नए कानून : दंड नहीं, न्याय का विधान

Last Updated 03 Jul 2024 01:01:15 PM IST

वर्ष 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से आहत होकर अंग्रेजों ने स्वतंत्रता सेनानियों और उनके मददगारों को दंड देने की दृष्टि से अनेक औपनिवेशिक कानून लागू किए थे। इनमें प्रमुख रूप से अंग्रेजी राज का पर्याय बने तीन मूलभूत कानूनों में आमूलचूल परिवर्तन किए गए हैं।


नए कानून : दंड नहीं, न्याय का विधान

1860 में बने इंडियन पेनल कोड को अब भारतीय न्याय संहिता, 1898 में बने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और 1872 में बने इंडियन एविडेंस कोड को अब भारतीय साक्ष्य संहिता के नाम से जाना जाएगा। इन कानूनों के शीषर्क में ही ‘दंड’ की प्रधानता है।

मसलन, इन कानूनों की चपेट में जो भी आएगा उसे दंडित होना ही पड़ेगा। दंड के मनोविज्ञान से ही निर्दोष भयभीत हो जाया करते हैं। इस भय से मुक्ति का प्रावधान करने की दृश्टि से ‘न्याय’ शब्द का प्रयोग कानून के शीषर्कों में किया गया है। न्याय शब्द ही इस अर्थ का प्रतीक है कि यदि आपसे भूलवश कोई अपराध हो भी गया है तो आप न्याय के भागीदार होंगे। फिरंगी हुकूमत ने कानून भारतीयों को अधिकतम दंड देने की मानसिकता से बनाए थे, जबकि कोई भी विधि सम्मत प्रक्रिया दंड की अपेक्षा न्याय के सरोकारों से जुड़ी होनी चाहिए। इसीलिए भारतीय न्याय व्यवस्था के सिलसिले में कहा जाता रहा है कि यहां न्याय नहीं निराकरण होता है। नये कानूनों के लागू होने के साथ दुनिया में सबसे अधिक आधुनिक आपराधिक न्याय प्रणाली भारत की होगी, क्योंकि अब इनकी आत्मा में भारतीयता निहित कर दी गई है।  

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पांच पण्रकिए थे, इनमें एक प्रण गुलामी की निशानियों को खत्म करना भी था। कानून संबंधी पारित विधेयक उसी परिप्रेक्ष्य में हैं। नये कानूनों के अंतर्गत दंड अपराध रोकने की भावना पैदा करने के लिए दिया जाएगा। नये कानून महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा पर केंद्रित हैं। अब नये कानून में नाबालिग से दुष्कर्म और मॉब लिंचिंग के लिए फांसी की सजा दी जाएगी। राजद्रोह कानून ब्रिटिश सत्ता को कायम रखने के लिए था, इसे अब खत्म किया जा रहा है। कुछ प्रचलित धाराओं की संख्या भी बदली गई है। प्रमुख रूप से अंग्रेजी राज का पर्याय बने तीन मूलभूत  कानूनों में आमूलचूल परिवर्तन किए गए हैं। 1860 में बने इंडियन पेनल कोड को अब भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) कहा जाएगा।

164 साल पुरानी आईपीसी में 511 धाराएं थीं, जो बीएनएस-2023 में 358 रह जाएंगी। इसमें 21 नये अपराध जुड़े हैं, और 41 धाराओं में सजा बढ़ाई गई है। पहली बार छह अपराधों में सामुदायिक सेवा की सजा जोड़ी गई है। साफ है, पीड़ितों के साथ न्याय पर फोकस किया गया है। 1898 में बने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) कहा जाएगा। इसमें 47 नई धाराओं के साथ अब कुल 531 धाराएं होंगी। पहले धारा 154 में होने वाली प्राथमिकी नये कानून के तहत धारा-173 में दर्ज की जाएगी। अब पुराने कानून दंड प्रक्रिया संहिता में से ‘दंड को हटाकर नागरिक सुरक्षा पर जोर दिया गया है, 1872 में बने इंडियन एविडेंस कोड को अब भारतीय साक्ष्य संहिता के नाम से जाना जाएगा। पुराने कानून में 167 धाराएं थीं, जो अब 170 रह गई हैं। इस कानून को तकनीक और फॉरेंसिक आधार पर तैयार किया गया है ताकि सजा का प्रतिशत 90 प्रतिशत तक पहुंच जाए। बढ़ते साइबर अपराधों के संदर्भ में इस कानून की अहम भूमिका जताई जा रही है।    

नये प्रारूप में धारा 150 के तहत आरोपी को सात साल की सजा से लेकर उम्रकैद तक की सजा दी जा सकती है। मॉब लीचिंग यानी उन्मादी भीड़ द्वारा हत्या और हिंसा के लिए अलग से सजा का प्रावधान किया गया है। इसे पंथनिरपेक्ष रखा गया है क्योंकि कभी-कभी चोर को भी भीड़ मार देती है। झारखंड और अन्य कई अशिक्षित क्षेत्रों में महिलाओं को डायन बता कर समूह मार देता है। इन हत्याओं पर अब मॉब लीचिंग कानून लागू होगा। अभी तक ऐसे मामलों में हत्या की धारा 302 और दंगा या बलवा की धाराएं 147-148 के तहत कार्यवाही होती है। नाबालिग से दुष्कर्म या पहचान छिपा कर किए गए दुष्कर्म के आरोप में 20 साल का कारावास या मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है। विरोध नहीं करने के अर्थ का आशय सहमति नहीं निकाला जाएगा।
नये कानून में पहली बार आतंकवाद की इबारत को पारिभाषित किया गया है।

कोई व्यक्ति देश की एकता, अखंडता, संप्रभुता और सुरक्षा को संकट में डालने के इरादे से कृत्य करता है तो उसे नये कानून के हिसाब से सजा मिलेगी। देश के अस्तित्व को चुनौती देने वाले बाहरी या भीतरी असामाजिक तत्व कानूनी शिकंजे से बचने न पाएं, इसके प्रावधान किए गए हैं। यही कानूनी प्रावधान बृहत्तर सामाजिक हित राज्य को भारत की संप्रभुता, अखंडता तथा राज्य की सुरक्षा से जोड़ते हैं। भारत के विरु द्ध सांप्रदायिक कट्टरता फैलाने और सरकार के लिए नफरत के हालात बनाने में भारत विरोधी विदेशी ताकतें सोशल मीडिया का मनचाहा एवं गलत दुरु पयोग करती हैं, इसलिए नये कानून में देश तोड़ने की कोशिश करने वाली ताकतों पर अंकुश के लिए कठोर प्रावधान किए गए हैं। अतएव स्वतंत्रता के 76 साल बाद भारतीयों को वास्तव में ऐसी प्रणाली मिल गई है, जो दंड की बजाय अधिकतम न्याय पर आधारित है।

प्रमोद भार्गव


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