परिवार बढ़ाने की सलाह : महिलाएं संभालें कमान

Last Updated 28 Oct 2024 01:13:32 PM IST

आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बयानों से कोई भी समझदार व्यक्ति शायद ही सहमत हो परंतु उनके बयानों के गहरे संदर्भ से इंकार भी नहीं किया जा सकता।


परिवार बढ़ाने की सलाह : महिलाएं संभालें कमान

नायडू ने न केवल अधिक बच्चे पैदा करने वाले परिवारों को प्रोत्साहन देने की बात कही, बल्कि इस पर भी जोर दिया कि वह जनसंख्या कानून में बदलाव लाएंगे जिससे स्थानीय निकायों के चुनावों में दो से अधिक बच्चों वाले लोग भी चुनाव लड़ सकें।  स्टालिन ने भी कुछ इसी तरह का बयान दिया कि प्रत्येक वैवाहिक जोड़े को 16 बच्चे पैदा करने चाहिए। ये बयान ऐसे समय में आए हैं, जब देश विकास के नये मापदंड स्थापित करने में संलग्न है और 2030 तक 9 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने हेतु प्रयास किया जा रहा हो।

देश के संधाधनों के अनुपात में जनसंख्या अधिक होने के कारण भारत पहले से ही अनेक प्रकार की आर्थिक-सामाजिक समस्यायों से जूझ रहा है परंतु ये समस्याएं प्रत्येक राज्य में अलग-अलग हैं। साक्षरता पर अधिक ध्यान दिए जाने से दक्षिण भारत के राज्य न केवल विकास की दौड़ में आगे निकल गए, बल्कि जनसांख्यिकी लाभांश लेने में भी सफल हो रहे हैं। दक्षिणी राज्य देश के आर्थिक उत्पादन में 30 प्रतिशत से  अधिक का योगदान करते हैं। पश्चिमी भारत के राज्यों का योगदान लगभग 23 प्रतिशत और उत्तरी क्षेत्र के पंजाब, हरियाणा और राजस्थान का 18.5 प्रतिशत का योगदान है जबकि उत्तर भारत के अन्य राज्य इस दौड़ में काफी पीछे हैं।

तमिलनाडु तो भारत की मैन्युफैक्चरिंग राजधानी है। यही कारण है कि उत्तर भारत के पढ़े-लिखे युवाओं की पहली पसंद दक्षिण भारत के राज्य हैं। मेडिकल जर्नल लैंसेट में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार विश्व के 204 देशों में से 155 यानी 76 प्रतिशत देशों में जन्म दर 2050 तक जनसंख्या प्रतिस्थापन के स्तर से भी कम होने की उम्मीद है। वैश्विक स्तर पर प्रति महिला जन्म दर 1950 में 5 बच्चे थी जो 2021 में 110 देशों में प्रजनन दर प्रति महिला गिरकर 2.1 रह गई। आर्थिक विकास के साथ प्रजनन दर का कम होना सामान्य बात है। दक्षिण भारत के राज्यों की प्रजनन दर भारत की औसत प्रजनन दर से भी कम है। आंध्र प्रदेश में यह 1.7, तमिलनाडु में 1.8 और तेलंगाना में 1.82 बच्चा प्रति परिवार है।

बिहार में यह औसत 3 और उत्तर प्रदेश में 2.4 है। प्रजनन दर में कमी एवं स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार से बुजुगरे की संख्या बढ़ती है। संयुक्त राष्ट्र की इंडिया एजिंग रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में बुजुगरे की आबादी 10.5 प्रतिशत थी, जो 2050 तक बढ़कर लगभग 21 प्रतिशत हो जाएगी। इसका असर दक्षिण भारत में भी दिखाई देने लगा है। 2036 तक दक्षिण भारत में हर 5 में से एक व्यक्ति बुजुर्ग होगा। विकास के उच्चतम स्तर पर पहुंचने से पहले ही दक्षिण भारत के दोनों नेताओं के बयान स्वागतयोग्य नहीं हैं। राजनीतिक कारणों से प्रेरित लगते हैं क्योंकि इन नेताओं को आशंका है कि 2026 में होने वाले परिसीमन में लोक सभा की सीटों में दक्षिण भारत को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाएगा।

प्रश्न यह है कि इन नेताओं के बयान आने वाले दो वर्षो के लिए हैं, या फिर भविष्य के लिए। केवल राजनीतिक स्वाथरे के आधार पर देश पर अतिरिक्त बोझ डालने के लिए प्रोत्साहित करना कहां तक उचित है? क्या वे नहीं जानते कि वे देश को और अधिक आर्थिक-सामाजिक खतरों की तरफ ले जाने की बात कह रहे हैं? अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए वे कम होती युवा आबादी को आदर्श मानते हैं तो दूसरी ओर बुजुर्गों को परजीवी के रूप में पेश करते हैं। इन दोनों नेताओं यह तब कहना चाहिए था जब उनके राज्य में सभी हाथों को काम मिल गया होता। तमिलनाडु में 4-5 प्रतिशत एवं आंध्र प्रदेश में यह 5-6 प्रतिशत बेरोजगारी है।

उन्हें अपने कार्यबल को प्रशिक्षित करने की बात करनी चाहिए। विकसित देशों के अनेक उदाहरणों से स्पष्ट है कि शिक्षित व्यक्ति की आर्थिक स्थिति में सुधार आ जाने के बाद वे दुबारा जनसंख्या बढ़ा कर उसी स्थिति में आना पसंद नहीं करते। यद्यपि दक्षिण भारत के राज्य उत्तर भारत के राज्यों से विकास की दौड़ में आगे निकल गए हैं परंतु वे अभी तक विकास के उच्चतम स्तर पर नहीं पहुंच पाए हैं। अभी भी उत्तर भारत की तुलना में मात्र 13 गुना अधिक संसाधनों का उपभोग करते हैं जबकि उनके पास यह संभावना 60 प्रतिशत से अधिक है। इस संदर्भ में आगे सोचने की बजाय उनके बयान विकास को खोने वाले हैं।

जनसंख्या बढ़ाने को कानूनी प्रोत्साहन मिलने से सीधा असर अशिक्षित लोगों पर पड़ेगा। जनसंख्या को अधिक करना पुरु षवादी कल्पना है, जिसके लिए ज्यादातर महिलाएं और कई पुरुष लंबे समय से भारी कीमत चुका रहे हैं। महिलाएं ही रास्ता दिखाएंगी बशर्ते हम उन्हें ऐसा करने दें। बच्चे अधिक पैदा करने का विकल्प महिलाओं को दिया जाए तो वे कभी भी जनसंख्या बढ़ाने के पक्ष में नहीं होंगी। यह स्वतंत्रता उनका एक बुनियादी मानवाधिकार है। दक्षिण भारत में महिला श्रम भागीदारी लगभग 30 प्रतिशत है। महिला श्रम बल को प्रशिक्षित कर विकास की संभावनाओं को प्रबल बनाने पर फोकस करना चाहिए न कि जनसंख्या बढ़ा कर विकास का उल्टा चक्र चलाना चाहिए।

आने वाले समय में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव मानवता के लिए एक गंभीर चुनौती हैं।  इसलिए इन राज्यों को प्रदूषण, गरीबी, बेरोजगारी, आवास, अपशिष्ट आदि मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जिससे लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार किया जा सके। देश घटती प्रजनन दर के साथ अनुकूलन तो कर सकता है परंतु अधिक जनसंख्या के भार को सहन नहीं कर सकता। राज्यों के बीच बढ़ता आर्थिक अंतर बड़ी नीतिगत चुनौतियां पेश करे, इससे पहले ही नीति आयोग को महत्त्वपूर्ण भूमिका के साथ हस्तक्षेप करना होगा।

दीर्घकालिक योजनाओं के द्वारा प्रत्येक राज्य को विकास का इंजन बना कर समावेशी विकास के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। दक्षिण राज्यों को भी समझना होगा कि विकास की रणनीतिक योजना, सुदृढ़ औद्योगिकी, सेवा क्षेत्रों का प्रसार, प्रभावी सरकारी नीतियों, नवाचार आदि के कारण प्राप्त होने वाले लाभों की संभावनाओं को और अधिक बढ़ाएं जाने की आवश्यकता है, न कि जनसंख्या को अधिक कर उन्हें खोने की।
(लेख में विचार निजी हैं)

डॉ. सुरजीत सिंह गांधी


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