेहतरीन गानों मे से एक माना जाता है।
लता को उनके सिने करियर में चार बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। लता को उनके गाये गीत के लिये वर्ष 1972 में फिल्म परिचय, वर्ष 1975 में कोरा कागज और वर्ष 1990 मे फिल्म लेकिन के लिये नेशनल अवार्ड से सम्मानित किया गया। इसके अलावे लता को वर्ष 1969 मे पद्मभूषण, वर्ष 1989 मे दादा साहब फाल्के सम्मान, वर्ष 1999 मे पद्मविभूषण तथा वर्ष 2001 मे भारत रत्न जैसे कई सम्मान प्राप्त हो चुके हैं।
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