आम लोगों का मसखरा
हम तो यही मानते थे कि हंसते, मुस्कुराते रहने से तनाव दूर होता है लेकिन लोगों को हंसाने वाले राजू श्रीवास्तव का दिल इतना कमजोर था कि उसने काम करना बंद कर दिया और दिल के रोग से उनका निधन हुआ, यह जानकर स्वास्थ्य संबंधी अवधारणों को नये सिरे से समझने की जरूरत पड़ेगी।
आम लोगों का मसखरा |
राजू कितने ही लोगों में हंसी बांटते थे, गुदगुदाते थे, ठहाके लगवाते थे लेकिन इतनी जल्दी इस प्रकार दिल से हारकर अपने प्रशंसकों को रुला भी जाएंगे, इसका अंदेशा नहीं था। हास्य-व्यंग्य के कवियों से लेकर अश्लील प्रसंगों का हास्य परोसने वाले कलाकारों की आज एक लंबी जमात है लेकिन राजू इस भीड़ में अलग तो थे ही, लोगों के अधिक करीब, अधिक अपने थे, हर दूसरे घर में मिल जाने वाले राजू नाम के किसी पारिवारिक सदस्य की तरह। उनके किस्से आम आदमी के दैनिक जीवन के हिस्से थे तो उनकी सफलता आम आदमी की सफलता थी। इसलिए उनका न होना किसी अपने के न होने की कमी का अहसास भी है।
हास्य को तब और उम्दा माना जाता है जब वह व्यंग्य के करीब आता है, जब वह केवल गुदगुदाता नहीं है, बल्कि आपको तिलमिलाने पर मजबूर करता है। जब वह हास-परिहास में एक वर्णन या नकल से शुरू होकर हमें किसी विद्रूप की ओर ले जाता है, किसी विसंगति पर टिप्पणी बन जाता है। पुस्तकों से लेकर मंच तक समीक्षकों ने हास्य को इसी निकष पर परखने की कोशिश की है। लेकिन राजू ने इन कसौटियों की परवाह नहीं की। उन्हें इस बात की चिंता नहीं थी कि उनकी प्रस्तुति बौद्धिक वर्ग में किस प्रकार देखी जाएगी, कुलीन समाज में उसे गंवई कहकर उसका मजाक तो नहीं उड़ा दिया जाएगा। उन्होंने इस बात की परवाह की कि एक साधारण भारतीय किन बातों में खुश हो जाएगा, वह हास्य के किसी कार्यक्रम में आखिर क्या तलाशना चाहेगा?
इसलिए राजू के हास्य को अवलोकन का विपुल भंडार कहना भी गलत न होगा और इस भंडार में शामिल थे एक आम इंसान के जीवन से जुड़े प्रसंग।
कानपुर में कवि पिता के साधारण परिवार ने उन्हें बचपन से ही साधारण भारतीय के घर के चूल्हे-चौके से लेकर उसकी गरीबी के संघषर्, बेरोजगारी, ट्रेनों-बसों, सरकारी दफ्तरों के अनुभव, फिल्म और टीवी कलाकारों के नकल की जो खुराक उन्हें दी, उसने जीवन भर उन्हें आम लोगों का चहेता बनाए रखा। कभी वे कतार में शामिल तरह-तरह के लोगों के प्रसंग सुनाने लगते तो कभी किसी शराबी के, कभी किसी ट्रेन के वर्णन में खो जाते तो कभी किसी सरकारी कार्यालय के। फिल्मी कलाकारों की नकल में भी वे बेजोड़ थे और अमिताभ बच्चन के प्रशंसक भी। हास्य के उनके तीर से राजनेता से लेकर माफिया डॉन तक कोई नहीं बच सका था। उनके पास बताने और करने को इतनी चीजें होती थीं कि आप घंटों उनको देखते-सुनते रह सकते थे। राजू ने अपने जीवन में बड़े बदलाव देखे।
हास्य कलाकार के रूप में उन्होंने लोकप्रियता के शिखर को छूआ। वे फिल्मों और टेलीविजन धारावाहिकों में अभिनय करते रहे। कार्यक्रमों के लिए बड़ी फीस वसूलते, महंगी गाड़ियों की सवारी करते, मुंबई में करोड़ों की प्रापर्टी के स्वामी होने की भी खबरें आती रहीं, उन्होंने राजनीति भी की, उत्तर प्रदेश फिल्म विकास निगम के अध्यक्ष बने लेकिन इन तमाम बदलावों के बीच भी जो चीज नहीं बदली, वह थी उनकी सहजता। उनसे मिलने पर हमेशा यही लगता रहा कि वे हमारे आप के बीच के हैं। बड़े से बड़े कार्यक्रमों में, फिल्म स्टार नाइट्स में, अवार्ड समारोहों में अपना कार्यक्रम उसी भदेस अंदाज में करते। उनसे मिलना, बात करना, साथ फोटो कराना हमेशा पहले की तरह सहज रहा। हास्य के स्टार होकर भी उनमें नखरे नहीं आए। हमेशा जमीन से जुड़े रहे, जमीन से जुड़े लगे।
न बदलने वाली एक खास बात और रही कि उन्होंने हास्य के अपने जमीनी अंदाज के बावजूद इसे कभी अश्लील और द्विअर्थी नहीं होने दिया। आज स्टैंडअप कामेडी में ऐसे प्रस्तुतियों की बाढ़-सी आई हुई है, जहां हास्य के नाम पर ऐसे कार्यक्रम होते हैं, और उनका बड़ा प्रशंसक वर्ग है लेकिन राजू ने ऐसा जेंटलमैन बनने की कोशिश नहीं की। कहा करते थे कि हास्य कलाकारों का एक आत्म अनुशासन होना चाहिए। कपिल शर्मा की सफलता से ऐसा लगने लगा था कि उनकी मांग कम हुई है लेकिन उन्होंने इसे भी बहुत ही सहज अंदाज में लिया था। उन्होंने मुझसे कहा था कि अगर किसी में प्रतिभा है, तो वह सामने आएगी ही। यह तो होता ही है कि नये-नये लोग आते रहते हैं।
राजू श्रीवास्तव ने कई फिल्मों में छोटी-बड़ी भूमिकाएं कीं। वे अपने प्रशंसकों के लिए गजोधर भईया के रूप में भी लोकप्रिय रहे। उनके चाहने वालों में फिल्म अभिनेता से लेकर राजनेता तक सभी थे। उनकी ख्याति का अंदाज इससे भी लगाया जा सकता है कि कहते हैं जब उन्होंने अंडर्वल्ड को लेकर हास्य कार्यक्रम प्रस्तुत किए तो उन्हें फोन पर धमकियां मिलने लगी थीं। हंसने के कई बहाने होंगे लेकिन राजू श्रीवास्तव वाला अंदाज अब नहीं होगा!
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