बहस : भारत बनाम इंडिया
बचपन से सुनते थे कि हमारे देश का नाम भारत भी है और इंडिया भी। जैसे इंग्लैंड को दक्षिण एशिया में विलायत भी कहा जाता है। पर विलायत उसका अधिकृत नाम नहीं है, केवल बोलचाल में यह नाम कहा जाता है। पर भारत के ये दोनों नाम संविधान में क्यों लिखे गए? यह सवाल हर बच्चे के मन में उठता था।
बहस : भारत बनाम इंडिया |
अब इंडिया हटाकर सिर्फ भारत नाम रखने के मोदी जी के फैसले को एक क्रांतिकारी कदम माना जा रहा है। ऐसे ही जैसे जी-20 के सम्मेलन को भारतीय सांस्कृतिक रंग देकर प्रधानमंत्री मोदी ने अपने इस नये इरादे का संकेत दे दिया है। उन्होंने जी-20 सम्मेलन में भारत की संस्कृति को ही आगे बढ़ाया, इंडिया का तो नाम तक कहीं आने नहीं दिया, तो कई कानूनविद् की भौं टेढ़ी हुई। उनका कहना था कि बिना विधायिका की स्वीकृति के यह फैसला संविधान के विरु द्ध है। बीजेपी के राजनैतिक प्रतिद्वंद्वी इसे विपक्ष के ताजा गठबंधन ‘आई एन डी आई ए’ के खौफ से लिया गया कदम बताते हैं। वे ऐसे तमाम वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर रहे हैं, जिनमें मोदी जी पिछले चुनावों में जनता से बार-बार अपील करते हैं ‘वोट फोर इंडिया’।
विपक्ष का दावा है उसकी एकजुटता से बीजेपी घबरा गई है। इसलिए उसकी एकजुटता से डर कर यह नया शगूफा छोड़ा गया है। वैसे चुनाव अभी दूर हैं पर इस सबसे देश का माहौल चुनावी बन चुका है। इसलिए नरेन्द्र मोदी के इस मनोभाव के प्रगट होते ही देश भर में बहस शुरू हो गई कि आज तक ‘वोट फॉर इंडिया’, ‘मेक इन इंडिया’, ‘डिजिटल इंडिया’, ‘स्टार्ट अप इंडिया’ जैसी दर्जनों योजनाओं को शुरू करने वाले मोदी जी को अचानक यह ख्याल कैसे आया कि अब हम ‘इंडिया’ की जगह ‘भारत’ के नाम से जाने जाएंगे।
इसके साथ ही यह बहस भी शुरू हो गई है कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया, आईआईटी, आईआईएम, आईएमए, आईएएस, आईपीएस, आईआरएस, आईएफएस, इंडियन नेवी, इंडियन एयरफोर्स, एअर इंडिया जैसी संस्थाओं को क्या अब अपने नाम बदलने पड़ेंगे? क्या फिर से नोटबंदी होगी और नये नाम से नोट छापे जाएंगे? फिर इंडियन ओशियन के नाम का क्या होगा? वैसे दुनिया भारत को इंडिया के नाम से ही जानती है। 9 वर्षो में 74 से ज्यादा देशों की यात्रा कर चुके प्रधानमंत्री मोदी ने भी इंडिया का नाम ही आज तक प्रचारित किया है। इसलिए इंडिया अब सारी दुनिया में भारत का ब्रांड नेम बन चुका है। ऐसे में भारत नाम कैसे दुनिया के लोगों की जुबान पर चढ़ेगा? इस संदर्भ में सोशल मीडिया पर मनीष सिंह ने एक रोचक पोस्ट डाली है। वे पूछते हैं कि, कायदे आजम मुहम्मद अली जिन्ना को, भारत को इंडिया कहे जाने से क्या आपत्ति थी? मनीष की पोस्ट के अनुसार ऐसा दरअसल, दो कारण से हुआ; एक तो इंडिया का नाम, इतिहास में हमें ‘इंडस रिवर’ का देश होने की वजह से मिला था। इंडस जब पाकिस्तान में रह गई थी, तो इधर बिना इंडस, काहे का इंडिया? क्या आपको याद है, एक बार सुनील दत्त में आंतकवाद के दौर में पंजाब का नाम, खालिस्तान रखने का सुझाव दिया था।
उनका भी यही लॉजिक था कि पंजाब का मतलब, 5 नदियों का प्रदेश था। अब 60% पंजाब तो पाकिस्तान हो गया। भारतीय पंजाब में 5 नदियां तो थीं नहीं। उसको भी तोड़कर हरियाणा और हिमाचल बना दिया गया तो बचे इलाके को पंजाब कहने का कोई तुक नहीं। अगर लोगों को ‘पवित्र स्थान’ यानी ‘खालिस्तान’ कहना है, तो कहने दो। बहरहाल, बात जिन्ना की हो रही थी। वे इस बात से वाकिफ थे, कि इंडिया को इंडिया कहे जाने पर पाकिस्तान को स्थायी राजनीतिक शर्मिदगी भी उठानी पड़ती। इसका लॉजिक यह था कि डूरंड से तमिलनाडु तक सारा इलाका इंडिया कहलाता था। अब उसके दो टुकड़े हो रहे थे। अगर भारत अपने को इंडिया कहता है यानी पुराने देश का दर्जा, तो असली सक्सेसर स्टेट की पहचान तो इंडिया को ही मिलेगी। पाकिस्तान, इतिहास में मूल देश से टूटने और अलग होने वाला हिस्सा माना जाएगा। तो उनकी चाहत यह थी-कि इंडिया टूटा, और दो देश बने। अगर एक खुद को पाकिस्तान कहता है, तो दूसरा खुद को भारत कहे।
मगर जिन्ना चल बसे। उनकी ख्वाहिश नेहरू भला काहे पूरी करते। 18 सितम्बर, 1949 को भारत के संविधान ने खुद का नामकरण किया, तो कहा ‘इंडिया, दैट इज भारत’। इस तरह हमने दोनों नाम क्लेम कर लिए। इस पर पाकिस्तान ने नेहरू को कभी दिल से माफ नहीं किया। आज भी, अगर आप पाकिस्तानी समाचार देखते हों तो याद करेंगे कि वे अपनी बोलचाल में इंडियन फौज या इंडियन पीएम या इंडिया नहीं कहते। वे हमेशा भारतीय फौज, भारतीय पीएम या भारत ही कहते हैं क्योंकि दिल से आपको इंडिया स्वीकारते ही नहीं और भारत नाम खुशी से मानने को तैयार हैं और यही कारण है कि खबर आई, कि अगर भारत यूएन में अपना नाम इंडिया छोड़ने की सूचना देता है, तो पाकिस्तान का फटाफट बयान आया कि इस नाम को वे क्लेम करेंगे। फिर वो लिखेंगे-पाकिस्तान, दैट इज इंडिया। और सच भी यही है कि इंडस रिवर की वजह से इंडिया का नाम, हमसे ज्यादा, उन्हें ही सूट करेगा। पर पंडित नेहरू ने उनसे यह मौका छीन लिया था। जो अब पाकिस्तानी को मिल सकता है।’
आगे-आगे देखें होता है क्या? वैसे भारत नाम पर देश की भावना भी दो हिस्सों में बंटी है। उत्तर भारत अपने को भारत से जुड़ा महसूस करता है जबकि दक्षिण भारत इंडिया नाम से। ऐसे में इस फैसले के क्या राजनीतिक, आर्थिक और भावनात्मक परिणाम होंगे, वो तो समय ही बताएगा। फिलहाल नरेन्द्र मोदी ने मीडिया और राजनीतिक लोगों को विवाद और बहस का एक नया विषय थमा दिया है।
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