मोदी का अभियान.. आत्मनिर्भर हिंदुस्तान
कोरोना वायरस को रोकने के लिए दुनिया के ज्यादातर देश लॉकडाउन के रास्ते पर आगे बढ़े हैं, लेकिन इस कदम ने ऐसे तमाम देशों की राह में गंभीर आर्थिक चुनौती खड़ी कर दी है।
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इससे पैदा हुए आर्थिक संकट को 1930 के दशक की महामंदी के बाद का सबसे बड़ा संकट भी माना जा रहा है। गौर करें तो यह दशक उस कालखंड का अहम पड़ाव भी है, जब गुलाम भारत अपनी स्वाधीनता की लड़ाई को चरम पर ले जाने की तैयारी कर रहा था। महात्मा गांधी की अगुवाई में आजादी के परवाने पराधीनता की बेड़ियां तोड़कर खुद अपने पैरों पर खड़े होने का नारा बुलंद कर रहे थे। ऐसे समय में बापू ने आत्मनिर्भरता के दर्शन को राष्ट्रीय चिंतन बनाया, जिसने आगे चलकर भारत को एक स्वाधीन और आत्मनिर्भर राष्ट्र की पहचान दिलाई।
सात दशक बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश को एक बार फिर आत्मनिर्भरता के उस मंत्र की याद दिलाई है। कोरोना वायरस ने मानवता के साथ ही समूची दुनिया की अर्थव्यवस्था को अपना गुलाम बना लिया है। इससे उबरने के लिए दुनिया भर की सरकारें कोरोना राहत पैकेज का ऐलान कर रही हैं। भारत में भी मोदी सरकार ने 20 लाख करोड़ के पैकेज का ऐलान किया है, जो हमारी जीडीपी का दस फीसद है। बेशक, दुनिया के पांच देशों ने हमसे बड़े पैकेज का ऐलान किया हो, लेकिन उनमें से किसी भी देश को अपने पैरों पर खड़ा करने की सोच उतनी मजबूत और भरोसेमंद नहीं दिखती जो हमारे देश के राहत पैकेज में झलकती है। शायद यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसे आत्मनिर्भर भारत अभियान पैकेज का नाम दिया है। कोरोना संकट की शुरु आत से ही प्रधानमंत्री कहते रहे हैं कि बड़ा संकट बड़े अवसर भी लेकर आता है।
आत्मनिर्भर भारत अभियान केवल इस संकट के बीच से देश को सुरक्षित निकाल ले जाने मात्र की बुनियाद नहीं है, बल्कि यह भविष्य के लिए एक ऐसी इमारत खड़ी करने की तैयारी भी है, जो बड़े-से-बड़े झंझावात को भी आसानी से झेल सके। इसमें कल-कारखानों के लिए संजीवनी की तलाश है, तो किसानों को उनकी मेहनत का पूरा प्रतिफल देने का भी प्रयास है, मिडिल क्लास की फिक्र है, तो रेहड़ी वालों के सम्मान का भी जिक्र है। प्रवासी मजदूरों के लिए चिंतन है, तो कारोबारियों के लिए भी मंथन है। मोटे तौर पर देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए इकोनॉमी, इंफ्रास्ट्रक्चर, सिस्टम, डेमोग्राफी और डिमांड को मजबूत करने के लिए जमीन, श्रम, नकदी और कानून पर नये सिरे से काम इस अभियान की पहचान है। इसकी शुरु आत देश को 15 करोड़ तक रोजगार देने वाले एमएसएमई सेक्टर से हुई है।
बीस लाख करोड़ रुपये के पैकेज में से तीन लाख करोड़ एमएसएमई को जाएंगे। दो सौ करोड़ तक के टेंडर को ग्लोबल प्रतिस्पर्धा से मुक्त कर सरकार ने एमएसएमई को संरक्षण का बड़ा कवच पहनाया है, जो इस सेक्टर को विस्तार के ज्यादा मौके भी देगा और ग्लोबल मार्केट में लोकल प्रोडक्ट को वोकल बनाने में सहयोग भी करेगा। चार साल तक बिना गारंटी वाला लोन एमएसएमई में नई जान फूंकने का काम करेगा। निवेश की लिमिट में बदलाव लाते हुए सरकार ने एमएसएमई की परिभाषा भी बदली है। इसके अलावा, एमएसएमई के लिए कई राहत-भरी घोषणाएं हैं। एक सोच यह भी है कि अगर सरकार कर्मचारियों के सैलरी संकट के लिए भी कुछ व्यवस्था कर देती, तो एमएसएमई सेक्टर की एक बड़ी चिंता दूर हो जाती क्योंकि अगर यह संकट दूर नहीं हुआ तो इतने बड़े पैमाने पर रोजगार सृजित करने वाले सेक्टर में बेरोजगारी तेजी से बढ़ सकती है। एमएसएमई के साथ ही देश के सबसे बड़े असंगठित क्षेत्र कृषि के लिए भी इस राहत पैकेज में सरकार की चिंता सामने आई है। प्रधानमंत्री किसानों की आय को दोगुना करने की सरकार की प्रतिबद्धता से पीछे नहीं हटे हैं और यह पैकेज उस सोच को विस्तार भी देता है। सबसे उत्साहजनक बात यह है कि भारत का किसान अब अपना उत्पाद देश के किसी भी बाजार में बेच सकेगा। इसके लिए सरकार मौजूदा कानूनों में बदलाव करेगी। किसान संगठन लंबे समय से यह मांग कर रहे थे।
कृषि क्षेत्र की आधारभूत संरचना को मजबूत करने के लिए सरकार ने एक लाख करोड़ रुपये का ऐलान किया है। राष्ट्रीय विजन के साथ ही सरकार ने लोकल का भी ध्यान रखा है। इसीलिए बिहार का मखाना, पूर्वोत्तर में बांस के कोपल, उत्तर प्रदेश के आम और कश्मीर के केसर उत्पादन को बढ़ाने के लिए योजनाएं बनाई गई हैं। अनाज ही नहीं, फल से लेकर मधुमक्खी, मत्स्य और पशुपालन तक सबके लिए सरकार ने अपना पिटारा खोला है। इनमें से कई योजनाएं बजट से भी जुड़ी हैं और कोरोना संकट में सरकार इन योजनाओं को रफ्तार देने जा रही है ताकि इनसे जुड़े किसानों की तकलीफों को तेजी से दूर किया जा सके। इसी तरह प्रवासी मजदूरों के लिए 3500 करोड़ रुपये की मदद का ऐलान यकीनन शहरों में रोजगार गंवाने और घर लौटने के दौरान दर-दर ठोकरें खाने से मिले जख्मों पर मरहम लगाने का काम करेगा।
अगले दो महीनों तक पांच किलो गेहूं या चावल के लिए राशन कार्ड की बाध्यता हटाने का फैसला भी खाली हाथ घर लौटे मजदूरों को परिवार वालों पर बोझ बनने की ग्लानि से राहत देगा। लॉकडाउन ने ठेली-पटरियों पर दुकान लगाने वाले स्ट्रीट वेंडरों को भी प्रभावित किया है। इनकी कमाई भले बहुत ज्यादा ना हो, लेकिन करीब पचास लाख की बड़ी तादाद के कारण इनकी छोटी कमाई भी अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान देती है। सरकार ने ऐसे लोगों को कारोबार दोबारा शुरू करने के लिए लोन का प्रावधान किया है।
इन तमाम योजनाओं में भले ही तात्कालिक राहत कम दिख रही हो, लेकिन सरकार की सोच देश को सरकारी मदद के भरोसे नहीं, बल्कि अपने पैरों पर खड़ा होने की ताकत देने जैसी दिखती है। यह ठीक भी लगता है क्योंकि जिस तरह आज कोरोना संकट बन कर सामने आया है, कल कोई और विपदा दुनिया को मुश्किल में डाल सकती है। ऐसे में देश और स्वदेश की बात हमें उन हालात से उबारने में मददगार होगी।
लॉकडाउन में जब पूरी दुनिया एक-दूसरे से कटी हुई है तब स्वदेशी उत्पादन, स्थानीय बाजार और लोकल सप्लाई चेन ही हमारा सहारा बनी है। प्रधानमंत्री ने ठीक याद दिलाया कि आज जो बड़े ग्लोबल ब्रांड हैं, वो भी कभी-न-कभी लोकल ही थे, जो स्थानीय जनता के वोकल सहयोग से दुनिया के कारोबार पर छा गए। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि सात दशक पहले आजादी की लड़ाई जीतने और गुलामी की बैसाखी हटाकर देश को अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए बापू ने भी स्वदेशी के इसी जज्बे को जनता का हथियार बनाया था। आज कोरोना काल में आत्मनिर्भर भारत के अभियान को उसकी मंजिल तक पहुंचाने के लिए उसी जज्बे को नई धार देने की दरकार है।
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