कोरोना की जांच, चीन पर आंच

Last Updated 30 May 2021 02:12:20 AM IST

दुनिया भर में करीब 17 करोड़ लोगों को संक्रमित करने और उनमें से 35 लाख लोगों को अपना शिकार बनाने वाले कोरोना वायरस की पैदाइश को लेकर पसरा कोहरा अगले कुछ महीनों में छंट सकता है।


कोरोना की जांच, चीन पर आंच

ऐसा लग रहा है कि दुनिया की बादशाहत को लेकर चीन से लगातार चुनौती झेल रहे अमेरिका ने इस दिशा में वो निर्णायक कदम उठा लिया है, जो इस रहस्य से पर्दा उठा सकता है। इस काम के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अपनी खुफिया एजेंसी को 90 दिन की मोहलत दी है। पिछले एक साल से यह मसला बहस का केंद्र रहा है और दुनिया के कई विशेषज्ञों की मान्यता है कि इस वायरस के वुहान की लैब में तैयार होने की आशंका पर अभी और काम किए जाने की जरूरत है। अब अमेरिका के इस फैसले ने इस आशंका को नये सिरे से हवा दे दी है।

उम्मीद के मुताबिक चीन ने इस कदम पर तुरंत प्रतिक्रिया दी है। उसने अमेरिका को अपने खिलाफ साजिश रचने से बाज आने को कहा है और अमेरिका से भी अपनी प्रयोगशालाओं को जांच के लिए खोलने की मांग की है, लेकिन इस बार उसके तेवरों में तीखापन कम और बौखलाहट ज्यादा दिखाई दे रही है। इसकी एक वजह शायद यह हो सकती है कि पिछले साल तक इस मुद्दे पर उसके साथ खड़े दिख रहे वि स्वास्थ्य संगठन ने भी यू-टर्न ले लिया है। संगठन के महानिदेशक ने वायरस की उत्पत्ति पर आगे और अध्ययन की पश्चिमी देशों की मांग से सहमति जताकर एक तरह से चीन के पैरों के नीचे से जमीन निकालने वाला काम किया है।

पिछले साल मार्च में विश्व स्वास्थ्य संगठन और अपने वैज्ञानिकों की संयुक्त रूप से लिखी रिपोर्ट को चीन अपने लिए  क्लीनचिट के तौर पर पेश करता आया है। इस रिपोर्ट में वायरस के किसी लैब में बनने की संभावना को बेहद कम बताते हुए इसी मान्यता को बल दिया गया था कि चमगादड़ जैसे किसी संक्रमित पशु के संपर्क में आने से यह इंसानों में फैला, लेकिन अब विश्व स्वास्थ्य संगठन के बदले रु ख से चीन का पलड़ा हल्का पड़ गया है। संभव है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन चीन पर वुहान लैब की जांच के लिए नये सिरे से दबाव बनाए और इस बार जांच वाकई पारदर्शी हो और सभी डेटा जांच दल की पहुंच में हों। हालांकि साजिश रचने में माहिर चीन ने सबूत मिटाने में कोई कोताही बरती होगी, इसकी संभावना न के बराबर है। ऐसे में जांच दल के हाथ कोई बड़ी उपलब्धि लग पाएगी, ऐसा नहीं लगता।

इसके बावजूद कहा जा सकता है कि बाइडेन ने नहले पर दहला जड़ने के लिए शायद सही वक्त का चुनाव किया है। हालांकि उनके पूर्ववर्ती डोनाल्ड ट्रंप बहुत पहले से इस वायरस के चीन की लैब से निकलने का दावा कर रहे थे, लेकिन डेमोक्रेट खेमा इसे ट्रंप की गैर-जवाबदेह बयानबाजी ही कहता रहा था। झूठे बयानों और गलत जानकारी फैलाने के कारण ट्रंप की छवि पहले ही विवादित नेता की बन चुकी थी। राष्ट्रपति चुनाव में धांधली के आरोपों की ही तरह चीन को कटघरे में खड़े करने के लिए भी वो कोई सबूत पेश नहीं कर पाए, लेकिन अब जब सब कुछ वैसा ही हो रहा है, जिसकी वो पैरवी कर रहे थे तो उन्हें यह कहने का हक तो मिल ही गया है कि उनकी कही बात पर अब दुनिया मुहर लगा रही है। कभी उनकी बातों को खारिज कर देने वाले व्हाइट हाउस के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार एंथनी फाउची की राय भी अब बदल गई है और वो भी मान रहे हैं कि हो सकता है कि वायरस को प्राकृतिक मानने की उनकी सोच 100 फीसद सही न हो।

इसलिए तहकीकात का एक सिरा उस सवाल से भी जुड़ना चाहिए कि बाइडेन का फैसला अमेरिका समेत दुनिया के दबाव का नतीजा है, या फिर उनके हाथ कोई ऐसा सबूत लगा है, जिससे वो अचानक इस फैसले तक पहुंचे हैं। कहीं इसका उस गुप्त दस्तावेज से कोई कनेक्शन तो नहीं, जिसमें कोरोना वायरस को तीसरे विश्व युद्ध में एक जैविक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने की चीन की तैयारियों का खुलासा किया गया है।

चीन की इस विस्तारवादी महत्त्वाकांक्षा का प्रभाव अमेरिका के बाहर भी दिख रहा है। ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, इस्रइल, डेनमार्क, नॉर्वे, जापान और कोरिया जैसे 13 प्रमुख देश नये सिरे से जांच के मामले में अमेरिका के साथ खड़े हैं। तो भारत ने भी वायरस की उत्पत्ति की दोबारा जांच के समर्थन में प्रमुखता से आवाज उठाई है, लेकिन चीन की इस घेराबंदी में ब्रिटेन बेहद सक्रिय भूमिका निभाता दिख रहा है। नाटो से लेकर अपने मित्र देशों को चीन से सुरक्षा देने के मकसद से ब्रिटेन ने अपनी नौसेना के सबसे शक्तिशाली बेड़े को हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए रवाना कर दिया है। इस बेड़े पर 32 एयरक्राफ्ट के साथ 3,700 नौ-सैनिक सवार हैं। अगले सात महीने तक यह बेड़ा भू-मध्य सागर और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में 2,600 समुद्री मील का सफर तय करेगा। ये वो समुद्री इलाका है, जहां कई क्षेत्रों पर कब्जे के लिए चीन आक्रामक रु ख अपनाए हुए है। अब ब्रिटेन यहां भारत सहित कई देशों के साथ 70 से ज्यादा युद्धाभ्यास करके चीन के खिलाफ दुनिया के लामबंद होने का संदेश बुलंद करना चाहता है।

भारत के नजरिये से देखें तो जो हो रहा है, अच्छा हो रहा है। मौजूदा दौर में चीन की आफत हमारे लिए राहत से कम नहीं है। खासकर ऐसे समय में जब हमारा लगभग हर पड़ोसी या तो मजबूरी में या कोरी महत्त्वाकांक्षा के कारण चीन के सामने नतमस्तक है। कोरोना की आपदा में अवसर तलाशने की चीन की साजिश पहली लहर के दौरान देश की उत्तरी सीमा पर गलवान घाटी में हमले के रूप में सामने आई थी। अब दूसरी लहर में चीन ने हमारी दक्षिणी सीमा पर नजरें टेढ़ी की हैं। श्रीलंका के हम्बनटोटा बंदरगाह पर कब्जा जमाने के बाद चीन अब कोलंबो के पास एक पोर्ट सिटी बनाने जा रहा है। परोक्ष या अपरोक्ष रूप से इसका मतलब यही है कि कोलंबो का बंदरगाह अब चीन के कब्जे में आ चुका है, और आने वाले समय में वो जब चाहेगा उसकी पनडुब्बियां, युद्धपोत यहां बेरोकटोक डेरा डाल सकेंगे। यह जगह कन्याकुमारी से केवल 290 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां तक कि चेन्नई और त्रिवेन्द्रम पर भी हर वक्त खतरा मंडराता रहेगा। ऐसे समय में ब्रिटिश बेड़े की इस इलाके में मौजूदगी से भले ही तनाव और संघर्ष के हालात बनें, लेकिन वो चीन पर एक नकेल का काम भी करेगा।

बहरहाल, गेंद अब विश्व स्वास्थ्य संगठन के पाले में है। अमेरिका ने तो अपनी ओर से पड़ताल का बिगुल बजा दिया है। संभव है कि 90 दिनों में उसकी खुफिया एजेंसियां कोरोना की उत्पत्ति से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां निकाल भी लाएं। ये जानकारियां चाहे जितनी सटीक हों, अगर ये चीन के खिलाफ जाती हैं तो वो इनकी प्रामाणिकता पर हमेशा सवाल उठाता रहेगा और कोरोना का सच सामने होकर भी मंजूर नहीं किया जा सकेगा। यह तभी संभव होगा जब इस पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की भी मुहर लगेगी।

उपेन्द्र राय


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