बेहतर दुनिया : ऐसी राह जहां सामाजिक प्रगति जुड़े

Last Updated 26 May 2024 01:22:32 PM IST

आधुनिक समाजों की एक विसंगति यह है कि एक ओर अति सफल, अति संपन्न और विख्यात कुछ व्यक्तियों की चकाचौंध है, तो दूसरी ओर बहुत बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो अपने को उपेक्षित और हाशिए पर धकेला हुआ महसूस करते हैं।


बेहतर दुनिया : ऐसी राह जहां सामाजिक प्रगति जुड़े

ऐसी स्थिति से हट कर हमें यथासंभव ऐसी राह निकालनी चाहिए जहां अधिक से अधिक व्यक्ति अपनी प्रगति की ऐसी राह अपनाएं जो पूरे समाज की प्रगति से जुड़ती हो।

इस के लिए जो एक बहुत बुनियादी जीवन-मूल्य चाहिए, जो बहुत महत्त्वपूर्ण होते हुए बहुत सरल भी है। वह यह है कि हम कभी भी दूसरों को दुख देने का कुप्रयास न करें तथा यथासंभव दूसरों के दुख-दर्द कम करने का ही प्रयास करें। बेशक, दूसरों का दुख-दर्द कम करने की हमारी क्षमता बहुत सीमित हो सकती है, पर इस सीमा के बीच हम दूसरों का दुख-दर्द कम करने का प्रयास जरूर करें। इसके लिए अपनी क्षमताएं विकसित भी करें। इस बारे में कोई भी व्यक्ति यदि बहुत सावान रहता है कि मुझे किसी को दुख नहीं पहुचाना है, तो वह अपने वाणी, कार्य, सोच को, इस तरह ही अनुशासित करता है, ढालता है।

इस तरह अधिक से अधिक लोग प्रयास करते रहें तो बहुत से व्यक्ति स्वयं बेहतर इंसान बनते रहते हैं, और पूरा समाज भी बेहतर बनता रहता है। इससे जुड़ा हुआ दूसरा जीवन-मूल्य है कि हम सभी मनुष्यों की बहुत बुनियादी समानता में विास रखें तथा शर्म, जाति, क्षेत्रीयता, राष्ट्रीयता तथा लिंग आधारित भेदभावों से ऊपर उठकर इंसानियत की सोच या विश्व के सभी लोगों की बराबरी और सम्मान की सोच पर आधारित जीवन जिएं तथा इस तरह की राह बहुत से लोगों की सम्मिलित सोच को विश्व स्तर पर अमन-शांति की सोच से जोड़ें। इस सोच में तरह-तरह की दुश्मनियों, वैर-द्वेष और भेदभाव को जीवन भर पाले रखने का कोई अर्थ नहीं है और यदि ऐसी कोई संकीर्ण सोच पहले से है तो इससे चिपटे रहने के स्थान पर इससे बाहर निकल कर इंसानियत की सोच, सभी लोगों को समता और गरिमा की सोच को अपनाने में ही प्रगति है।

तीसरा जरूरी जीवन-मूल्य ईमानदारी है, जिसके साथ यह भी जरूरी है कि मनुष्य अपनी मेहनत की कमाई से ही संतुष्ट रहे और बेईमानी, हर तरह के जुए, दूसरों के हक छीनने की प्रवृत्ति से दूर रहे। विभिन्न अपराधों से अपने को दूर रखना व जो टैक्स देने हों उन्हें समय पर देना भी जरूरी है। ईमानदारी का एक अन्य महत्त्वपूर्ण पक्ष है कि अपने विभिन्न रिश्तों में भी ईमानदारी अपनाना और धोखा देने का कुप्रयास कभी न करना। इससे जुड़ी हुई बात है कि मनुष्य को फिजूलखर्ची और भोग-विलास से बचना चाहिए।

अपनी  सभी जरूरतों को पूरा करना, कुछ आराम के साधन जुटाना, कठिन समय के लिए कुछ बचत करना-यह सब तो उचित है पर भोग-विलास पर अधिक खर्च करना अनुचित है। ऐसा करने पर पर्यावरण की भी क्षति होती है और समाज के अधिक जरूरतमंद लोगों का हक छिनता है। यदि मनुष्य फिजूलखर्ची से बचेगा तो अपनी जरूरतों को पूरा करने के बाद जो धन उसके पास बचेगा उसका उपयोग वह सार्थक सामाजिक कायरे के लिए कर सकता है। जैसे निर्धन लोगों की सहायता करना, पर्यावरण रक्षा के कार्य करना आदि। विशेष तौर पर सभी तरह के नशे से अपने को दूर रखना जरूरी है क्योंकि विभिन्न तरह के नशे व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर तबाही की प्रमुख वजह है। शराब, तंबाकू, गुटखे, सिगरेट-बीड़ी, तरह-तरह के ड्रग्स सभी से दूर रहना जरूरी है। शराब की तबाही सबसे अधिक है और शराब से दूर रहना बहुत जरूरी है।

आधुनिक तकनीकी ने जीवन में बहुत कुछ नया प्रवेश कर दिया है, और लोग इसमें मस्त हो गए हैं, रम गए हैं। कोई दिन भर फोन से चिपका है, तो कोई कंप्यूटर से। इस स्थिति में यह समझ बहुत जरूरी है कि किसी आधुनिक तकनीक या उपकरण के उपलब्ध होने का अर्थ यह नहीं है कि उसे अपने पर हावी होने दिया जाए। अपने जीवन की सही प्राथमिकताओं को बनाए रखते हुए विभिन्न नई तकनीकों और उपकरणों का सीमित उपयोग ही करना चाहिए और इनसे होने वाली हानि के प्रति भी सावधानी से दूर रहना चाहिए।

परिवार समाज की सबसे बुनियादी इकाई है और परिवार की भलाई से निरंतर जुड़े रहना, परिवार की बुनियादी इकाई को न्याय आधारित मजबूती देना, परिवार का मानवीय सहयोग और  आपसी सहायता, सुख-दुख के साथ की बुनियादी इकाई बनाना बहुत जरूरी है। परिवार एक जीवन-आधार भी है और शिक्षा संस्थान भी है। परिवार की सही स्थिति और सहयोग के आधार पर ही मनुष्यों को समाज में व्यापक स्तर पर उपयोगी भूमिका निभाने में बहुत मदद मिलती है।

इसी तरह आस-पड़ौस में नजदीकी समुदाय से बेहतर संबंध बनाना और उसकी भलाई में न्यायोचित सहयोग देना, विभिन्न मित्रता के संबंधों को निभाना और समाज की भलाई से जोड़ते हुए आगे ले जाना भी महत्त्वपूर्ण है। आठवीं आवश्यकता यह है कि परिवार में और परिवार के बाहर अधिक व्यापक सामाजिक स्तर पर महिलाओं को उचित सम्मान दिया जाए, उनसे उचित और गरिमामय व्यवहार हो तथा उन्हें अपनी प्रतिभाओं के अनुकूल प्रगति के उचित अवसर मिलें। पुरुषों के उनसे संबंध न्यायसंगत, समानता और सहयोग के होने चाहिए न कि आधिपत्य और अपना स्वार्थ साधने के। विशेष ध्यान देने की बात है कि महिलाओं के प्रति हिंसा और  दमन को समाप्त करने को घर और समाज, दोनों स्तरों पर उच्च प्राथमिकता मिले।

व्यापक सच्चाई तो यह है कि कई तरह के हिंसक कार्य को ही नहीं अपितु हिंसक सोच को भी समाप्त करने का नियंत्रित और अनुशासित प्रयास सभी मनुष्यों की प्रगति के लिए आवश्यक है। इस तरह के प्रयास व्यापक स्तर पर होंगे तो समाज, राष्ट्रों और विश्व स्तर पर अमन-शांति की स्थिति अपने आप बेहतर होगी, अमन-शांति के लिए एक मजबूत बुनियाद तैयार होगी। अंतिम और बहुत बुनियादी बात यह है कि नैतिकता की कसौटी पर अपनी सोच और अपने कायरे को परखते रहना सभी मनुष्यों के लिए बहुत जरूरी है। जब अधिकांश मनुष्य यह सोचने लगते हैं कि मुझे केवल अपने हित का ख्याल नहीं रखना है, दूसरों के हित का भी ख्याल रखना है, मुझे जाने-अनजाने ऐसे कार्य नहीं करने हैं जिनसे समाज की क्षति होती है तो इस राह पर चलते हुए ही व्यक्तिगत प्रगति और पूरे समाज की प्रगति में परस्पर सामंजस्य एकता स्थापित होने लगती है।

यदि इन सभी दस सिद्धांतों को ध्यान में रखा जाए तो व्यक्तिगत प्रगति की राह और सामाजिक प्रगति की राह बहुत कुछ एक सी होने लगती है, व्यक्ति का अपना विकास समाज के व्यापक विकास से जुड़ जाता है। जहां तक संभव हो इस आदर्श स्थिति के नजदीक पहुंचने का प्रयास करना चाहिए।

भारत डोगरा


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