फुटबॉल : कोच से ज्यादा सोच जरूरी
फुटबॉल की वैश्विक संस्था फीफा ने जून के आखिर में जब टीमों की रैंकिंग जारी की तो भारतीय फुटबॉल जगत में खुशी की लहर दौड़ गई।
फुटबॉल : कोच से ज्यादा सोच जरूरी |
भारतीय टीम और उसके नये कोच के प्रदर्शन की चर्चा होने लगी। माना जा रहा है कि क्रोएशिया के पूर्व खिलाड़ी इगोर स्टिमक के नेतृत्व में टीम कायापलट की ओर बढ़ रही है। खिलाड़ियों के खेल और आक्रमण के तरीके में बदलाव की बात भी होने लगी। कोच के टीम चयन की रणनीति को भी सराहा गया। प्रशंसक हों या खेल के जानकार सभी को लगता है कि आगामी एशिया कप में टीम का प्रदर्शन जरूर सुधरेगा। इन उम्मीदों की बड़ी वजह 2017 के बाद भारतीय टीम का शीर्ष सौ में शामिल होना था।
इस बीच, जब मीडिया में खुलासा हुआ कि टीम चयन की रणनीति में फिटनेस और प्रदर्शन से अधिक भाग्य और सितारों को तवज्जो दी गई तो सभी के होश उड़ गए। इस बाबत जो रिपोर्ट आई हैं, उनमें कहा गया है कि जिस खेल में शीर्ष के देश खिलाड़ियों के हालिया प्रदर्शन और फिटनेस को टीम चुनने का आधार मानता है, उसमें भारतीय फुटबॉलरों को टीम में जगह बनाने के लिए उनके सितारों का बुलंद होना बेहद जरूरी है। खिलाड़ी का प्रदर्शन ठीक होने के बाद भी अगर उसके ग्रह-नक्षत्रों की चाल सही नहीं है, तो टीम में उसका चयन नामुमकिन है। रिपोर्ट में खासकर जून में एशियन कप क्वालिफायर के लिए टीम चयन का जिक्र है, जिसके लिए कोच और भारतीय फुटबॉल फेडरेशन ने एक एस्ट्रोलॉजर का सहारा लिया और उसे इसके लिए मोटी फीस भी चुकाई गई। भारतीय फुटबॉल फेडरेशन और क्रांतिकारी बदलाव के लिए मशहूर कोच स्टिमक को लेकर हुए इस खुलासे ने फुटबॉल प्रेमियों को झकझोर दिया। पहले से ही अपने विकास और प्रसार से जुड़ी मुश्किलों से घिरे भारतीय फुटबॉल जगत में खिलाड़ियों के उत्पीड़न का भी अंदाजा इस एक खुलासे से लगाया जा सकता है। हाल के वर्षो में जिस कोच के नेतृत्व में भारतीय फुटबॉल के मौन पुनरुत्थान की बात की जा रही थी, उसकी कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हो गए हैं। जिस कोच को समर्पित दृष्टिकोण और अटूट प्रतिबद्धता के साथ चुपचाप भारतीय फुटबॉल टीम को फीफा विश्व कप में एक ऐतिहासिक स्थान की ओर ले जाने का श्रेय दिया जा रहा है, उसकी पोल खुल गई है।
ग्रहों-नक्षत्रों के आधार पर टीम को सफलता दिलाने की रणनीति बनाने से पहले फेडरेशन और कोच को टीम के पुराने रिकॉर्ड ही जांच लेने चाहिए थे। ज्यादा पहले की बात न भी करें तो 2017 भारतीय फुटबॉल के लिए दो दशक में पहला ब्रेकथ्रू था। टीम अपने बेहतरीन खेल से फीफा रैंकिंग में 96वें रैंक पर पहुंच गई थी। इस कैलेंडर वर्ष के दौरान भारत ने नौ में से सात मैचों में जीत दर्ज की थी और दो ड्रॉ खेले थे। कोच स्टेफेन कॉन्स्टेनटाइन के निर्देशन में टीम ने बेहतरीन प्रदशर्न किया, लेकिन तब टीम चयन के लिए किसी ग्रह-नक्षत्र की जगह प्रदशर्न और फिटनेस को ही आधार बनाया गया था।
बताते चलें कि इसी वर्ष फेडरेशन ने फुटबॉल के संपूर्ण विकास के लिए ‘विजन 2047’ के रूप में एक रोडमैप पेश किया। इससे उम्मीद जगी कि देश की स्वतंत्रता के शताब्दी वर्ष में भारत एशियाई फुटबॉल के क्षेत्र में नई शक्ति के रूप में उभरेगा। इसमें भारत का राष्ट्रीय फुटबॉल दर्शन में स्काउटिंग से डेटा एकत्र करने, एक तकनीकी पाठ्यक्रम बनाने, कोच और खिलाड़ियों के विकास पर ध्यान केंद्रित करने और राष्ट्रीय टीम के लिए एक प्रतिभा पूल में तब्दील होने की बात कही गई। एक नेशनल स्पोर्ट्स विजन के साथ आगे बढ़ने के लिए फेडरेशन द्वारा पारिस्थितिकी तंत्र के सभी स्तरों पर फुटबॉल की गुणवत्ता में सुधार के लिए कोच शिक्षा कार्यक्रम विकसित करने की बात प्रमुखता से कही गई है। इसके लिए 50,000 सक्रिय कोच, जिनमें से करीब 4500 न्यूनतम एआईएफएफ ‘सी’ लाइसेंस प्राप्त, बनाने का लक्ष्य है।
इस तरह आज भारत 100 गांवों में 35 मिलियन बच्चों तक पहुंचने के लिए ग्रामीण ग्रासरूट कार्यक्रमों लागू करने के अलावा एक मिलियन खिलाड़ियों को पंजीकृत करने और 25 मिलियन बच्चों को फुटबॉल के स्कूलों के माध्यम से फुटबॉल शिक्षा प्रदान करने की बड़ी पहल को लेकर विचार कर रहा है। अलबत्ता, आज जो स्थिति हमारे सामने है, उसमें तो इन सभी बातों और वादों को कोरा ही कहा जा सकता है। बहरहाल, इस घटना ने भारतीय फुटबॉल जगत को काफी नुकसान पहुंचाया है। जो युवा इस खेल का हिस्सा बनने के सपने संजो रहे होंगे, उनके लिए यह बड़ा झटका है। बावजूद इसके, हमें भारतीय फुटबॉल के प्रदर्शन में आई गिरावट का आकलन और कोच को लगातार बदलने की परंपरा के लिए फेडरेशन की निंदा करने से बचना होगा क्योंकि पिछले छह दशक से हम यही सब तो करते आए हैं।
आज समय है कि हम फेडरेशन को बताएं कि वह इन दकियानूसी सोच से आजाद होकर अपने ही बनाए ‘विजन 2047’ पर ध्यान दे। फुटबॉल के दिग्गज भी इस बात पर जोर देते आए हैं कि भारत में इस खेल के विकास के लिए पुराने ढर्रे पर चलने की बजाय कुछ नया सोचना होगा और उसे जमीन पर लागू करना होगा। वित्तीय संकट से जूझ रहे क्लबों को दोबारा से खड़ा करना होगा। क्लब जिंदा होंगे तो खिलाड़ियों के विकास में भी मदद मिलेगी। स्थानीय टूर्नामेंटों को बढ़ावा दिया जाए और ग्रासरूट लेवल तक सुविधाएं पहुंचाई जाएं।
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