भारत-पाक : मिश्रित संस्कृति नये युग की विशेषता

Last Updated 19 Sep 2022 02:00:14 PM IST

पाकिस्तान बाढ़ से जूझ रहा है। सिंध और बलूचिस्तान में बाढ़ से हालात अत्यधिक खराब हैं। फसल तबाह हो गई हैं। जीवन अस्त-व्यस्त हो चुका है। लोग आश्रय और भोजन के लिए दर-दर भटक रहे हैं।


भारत-पाक : मिश्रित संस्कृति नये युग की विशेषता

देश की लगभग 15 प्रतिशत आबादी बाढ़ से प्रभावित है। बाढ़ से मरने वालों की संख्या 1200 तक पहुंच गई है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने इसे भयावह स्थिति बताते हुए देश में राष्ट्रीय इमरजेंसी लागू कर दी है।
बाढ़ के खराब हालातों पर पाकिस्तानी अखबार डॉन में छपी खबर ने भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व का ध्यान  खींचा है। खबर यह थी कि ‘बलूचिस्तान के कच्छी जिले के जलाल खान नामक गांव में ऊंचे टीले पर स्थित बाबा माधोदास मंदिर बाढ़ से प्रभावित लोगों और उनके पशुओं को शरण दे रहा है। खाना, पानी और चिकित्सा की सुविधा भी उपलब्ध करवा रहा है। लाउडस्पीकर से निरंतर घोषणा की जा रही है कि बाढ़ पीड़ित मंदिर में शरण ले सकते हैं। गर्भवती महिलाओं के लिए मंदिर तो खुदा की पनाह बन गया है।’ दो प्रमुख कारणों से यह खबर महत्त्वपूर्ण बन गई है। पहला, पाकिस्तान ऐसा देश है, जहां अल्पसंख्यक अपने को सुरक्षित महसूस नहीं करते। अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं का जबरन अपहरण, बलात्कार, धर्म परिवर्तन और जबरन विवाह की खबरें चौंकाती नहीं हैं। पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर मामूली आरोपों पर गंभीर सजाएं दी जाती हैं। धार्मिंक स्वतंत्रता की स्थिति लगभग न्यूनतम है। अल्पसंख्यकों पर ईशनिंदा कानूनों के तहत अन्यायपूर्ण मुकदमा चलाया जाता है, और मृत्युदंड जैसी सजा भी दे दी जाती है। भारत सरकार, संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक मंच पर पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ किए जाने वाले भेदभाव, मानवाधिकारों के उल्लंघन और आतंकवाद को बढ़ावा जैसी गतिविधियों पर सवाल उठाता रहा है। महत्वपूर्ण बात यह भी है कि घोर विपरीत परिस्थितियों के बावजूद पाक के हिंदूओं ने सद्भावना की नई राह बनाते हुए आपदा के इस समय में इंसानियत की मिशाल कायम की है। साम्प्रदायिकता और संकीर्णता से ऊपर उठ कर हिंदुओं ने सेवा भाव का ऐसा जज्बा पेश किया है, जिसकी पूरे विश्व में सराहना हो रही है।

यह खबर इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि पाकिस्तान ऑल हिंदू राइट्स मूवमेंट का सर्वेक्षण बताता है कि आजादी के दौरान देश में मौजूद कुल 428 मंदिरों में से अब 20 ही बचे हैं। जिस देश में मंदिरों को तोड़ने की घटनाएं आम बात है, वहां आज वही मंदिर आसरा बन रहे हैं। आतंकवाद को बढ़ावा देने वाला पाकिस्तान आज शायद ही यह सोचने पर विवश हो कि भाईचारा ही सबसे बड़ा धर्म है। धर्म एक दूसरे से लड़ना नहीं, बल्कि जोड़ना सिखाता है। मानव लड़ाई नहीं, बल्कि प्रेम और मेल-जोल से रहना चाहता है। मंदिर में शरण लेने वाले लोग इस बात को अवश्य स्वीकार कर रहे हैं कि मुश्किल घड़ी में भोजन और आश्रय प्रदान करने के लिए वे स्थानीय अल्पसंख्यक समुदाय के ऋणी हैं। महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या हम उम्मीद कर सकते हैं कि पाकिस्तान में लोगों का अल्पसंख्यकों के प्रति दृष्टिकोण बदलेगा। हिंदुओं को जाति और पंथ की बजाय मानवता के चश्मे से देखा जाएगा? धर्म और संस्कृति बहती नदी की तरह होते हैं, जिसमें प्रवाह होता है। अन्य प्रवाह जब इसमें मिलते हैं, तो वे खुद को भी बदलते हैं, नदी को भी बदलते हैं। पाकिस्तान, भारत का ही टूटा हुआ हिस्सा है, जिसको केवल धर्म की दीवार से अलग करके नहीं देखा जा सकता। जैविक एवं जेनेटिक्स विज्ञान प्रमाणित कर चुका है कि भारतीय उपमहाद्वीप के लोग मिश्रित हैं। यदि पाकिस्तान भी इस तथ्य को स्वीकारता और अपने व्यवहार में मानवीयता का रंग भरता तो शायद वह भी आज प्रगतिशील देश होता।
धर्म के नाम पर होने वाली राजनीति लोगों के दिलों में दूरिया पैदा करती है। राजनीति में सांप्रादायिकता के आ जाने से विचारधारा संकीर्णता में जकड़ने लगती है जिससे कट्टरता और हिंसा को ही बढ़ावा मिलता है। विचारों में, राजनीति में, संस्कृति में संकीर्णता नकारात्मकता लोग ही बढ़ा रहे हैं। वे अपना वर्चस्व कायम करने रखने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। यदि पाकिस्तान अपनी पुरानी सोच से बाहर नहीं निकला तो भावी पीढ़ियों को इसकी कीमत चुकानी होगी। जरूरत है कि मानवीयता द्वारा न केवल विभिन्न संस्कृतियों को समृद्ध किया जाना चाहिए, बल्कि दुनिया के सभी धर्मो के बीच सामंजस्य भी स्थापित किया जाना चाहिए जिससे सभ्यताओं के भावी संघर्ष को टाला जा सके। कोरोना काल के बाद पूरी दुनिया तेजी से बदल रही है। पाकिस्तान विश्व के साथ कदम दर कदम मिला कर चलना चाहता है, तो उसे भी धर्म की संकीर्णताओं को छोड़कर युवा पीढ़ी को शिक्षा और स्वास्थ्य का मंत्र देने के साथ-साथ अल्पसंख्यकों को भी सम्मान से जीने का अधिकार देना होगा। पाकिस्तान को अपने राष्ट्रीय गान का अक्षरश: पालन कर मिश्रित संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिए क्योंकि मिश्रित संस्कृति ही नये युग की नई विशेषता है।

डॉ. सुरजीत सिंह गांधी


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