आईसीसी ट्राफी : आखिर, दूरी हुई खत्म
भारत आखिरकार, टी-20 विश्व कप में चैंपियन बन गया। उन्होंने बारबाडोस के केनसिंग्टन ओवल में खेले गए फाइनल में दक्षिण अफ्रीका को सात रनों से हरा कर यह सफलता हासिल की है।
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भारत ने टी-20 विश्व कप को दूसरी बार जीता है। इससे पहले 2007 में इसकी शुरुआत होने पर महेंद्र सिंह धोनी की अगुआई में चैंपियन बना था। धोनी की कप्तानी में ही भारत ने 2011 में वनडे विश्व कप और 2013 में चैंपियंस ट्रॉफी जीती। पर इसके बाद से सफलता रूठी रही। पिछले साल नवम्बर में भारतीय टीम वनडे विश्व कप में ऑस्ट्रेलिया के हाथों हारी तो लगा कि टीम में चैंपियन बनने का दम नहीं है। पर सात माह में ही टीम चैंपियन का सपना पूरा करने में सफल रही।
भारत जब वनडे विश्व कप में हारा तो रोहित शर्मा की कप्तानी पर सवाल उठने लगे थे। माना जा रहा था कि किसी युवा को टीम की कमान सौंपी जा सकती है। लेकिन रोहित जब पहली बार चयन समिति से मिले तो उन्होंने कहा कि हमारी टीम के खिलाड़ियों को खारिज करना सही नहीं होगा क्योंकि हमने लीग चरण में चैंपियन ऑस्ट्रेलिया सहित हर टीम को हराया है। चयन समिति को इससे लगा कि रोहित टी-20 विश्व कप में कप्तानी करने को तैयार हैं। तब उन्हें ही विश्व कप में कप्तान बनाने का ऐलान हुआ। इसके बाद रोहित ने कोच राहुल द्रविड़ और सपोर्ट स्टाफ के साथ मिल कर टीम के खेलने के अंदाज को नया आयाम दिया।
इसे बाद टीम ने मुश्किल में फंसने के बाद भी आक्रामक रुख नहीं छोड़ा और यह बदलाव ही टीम को चैंपियन बनाने में सफल रहा। इस सफलता ने कोच राहुल द्रविड़ हों या कप्तान रोहित शर्मा सभी की छवि को नया रूप दे दिया है। राहुल बेजोड़ खिलाड़ी होने के बावजूद कभी विश्व कप जीतने वाली टीम का हिस्सा नहीं बन सके थे। अपनी कप्तानी में बारबाडोस में ही वनडे विश्व कप में खराब प्रदर्शन से दो-चार हो चुके थे। लेकिन अब इसी मैदान से विश्व कप जिताने वाले कोच के तौर पर अपनी इस पारी को विराम दे रहे हैं। जहां तक बात रोहित की है तो वह अपनी कप्तानी में टीम को विश्व टेस्ट चैंपियनशिप और वनडे विश्व कप के फाइनल में ले जा चुके थे पर चैंपियन कप्तान का टेग उनके ऊपर नहीं लग सका था। वह भारत को वनडे और टी-20 रैंकिंग में नंबर एक पर पहुंचाने में सफल रहे पर फिर भी विश्व कप जीतने वाले कप्तानों कपिल देव की जमात में शामिल नहीं हो सके थे पर अब टी-20 विश्व कप जीत कर वह इस जमात में शामिल हो गए हैं।
रोहित और द्रविड़ की कप्तान-कोच की जोड़ी की तरह ही विराट और रवि शास्त्री की जोड़ी ने भी टीम को ढेरों सफलताएं दिलाई पर टीम को विश्व कप नहीं जिता सकी। पर विराट इससे पहले वनडे विश्व कप और चैंपियंस ट्रॉफी जीतने वाली टीमों में शामिल रहे थे और उनकी कप्तानी में भारत अंडर-19 विश्व कप भी जीत चुका था। अब टी-20 विश्व कप भी उनकी झोली में आ गया है। वह चारों ट्रॉफियां जीतने वाले दुनिया के इकलौते खिलाड़ी बन गए हैं।
भारत ने जिस तरह से फाइनल में दक्षिण अफ्रीका को फतह किया, उसे सालों-साल याद रखा जाएगा। भारत ने जब पहले बल्लेबाजी करके सात विकेट पर 176 रन बनाए तो यह लगा कि वह जरूरत से 10-15 रन पीछे रह गया। हालांकि यह विश्व कप फाइनल का अब तक का सर्वश्रेष्ठ स्कोर था। दक्षिण अफ्रीका के क्लासेन और क्विंटन डिकॉक खेल रहे थे तो लगा कि भारत के रन कम रह गए। लेकिन हार्दिक पांडय़ा ने 17वें ओवर में गेंदबाजी के लिए आने पर पहले क्लासेन और फिर डेविड मिलर को आउट करके दक्षिण अफ्रीका की तरफ झुके मैच को भारत के पक्ष में कर दिया। यह सही है कि उन्हें डेविड मिलर का विकेट उनके गेंदबाजी कमाल से ज्यादा सूर्यकुमार यादव द्वारा कैच पकड़ने में दिखाई सूझबूझ की ज्यादा भूमिका थी। पर अपने प्रदर्शन से उन्होंने दिखाया कि वह टीम के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं। आईपीएल में खराब प्रदर्शन करने पर उन्हें टीम में शामिल करने पर भी सवाल खड़े किए जा रहे थे। विश्व कप में उन्होंने बल्ले और गेंद दोनों से बेहतरीन प्रदर्शन करके दिखाया कि वह कितने अहम खिलाड़ी हैं।
कोच राहुल और कप्तान रोहित के अपने फैसलों पर अडिग रहने ने भी सफलता में अहम भूमिका निभाई। इस जोड़ी ने विराट से पारी शुरू कराने का फैसला किया और उनसे पहली गेंद से ही आक्रामक रुख अपनाने को कहा। इसमें विराट को थोड़ी दिक्कत हुई और वह कई बार दो-एक अच्छे शॉट लगाकर आउट होते रहे। फाइनल तक एक भी अर्धशतक नहीं बना पाने पर उनसे पारी शुरू कराने की आलोचना होने लगी। कहा जाने लगा कि यशस्वी जायसवाल से पारी शुरू कराकर विराट को तीसरे नंबर पर खिलाया जाए। पर द्रविड़ और रोहित अपने फैसले पर डटे रहे, क्योंकि उन्हें विराट की क्षमता का अंदाजा था। आखिर में फाइनल में कोहली ने अपना विराट रूप अपना कर भारत को चैंपियन बनाने में अहम भूमिका निभा दी।
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