शेयर बाजार : उछाल भी महंगाई भी

Last Updated 04 Jul 2023 12:37:14 PM IST

मुंबई स्टॉक एक्सचेंज (BSE) एवं राष्ट्रीय स्टॉक एक्सचेंज (NSE) दोनों में शेयरों की कीमतें पिछले सप्ताह रिकार्ड स्तर पर पहुंच गई।


शेयर बाजार : उछाल भी महंगाई भी

बीएसई सूचकांक 64700 अंक और एनएसई सूचकांक 1920 अंक के ऊपर बंद हुए। वि के प्रमुख स्टॉक एक्सचेंजों मे शेयरों के सूचकांक में बढ़त की दृष्टि से भारत दूसरे नंबर पर आ गया, जापान पहले नंबर पर, जबकि शंघाई, यूनाइटेड किंगडम एवं हांगकांग स्टाक एक्सचेंजों की मैट्रिक्स में गिरावट दर्ज हुई।

स्टॉक एक्सचेंज की कीमतों में उतार-चढ़ाव होता रहता है, कभी-कभी तो यह नियंतण्ररेखा पार कर जाता है, अर्थव्यवस्था को अस्थिर कर देता है। जब वि के सभी बड़े स्टॉक एक्सचेंजों में कीमतें तेजी से नीचे जाती हैं तो वैिक अर्थव्यवस्था संकट मे आ जाती है, जब तेजी का रुख होता है तो वैिक अर्थव्यवस्था में दृढता के संकेत मिलने लगते हैं। उतार-चढ़ाव सरकारों की राजनीतिक, आर्थिक, बड़े बैंकों की मौद्रिक नीतियों, प्राकृतिक आपदाओं, युद्ध, वस्तुओं और सेवाओं की मांग और पूर्ति, कंपनियों के लाभ-हानि और वि बाजार की स्थिति के कारण होता रहता है।
हाल के वर्षो में 2021 में जब कोविड महामारी शुरू हुई तो वि के अधिकांश स्टॉक एक्सचेंज में शेयरों की कीमतों में भारी गिरावट हुई, मुंबई स्टॉक एक्सचेंज शेयर सूचकांक 39 फीसद तक नीचे चला गया, महामारी के दौरान एक दिन 13 फीसद की गिरावट दर्ज की गई जो 1992 की  शेयर मार्केट की बड़ी गिरावट से भी अधिक थी।

ऐसे ही फरवरी 2022 में जब यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ वि भर के शेयर बाजार  कांप गए, मुंबई स्टॉक एक्सचेंज का सूचकांक 2000 अंक लुढ़क गया। सप्लाई श्रृंखला बाधित होने से अधिकांश देशों की अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई। भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी पर आने में अधिक समय नहीं लगा, जुलाई-अगस्त 2022 मे शेयर बाजार में  14 फीसद अंको की बढ़त हुई,  शेयर सूचकांक 600258  पर पहुंचा किंतु अडानी एंटरप्राइजेज के बारे में हिंडेनबर्ग की रिपोर्ट आने पर शेयर बाजार में फिर गिरावट शुरू हो गई, मार्च में शेयर सूचकांक 57527 पर आ गया। हालांकि सरकार की अर्थ और मुद्रा नीति की मजबूती से स्थिति जल्दी नियंतण्रमें आ गई।

अधिकांश बड़ी कंपनियों के व्यापार में वृद्धि हुई, रियल्टी, आटो और आई टी में भारी वृद्धि दर्ज की गई। विदेशी संस्थागत निवेशकों का विास बढ़ा, उनके द्वारा भारी खरीदारी हुई। एक वित्त वर्ष में शेयरों मे विदेशी निवेश 10 बिलियन डॉलर से अधिक का हुआ। भारत की अर्थव्यवस्था वि की सबसे तेज बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था बन गई है। जीडीपी विकास दर वर्तमान वित्त वर्ष में 7.2 फीसद रहने की उम्मीद है। शेयर बाजार में कीमतों में उछाल अर्थव्यवस्था की अच्छी स्थिति का द्योतक है। कीमतों में वृद्धि अर्थव्यवस्था की सामान्य प्रक्रिया है, उपभोक्ता पदाथरे का सूचकांक बराबर ऊपर जाता रहता है, आर्थिक मंदी की स्थिति में ही कीमतें नीचे आती हैं। पिछले 60 वर्षो में उपभोक्ता पदाथरे की कीमतें औसतन 7.5 फीसद प्रति वर्ष बढ़ी हैं, कुछ सालों में इससे ऊपर, कुछ में इससे कम।

पिछले 1 वर्ष में उपभोक्ता कीमतों के सूचकांक में औसतन लगभग  4 फीसद का उछाल आया जो रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की सुरक्षा सीमा 2 से 6 फीसद के बीच मे थी, नियंतण्रमें कहीं जा सकती है। कुछ महीनों में सूचकांक 4 फीसद से अधिक और कुछ में कम रहा। अप्रैल 2023 में यह 4.7 फीसद था, मई में 4. 25 फीसद। उपभोक्ता कीमतों के सूचकांक में खाद्य पदाथरे के अलावा उपयोग में आने वाले और बहुत से पदार्थ हैं, खाद्य पदाथरे का भार सूचकांक में 50 फीसद से कुछ कम है। खाद्य पदाथरे में जिन चीजों के दाम इस बीच तेजी से बढ़े उनमें प्रमुख हैं-सब्जियां, दूध, दुग्ध पदार्थ, मांस, मछली, अंडे, चिकन, मसाले, खाद्य तेल, गेहूं, चावल और दालें, जिसके कारण खाने की थाली महंगी हुई। सब्जियों की कीमतों में सबसे ज्यादा उछाल टमाटर की कीमतों में रहा। अधिकांश मंडियों में मई के तीसरे सप्ताह में टमाटर 40 रुपए किलो के आसपास बिक रहा था जो महीने के अंत में 100 से 160 रुपए किलो तक बिक गया। नींबू, अदरक, हरी मिर्च और अधिकांश हरी सब्जियों की कीमतों में लगभग 50 से  60 फीसद की वृद्धि हुई।

सब्जियों की कीमतों में वृद्धि के मुख्य कारण हैं असमय की बारिश, बाढ़, यातायात में रुकावट, सप्लाई श्रृंखला में बाधा, मांग में वृद्धि आदि जो इस मौसम में प्राय:  होता है। दूध की औसत कीमत नवम्बर 2022 में 46 रुपए प्रति किलो थी, मई 2023 में भाव 53 रुपए प्रति किलो था। चारे की कीमतों में उछाल, यातायात और ऊर्जा पर बढता खर्च, पिछले वर्ष बीमारी के कारण बड़ी संख्या में दूध देने वाले पशुओं की मृत्यु से दूध की सप्लाई में कमी, मांग में वृद्धि आदि दूध और दुग्ध पदाथरे के कीमतों में बढ़ोतरी के प्रमुख कारण रहे। भारत दूध उत्पादक बड़े देशों में है, वि का 22 फीसद दूध उत्पादन भारत में होता है, इसका सबसे अधिक उपभोग भी भारत में ही होता है। सब्जियों और दूध की कीमतें नवम्बर 2023 तक सामान्य हो जाने की उम्मीद है।

खाने के तेल की कीमतों में वृद्धि का एक बड़ा कारण है यूक्रेन से युद्ध के कारण आयात मे कमी। दालों की कीमतों में बढ़ोतरी मांग की अपेक्षा उत्पादन कम होने के कारण होती रहती है। शेयर की कीमतों में उछाल शेयरधारकों के लिए खुशियों का पिटारा खोलती है, उन्हें और निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करती है, किंतु उपभोक्ता वस्तुओं, विशेषकर खाद्य पदाथरे की कीमतों में वृद्धि आम आदमी की जेब पर भारी पड़ती है, उसका बजट बिगाड़ती है, उसके खाने की थाली और महंगी कर देती है, अन्य वस्तुओं पर खर्च में कटौती के लिए बाध्य कर देती है। बाजार अर्थव्यवस्था में कीमतों का निर्धारण मांग और पूर्ति के सिद्धांत पर होता है, सरकारी नियंतण्रसीमित होता है, कीमतों में उतार-चढ़ाव होता रहता है जिसका सीधा असर उपभोक्ताओं पर पड़ता है।

प्रो. लल्लन प्रसाद


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