उत्तर प्रदेश : विधान सभा का बदलता स्वरूप

Last Updated 05 Sep 2023 01:00:04 PM IST

उत्तर प्रदेश विधान सभा, भारत की ऐतिहासिक धरोहरों में से एक विशिष्ट भवन है। इस विशाल और शानदार इमारत के अब से 5 वर्ष बाद 2028 में इसके निर्माण के 100 वर्ष पूरे हो जाएंगे।


उत्तर प्रदेश : विधान सभा का बदलता स्वरूप

इतनी अवधि पूरे होने के बाद भी इमारत की मजबूती और भव्यता शान से अपने इतिहास की गौरव गाथा बताती है।

पिछले कुछ वर्षो में भवन की आंतरिक साज-सज्जा में काफी बदलाव किया गया है। इस सजावट और आकषर्ण के चक्कर में मूल भवन की मजबूती के कमजोर होने की आशंका जताई जा रही है। बहुत कम लोगों को जानकारी होगी और यह जानकर आश्चर्य होगा कि उत्तर प्रदेश विधान सभा कही जाने वाली वर्तमान मूल भवन का जब निर्माण कार्य पूरा हुआ तो इसकी कुल लागत मात्र 21 लाख रु पए थी, जबकि आज इस भवन के रखरखाव और साज-सज्जा के नाम पर प्रति वर्ष 100 से 150 करोड़ रु पए का खर्च हो रहा है। ब्रिटिश सरकार के निर्देश में तत्कालीन गवर्नर सर स्पेंसर हरकोर्ट बटलर ने 15 दिसम्बर 1922 को विधान भवन के निर्माण का प्रस्ताव रखा। इस भवन के निर्माण के वास्तुकार सर स्वीनन जैकब और हीरा सिंह थे। यह बिल्डिंग ब्रिटिश एवं भारतीय निर्माण व वास्तु कला के मिशण्रकी अद्भुत देन हैं। इसका निर्माण मेसर्स मार्टनि एंड कंपनी ने किया था। इसके पूर्व तत्कालीन संयुक्त प्रांत की राजधानी 1922 तक इलाहाबाद में थी।

1922 में ब्रिटिश सरकार ने इलाहाबाद से हटाकर लखनऊ को राजधानी बनाया और विधान भवन के निर्माण का प्रस्ताव हुआ। बटलर ने 4 अगस्त 1923 को भवन निर्माण की नींव रखी। 5 वर्ष में इस भवन का निर्माण कार्य पूरा होने के बाद 21 फरवरी 1928 को बटलर ने ही इसका उद्घाटन किया। गवर्नर हरकोर्ट बटलर तब आज की बटलर कालोनी की एतिहासिक कोठी में रहते थे। इस कोठी की शान यहां की शानदार झील थी। आज इस इलाके में कई शानदार सरकारी कोठिया तथा बंगले बन गए हैं।

विधान सभा का इतिहास

ब्रिटिश शासन में पहली बार एम.एन. राय ने 1934 में संयुक्त राज्य-आज के उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड-के लिए विधान सभा के गठन का विचार प्रस्तावित किया। इसके बाद तत्कालीन कांग्रेस पार्टी ने 1935 में विधान सभा की मांग उठाई। कांग्रेस की मांग थी कि विधान सभा में जनता की समस्याओं के साथ ही उनकी आवाज उठाई जा सकती है। कांग्रेस की मांग पर 1940 में ब्रिटिश संसद ने कैबिनेट मिशन योजना के तहत घटक विधान सभा के चुनाव कराने की अनुमति दी। ब्रिटिश शासन के भारत सरकार अधिनियम 1935 के तहत संयुक्त प्रांत के लिए सदस्यों की संख्या 228 निर्धारित की गई। इसका कार्यकाल 5 वर्ष निर्धारित किया गया। संयुक्त प्रांत विधान सभा का गठन 1 अप्रैल 1937 को किया गया। 31 जुलाई 1937 को संयुक्त विधान सभा के सभापति तथा उप सभापति का निर्वाचन किया गया। पुरुषोत्तम दास टंडन सभापति और अब्दुल हलीम उप सभापति बने।

संयुक्त प्रांत विधान सभा के सदस्य के रूप में तत्कालीन कई बड़े राजनेता शामिल रहे। इसकी कार्य संचालन नियमावली और सदन के निर्देशों को लेकर ब्रिटिश सरकार जब तब विरोध करती रही, जिसके कारण कुछ सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया। आजादी के बाद 3 नवम्बर 1947 को संयुक्त प्रांत की नई विधान सभा का गठन किया गया। 4 नवम्बर 1947 की पहली बैठक में विधान सभा की कार्यवाही एवं संचालन नियमावली बनाई गई। विधान सभा की कार्यवाही के लिए हिंदी भाषा को अनिवार्य किया गया। तब के संयुक्त प्रांत में रामपुर और टिहरी गढ़वाल जैसी बड़ी रियासतें थी। 25 जनवरी 1950 को सरदार वल्लभ भाई पटेल के प्रयास से इन रियासतों को मिलाकर संयुक्त प्रांत को उत्तर प्रदेश बना दिया गया। पंडित गोविंद वल्लभ पंत इसके पहले मुख्यमंत्री बने।

वर्तमान विधान सभा 18वीं है। इसके अध्यक्ष सतीश महाना है। वैसे विधा सभा के आंतरिक साज-सज्जा को लेकर दशकों से कम चल रहा है। 2017 में प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद इस दिशा में काफी तेजी आई है। विधान भवन के द्वितीय तल के गलियारे की साज-सज्जा एवं खूबसूरत लाइटिंग दर्शकों को आकर्षित कर रही है, तो इनके फर्श के रंग बिरंगे पत्थर चार चांद लगा रहे हैं। प्रथम तल पर प्रवेश द्वार के गलियारे में लगाई गई बड़ी-बड़ी इलेक्ट्रानिक स्क्रीन चकाचौंध पैदा कर रही है। ई वीथिका से विधान सभा के इतिहास से लेकर अन्य जानकारियों की अनमोल धरोहर को संजोया जा रहा है। देश की बड़ी लाइब्रेरी में शामिल विधान सभा लाइब्रेरी का डिजीटलाइजेशन किया जा रहा है। विधानसभा का मुख्य मंडप अलग ही छटा बिखेर रहा है। अब हर विधानसभा सदस्य की सीट पर टैबलेट लगे हैं। पूरी विधान सभा की कार्यवाही डिजिटल हो गई है। विधान भवन के बाहरी हिस्से की लाइटिंग के लिए नई एलईडी लाइट लगाई गई है। इस साज-सज्जा से विधान भवन के बाहरी से लेकर अंदरूनी हिस्से का स्वरूप ही बदल गया है।

विजय शंकर पंकज


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